मैं लड़के के शरीर में कैद थी
मार्च 11, 2008 8 टिप्पणियां
‘मैं ग़ज़ल हूं। मैं २४ साल पुरुष शरीर के अन्दर, कैद रही 😦 शल्यचिकित्सा से आज़ाद हुई। बहुत समय निकल गया, बहुत कुछ रह गया, छूट गया, बहुत कुछ पाना है – कपड़े, चूड़ियां, बालियां, मेकअप पर मैंने जीवन की सबसे महत्वपूर्ण चीज़ पा ली – जो अक्सर लोगों से छूट जाती है – ज़िंदगी 🙂 ‘
लिङ्ग डिज़िटल नहीं होता इसे आप दो भाग में नहीं बांट सकते हैं। इसके कुछ रूप और भी हैं। मैंने कुछ समय पहले अपने उन्मुक्त चिट्ठे पर ‘Trans-gendered – सेक्स परिवर्तित पुरुष या स्त्री‘ नामक चिट्ठी में उन लोगों की चर्चा की थी जिन्हें प्रकृति अलग तरह से बनाती है – मस्तिष्क, लिङ्ग का देती है और शरीर, दूसरे लिङ्ग का। इस चिट्ठी में मैंने इन लोगों की परेशानियों के बारे में लिखा था और एक टीवी कंपनी के ओछे विज्ञापन का जिक्र किया था, जिसके खिलाफ कुछ लिखा पढ़ी की। हमारा समाज ऐसे लोगों की पीड़ा समझना तो दूर, इनका मजाक बनाने मे भी पीछे नहीं रहता। मैंने इसी तरह के विचार शास्त्री जी इस चिट्ठी पर भी दिये थे।
ग़ज़ल चंडीगढ़ में, गुनराज़ नाम का लड़का थीं। लड़के के रूप में, इंजीनियर बनी। पिछले साल, शल्यचिकित्सा के द्वारा स्वतंत्र की गयीं। उन्होने अपनी यह भावनात्मक यात्रा, बेहतरीन तरीके से ‘द वीक‘ पत्रिका ने ९ मार्च के अंक पर लिखी है। यदि आपने यह नही पढ़ी हो तो यहां जा कर अवश्य पढ़ें। इस चिट्ठी में प्रकाशित ग़ज़ल के चित्रों को श्री संजय अहलवात ने खींचा है। यह तीनों चित्र ‘द वीक’ के उसी लेख से, उसी पत्रिका के सौजन्य से हैं।
‘उन्मुक्त जी, तीन चित्र? यहां तो एक ही है’
जी हां, मैंने तीन चित्रों को जोड़ कर एक किया। उसके बाद उसका आकार और पिक्सल कम करके यहां प्रकाशित किया है। यह सारा काम मैंने जिम्प (GIMP) प्रोग्राम से किया है। यह न केवल मुफ्त है पर मुक्त भी। यह सारे ऑपरेटिंग सिस्टम में चलता है और बेहतरीन प्रोग्राम है। जी हां, यह विंडोज़ पर भी चलता है। यह हमारी सारी जरूरतों को पूरा करता है। यदि यह आपके पास यह है तो आपको फोटोशॉप खरीदने की या फिर … करने की कोई जरूरत नहीं। आप एक बार स्वयं ,इस पर काम करके क्यों नहीं देखते।
‘उन्मुक्त जी, एक बात समझ में नहीं आयी?’
अरे, शर्माना कैसा, तुरन्त पूछिये।
‘आप घूम फिर कर ओपेन सोर्स पर क्यों पहुंच जाते हैं?’
गज़ल स्वयं अपना चिट्ठा A little hope… A little happiness के नाम से लिखा है। इसमें न केवल वे अपनी कहानी बताती हैं पर ऐसे लोगों को सलाह भी देती हैं जो अपने को उनकी तरह कैद पाते हैं।
उन्मुक्त की पुस्तकों के बारे में यहां पढ़ें।
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sahasi gazal aur unke sahas aur antar aur bahari duniya ke dwand ke bare mein padhna achha laga.
जहाँ एक ओर ग़ज़ल की पीड़ा समझना हम लोगों के लिए उतना सरल नहीं है, वहीं दूसरी ओर उसका साहस सराहनीय है. परन्तु यह पढ़ कर लगता है ज़िंदगी में लोगों को कितना कष्ट झेलना पड़ता है, हम तो छोटी-छोटी बातों से विचलित हो जाते हैं.
धन्यवाद उन्मुक्त जी The Week का वह लेख हमारे साथ बांटने के लिए.
उन्मुक्त जी कृपया बताएं यह आपने Top Posts वाला विजेट कैसे डाला है?
आशुतोष जी, यह सुविधा वर्डप्रेस देता है। आप प्रेसेन्टेशन में जा कर विज़िट का चयन करें। यहां पर टॉप पोस्ट का विज़िट बन हुआ है बस इसे डाल लें – उन्मुक्त
वीक का लेख और आपके विचार दोनों पसंद आये।
इस आलेख के द्वारा आपने एक आश्चर्यजनक प्रसंग का जिक्र किया है। यह अदभुत ही नहीं मर्म स्पर्शी भी है।
…
रॉकी जी, आपकी दो टिप्पणियां इस चिट्ठी पर मिली। मैं माफी चाहूंगा कि मैं उन्हें प्रकाशित नहीं कर रहा हूं। वे शालीनता की सीमा पार कर रही थीं – उन्मुक्त
पिंगबैक: उफ क्या मैं चैन से सो सकूंगी « छुट-पुट
आपने गजल को उन्मुक्त कर डाला. मैने दो साल बाद आज इस पोस्ट को खोज कर पढा. जिस की-वर्ड ने मुझे आपकी पोस्ट पर पहुचाया वह था ’कैद’.
वास्तव मे आदमी अपने ही मन में कैद हो जाता है. यद्यपि उसमे अपने आपको उन्मुक्त करने की शक्ति रहती है. मन के भीतर से बाहर निकलने के लिये जो द्वार बना है वह एक अत्यंत ही सूक्ष्म छिद्र है. इसे कोई इश्वर समझता है. वास्तव मे वह मन का केंद्र है जहा पर परम शांती होती है. जीवन को पाने के लिये मन के पिंजरे से मुक्त होना जरूरी है. गजल हो या गुलजार यह आपके चुनाव पर निर्भर होता है. कल तक मेरा एक दोस्त और उसकी पत्नी जो अपने आपको विवाहरूपी उम्र कैद मे फस जाने से बहुत दुःखी थे, अदालत से तलाक प्राप्त कर बहुत खुश दिखाई दिये.
विवाह आज बहुत लोग के लिये फासी का फंदा लगता है.
लिव-आउट रिलेशनशिप का आप चुनाव कर सकते है.
टिपण्णी लंबी हो गई है. विचारों का फ्लो रोकना पडेगा.