कोई वकील क्यों बनना चाहता है?

‘उन्मुक्त जी, यह भी कोई सवाल है। क्या, कोई वकील भी बनना चाहता है। lawyer prestige

लगता है आपको मालुम नहीं, आज के समाज में स्पैमरस्  के बाद, समाज में, सबसे तिरस्कित  वकील ही हैं। कुछ वकील जरूर पैसा कमाते हैं पर अधिकतर तो फटेहाल ही हैं। यह सुन कर की आप कानून पढ़ रहे हैं, सुन्दर लड़कियां दूसरी तरफ मुंह फेर लेती हैं। फिर कोई वकील क्यों बनना चाहेगा।

यह कार्टून मेरा बनाया नहीं है। मैंने इसे यहां से लिया है। Cartoon by Nicholson from “The Australian” newspaper: www.nicholsoncartoons.com.au

जाइये, जाइये, मुझे न बताइये। मुझे सब मालुम है कि कोई वकील क्यों बनता है। पहले लोग आई.सी.एस. बनने विलायत जाते थे। आई.सी.एस. में फेल हो गये तो बार एट लॉ बन गये। आजकल इंजीनियरिंग, डाक्टरी या किसी प्रोफेशनल कोर्स में दाखिला नहीं मिला, कुछ करने को नहीं हुआ – वकालत की पढ़ाई करने लगे। उसके बाद वकील बन गये। अब आगे कुछ न कहलवाइये। कहीं, न्यायालय की अवमानना न हो जाय या फिर चिट्ठजगत से विदा लेनी पड़े।’

क्या आपका भी यही सोचना है। क्यों न यह सवाल उनसे पूछा जाय जो वकालत पढ़ रहे हैं। क्योंकि वे ही इसका सबसे अच्छा जवाब दे सकते हैं।

ऐक्सस ग्रुप विद्यार्थियों को ऋण की सुविधा प्रदान करता है। वे कई सालों से, अमेरिका में कानून में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के बीच एक प्रतियोगिता करा कर यह सवाल पूछते हैं। इस प्रतियोगिता में,  विद्यार्थियों को चार मिनट से कम समय का विडियो बना कर यूट्यूब में डालना होता है कि वे क्यों वकील बनना चाहते हैं। उन्हें इसके लिये क्यों और कहां से प्रेणना मिली। इसमें एक पुरुस्कार १०,००० डॉलर और पांच पुरुस्कार १,५०० के दिये जाते हैं।

इस साल की प्रतियोगिता में ११३ विद्यार्थियों ने भाग लिया। इन विडियों में से दस विद्यार्थियों के विडियो को चुना गया। इसके पश्चात लोगों ने वोटिंग की। इस वोटिंग में  ब्रानिगन रॉबर्टसन (Branigan Robertson) को प्रथम पुरुस्कार मिला। वे शैपमैन कानून विश्विद्यालय (Chapman University School of Law) के विद्यार्थी हैं।

आप रॉबर्टसन के बनाये विडियो को नीचे देखें। आपको वकील के जीवन का दूसरा पहलू भी देखने को मिलेगा। शायद यह जीवन, किसी  अन्य जीवन से, कहीं अधिक रोमांचकारी और समाजसेवा का है। क्या मालुम आपके विचार बदल जायें। जहां तक मेरा सवाल है, मुझे अनगिनत, अलग अलग प्रोफेशन के लोगों की जीवनी पढ़ने का मौका मिला। मैं तो यही सोचता हूं कि वकील का जीवन रोमांचकारी और समाजसेवा का है।

यदि आप अन्य पुरुस्कृत विडियो को देखना चाहें उन सबके बारे में यहां सूचना है।

हिन्दी में नवीनतम पॉडकास्ट Latest podcast in Hindi
सुनने के लिये चिन्ह शीर्षक के बाद लगे चिन्ह ► पर चटका लगायें यह आपको इस फाइल के पेज पर ले जायगा। उसके बाद जहां Download और उसके बाद फाइल का नाम अंग्रेजी में लिखा है वहां चटका लगायें।:
Click on the symbol ► after the heading. This will take you to the page where file is. his will take you to the page where file is. Click where ‘Download’ and there after name of the file is written.)

  • विकासवाद को पढ़ाने से मना करने वाले कानून – गैरकानूनी हैं:
  • मंकी ट्रायल:
यह ऑडियो फइलें ogg फॉरमैट में है। इस फॉरमैट की फाईलों को आप –
  • Windows पर कम से कम Audacity, MPlayer, VLC media player, एवं Winamp में;
  • Mac-OX पर कम से कम Audacity, Mplayer एवं VLC में; और
  • Linux पर सभी प्रोग्रामो में – सुन सकते हैं।
बताये गये चिन्ह पर चटका लगायें या फिर डाउनलोड कर ऊपर बताये प्रोग्राम में सुने या इन प्रोग्रामों मे से किसी एक को अपने कंप्यूटर में डिफॉल्ट में कर लें।
Advertisement

न्यायालय ५ बजे बन्द होता है

शैरन केलर (Sharon Keller) सबसे पहले १९९४ में टेक्साज़ अपीली न्यायालय की न्यायाधीश चुनी गयी थीं। वे इसकी मुख्य न्यायधीश २००० में, फिर पुनः २००६ में २०१२ तक चुनी गयीं। लेकिन, क्या वे तब तक इस पद पर बनी रहेंगी।

cca_bench

शैरन (अगली पंक्ति के मध्य में) अपने सहयोगियों के साथ - चित्र टेक्साज़ अपीली न्यायालय के वेब साइट के सौजन्य से है।

‘अरे उन्मुक्त जी, क्या हुआ उन्हें, क्या वे किसी बेहतर जगह जा रहीं हैं?’


बेहतर तो नहीं, पर उन्हें निकाले जाने के लिये जांच चल रही है।


‘उन्मुक्त जी, मुख्य न्यायाधीश पर जांच—क्या जुर्म किया है उन्होंने’


उन्होंने वकील से कहा कि न्यायालय ५ बजे बन्द होता है और उसे ५ बजे ही बन्द कर दिया।


‘लीजिये, इसमें क्या खता हो गयी कि उन्हें निकाले जाने के लिये जांच चल रही है।’


बहुत कुछ।

न्यायामूर्ति होल्मस् अंग्रेजी में फैसला लिखने वाले न्यायमूर्तियों में सबसे जाने माने न्यायमूर्ति हैं। वे बीसवीं शताब्दी के पहले चतुर्थांश में अमेरिकी सर्वोच्च न्यायया लय के न्यायाधीश थे। उनके अनुसार,

  • जज़ वास्तव में फैसला मुकदमों के तथ्यों पर ले लेते हैं फिर उस पर कानून का जामा पहना कर कारण लिखते हैं।
  • उनके तथ्यों पर लिये गये अधिकतर फैसले, कानून दायरे के बाहर होते हैं और ‘अव्यक्त धारणा’ (inarticulate major premise) पर निर्भर होते हैं।

    न्यायमूर्ती होल्मस् का चित्र विकिपीडिया के सौजन्य से


मैं नहीं जानता कि inarticulate major premise का ठीक अनुवाद ‘अव्यक्त धारणा’ है कि नहीं इसे तो हिन्दी ज्ञानी ही बता पायेंगे पर यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम किस प्रकार बड़े हुऐ, हमें कैसा वातावरण मिला।


हेरॉल्ड लास्की पिछली शताब्दी में अंग्रेज साम्यवादी विचाराधारा के विचारक हुऐ हैं। वे लंडन स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स अध्यापक रहे और भारतियों के जीवन के प्रेणनास्रोत। उनकी लिखी प्रसिद्ध पुस्तक है द ग्रामर ऑफ पॉलिटिक्स (The Grammar of Politics) इस पुस्तक में वे बताते हैं कि अच्छा जज़ वह जो अपनी अव्यक्त मुख्य प्रस्तावना से उपर उठ सके उनके मुताबिक होल्मस् के अतिरिक्त शायद कोई जज़ नहीं हुआ जो कि इसके ऊपर उठ सका। यह बात न्यायधीश शैरन कैलर के आचरण से साबित होती है जिसके कारण उनको हटाये जाने की जांच चल रही है।


२५ सितम्बर २००७ शाम पौने पांच बजे शैरन के पास वकील ने फोन किया,

‘माईकेल रिचार्ड मेरा मुवक्किल है। वह फांसी के तख्ते पर है। उसे आज रात में फांसी हो जायगी। सर्वोच्च न्यायालय के नये फैसले के आधार पर उसकी फांसी की सजा कट सकती है। इसके लिये वे एक याचिका प्रस्तुत कर रहे हैं। उनके कंप्यूटर में कुछ गड़बड़ी होने के कारण उन्हें आने में देर हो रही है। कृपया न्यायालय कुछ देर कर और खुला रखें ताकि हम यह याचिका प्रस्तुत कर सकें।’


शैरन ने जवाब दिया कि न्यायालय ५ बजे बन्द होता है। उसे घर में कुछ ठीक करवाना था। उसने न्यायालय बन्द करवाया और अपने घर मेकैनिक के साथ चली गयी। रात में माईकेल को फांसी हो गयी।


वकील ने शैरन के खिलाफ अभियोग दर्ज कराया कि उनका आचरण अनुचित था। वे जज़ बनी रहने के काबिल नहीं हैं। इसी कारण उन पर जांच चल रही है। जांच के दौरान, उन्होंने इस बात को स्वीकारा कि उन्होंने फोन मिलने के बाद भी न्यायालय बन्द कर दिया था। उनका कहना है,

‘माईकेल को एक महिला के साथ बलात्कार करने के बाद उसे मारने का जुर्म था। उसने इस जुर्म को स्वीकार कर लिया था। उस पर दो बार मुकदमा चल चुका था। उसकी याचिका पर पुनः सुनने की जरूरत नहीं थी।’


उन्होंने स्पष्ट किया,

‘यदि इस तरह की बात फिर उठेगी तो वे पुनः इस तरह का व्यवहार करेंगी।’


यदि, शैरन,  उस वकील की याचिका को सुन कर कहती कि उसमें कोई बल नहीं है तब  अलग बात होती, पर बिना उस याचिका देखे, सुने
यह कह देना अनुचित है। शायद, वे भूल गयीं कि जीवन लिया जा सकता है और एक बार उसके जाने के बाद, कभी भी वापस नहीं दिया जा सकता। एक बार जो चला गया वह वापस नहीं आ सकता। माइकेल के वकील की प्रार्थना ऐसी नहीं थी जो बिना सुने खारिज की जा सकती हो।

मेरे विचार से, शैरेन इस ‘अव्यक्त धारणा’ से ग्रसित थीं कि माईकेल को फांसी होनी चाहिये और किसी बात से ग्रसित हो कर काम करना, जज़ के आचरण के विरुद्ध है।

हिन्दी में नवीनतम पॉडकास्ट Latest podcast in Hindi
सुनने के लिये चिन्ह शीर्षक के बाद लगे चिन्ह ► पर चटका लगायें यह आपको इस फाइल के पेज पर ले जायगा। उसके बाद जहां Download और उसके बाद फाइल का नाम अंग्रेजी में लिखा है वहां चटका लगायें।:
Click on the symbol ► after the heading. This will take you to the page where file is. his will take you to the page where file is. Click where ‘Download’ and there after name of the file is written.)

 

यह ऑडियो फइलें ogg फॉरमैट में है। इस फॉरमैट की फाईलों को आप –
  • Windows पर कम से कम Audacity, MPlayer, VLC media player, एवं Winamp में;
  • Mac-OX पर कम से कम Audacity, Mplayer एवं VLC में; और
  • Linux पर सभी प्रोग्रामो में – सुन सकते हैं।
बताये गये चिन्ह पर चटका लगायें या फिर डाउनलोड कर ऊपर बताये प्रोग्राम में सुने या इन प्रोग्रामों मे से किसी एक को अपने कंप्यूटर में डिफॉल्ट में कर लें।

इस विषय पर संबन्धित लेख नीचे दिये गये लिंक पर पढ़े जा सकते है।

Reblog this post [with Zemanta]

महिलाओं की स्कर्ट छोटी नहीं हो सकती

‘पुरुषों की ब्रीफ तो लम्बी हो सकती है पर महिलाओं की स्कर्ट ब्रीफ नहीं हो सकती। नेकटाई मर्यादित होनी चाहिये मूर्खतापूर्ण नहीं।’

यह विचार थे – १९ मई इंडियानापोलीस में  हुई वकीलों और न्यायधीशों की  वार्षिक मिली जुली बैठक के।

इस बैठक में वकीलों के वस्त्र पहनने के तरीके की बात, ९ जनवरी १९४४ मैं जन्मी, राष्ट्रपती बिल क्लिंटन के द्वारा Federal Judge Joan Lefkow३० जून २००० में नियक्ति की गयी, इलीनॉए की फैडरल न्यायधीश जोन लेफकॉओ (federal judge, Joan H. Lefkow of the Northern District of Illinois) ने उठायी।

फैडरल न्यायधीश जोन लेफकॉओ ने अपने न्यायलय का एक किस्सा बताया जब उनके न्यायालय में एक महिला एस तरह के वस्त्र पहन कर आयी जैसे कि वह किसी व्यामशाला से कसरत कर के आयी हो। बैठक में अन्य न्यायधीशों और वकीलों ने भी इस विषय पर अपने विचार दिये कि कई महिलायें की स्कर्ट और ब्लॉउस इतने छोटे होते हैं कि नज़र उस पर चली जाती है। उनके इस तरह के वस्त्र पहनना आपत्तिजनक है

यहां गौर करने की बात है कि अपने देश में वकीलों (पुरुष एवं महिला दोनो को) की वस्त्र निर्धारित है जिसमें बैन्ड और गाउन पहनना पड़ता है। बैन्ड बन्द गले के कोट, या बन्द गले की शर्ट, ब्लाउस, कुर्ते पर लगाया जा सकता है पर अमेरिका में वकीलों के लिये कोई भी वस्त्र निर्धारित नहीं है। हांलाकि जहां तक मुझे याद पड़ता है कि अपने देश में भी न्यायधीश चन्द्रचूड़ ने एक बार सर्वोच्च न्यायालय में एक महिला को जीन्स वा इतनी लिपिस्टिक लगा कर न्यायालय में आने से मना किया था।

बेथ ब्रिकिंमैन (Beth Brinkmann) अमेरिका में सॉलिसिटर जेनरल के ऑफिस में काम करती थीं। अमेरिक के सर्वोच्च न्यायालय में वे एक बार भूरी स्कर्ट पहन कर बहस करने चली गयीं। इस पर वहां के न्यायधीशों ने आपत्ति की। हांलाकि सॉलिसिटर जेनरल ने उनका बचाव किया पर उसके बाद वहां काम करने वाली सारी महिलाओं ने काले रंग की स्कर्ट पहनना शुरू कर दिया। यह भी प्रसांगिक है कि इस समय बेथ ब्रिकिंमैन का नाम भी सर्वोच्च न्यायालय में न्यायधीश बनाने जाने पर विचार किया जा रहा है।


 

यह गौरतलब है  कि फैडरल न्यायधीश जोन लेफकॉओ जिनहोंने यह विषय १९ मई में हो रही बैठक में उठाया था वे स्वयं मर्यादित एवं सुरुचिपूर्ण (elegant) वस्त्र पहनने के लिये जानी जाती हैं। उन्होंने महिलाओं को कॉर्परीएटी  (Corporette) चिट्ठे को भी पढ़ने की सलाह दी कि वे इसे देखें कि किस तरह के वस्त्र पहनने चाहिये। मैंने इस चिट्ठे को देखा। इसकी सलाह मुझे अच्छी लगी पर यह पश्चमी वस्त्रों के बारे में बात करती है न कि भारतीय परिधानों के बारे में। आजकल भारत में भी बहुत सी महिलायें पश्चमी वस्त्र पहनना पसन्द करतीं है। उनके लिये यह चिट्टा अच्छा है। मैं तो यह जानना चाहूंगा कि क्या इस तरह का कोई चिट्ठा पुरुषों के लिये या महिलाओं के भारतीय परिधानों के लिये है?

बहस कोई अन्त नहीं है। अमेरिका में न्यायधीश जोन लेफकॉओ की इस टिप्पणी ने वहां पर लैंगिक समानता पर बहस छेड़ दी है। इसके बारे में आप विस्तार से यहां और यहां पढ़ सकते हैं।

मेरे विचार में ऑफिस, न्यायालय पर काम की सारी जगहों पर वस्त्र मर्यादित, और सुरिचिपूर्ण होने चाहिये। हां वे काम के अनुसार भी होने चाहिये। समुद्र तट पर लाइफ गार्ड नहाने योग्य कपड़े ही पहनेगें 🙂

उन्मुक्त की पुस्तकों के बारे में यहां पढ़ें।

 

न्यायधीश जोन लेफकॉओ का चित्र इस विडियो से है जिसमें वे अपनी मां की कविता के बारे में बता रहीं हैं।

हिन्दी में नवीनतम पॉडकास्ट Latest podcast in Hindi
 
सुनने के लिये चिन्ह शीर्षक के बाद लगे चिन्ह ► पर चटका लगायें यह आपको इस फाइल के पेज पर ले जायगा। उसके बाद जहां Download और उसके बाद फाइल का नाम अंग्रेजी में लिखा है वहां चटका लगायें।:
Click on the symbol after the heading. This will take you to the page where file is. Click where ‘Download’ and there after name of the file is written.)
यह ऑडियो फइलें ogg फॉरमैट में है। इस फॉरमैट की फाईलों को आप –
  • Windows पर कम से कम Audacity, MPlayer, VLC media player, एवं Winamp में;
  • Mac-OX पर कम से कम Audacity, Mplayer एवं VLC में; और
  • Linux पर सभी प्रोग्रामो में – सुन सकते हैं।
बताये गये चिन्ह पर चटका लगायें या फिर डाउनलोड कर ऊपर बताये प्रोग्राम में सुने या इन प्रोग्रामों मे से किसी एक को अपने कंप्यूटर में डिफॉल्ट में कर लें।
Reblog this post [with Zemanta]

उफ, क्या मैं कभी चैन से सो सकूंगी

यह चिट्ठी एक महिला वकील के बचपन के अनुभवों का जिक्र करती हुई, यौन शिक्षा पर जोर देती है।

‘काश मैं एक रात भी, उन हाथों को सपनो में देखे बिना सो सकती’,

यह कहना है चेन्नाई की एक २४ वर्षीय सफल महिला वकील का।

वे किसके हाथ हैं, वे  सपनो क्यों न आयें, क्या हाथ भी सपनो में किसी को तंग कर सकते हैं?

क्या आप समझ नहीं पाये वे किसके हाथ हैं और वह वकील महिला उनसे क्यों डरती है?

वे हाथ हैं उसके बड़े भाई के, वे हाथ हैं उसके पड़ोसी के।

वे हाथ हैं उसके बड़े भाई के, वे हाथ हैं उसके पड़ोसी के, जिसके यहां वह बचपन में,  अपनी हम उम्र सहेली के यहां लुका छिपी खेलने जाया करती थी।

क्या आप अब भी नहीं समझ नहीं पाये कि वह वकील महिला उनसे क्यों डरती है?

मैं तहलका (Tehlka) पत्रिका का नियमित ग्राहक हूं। हमारे पास इसका अंग्रेजी भाषा का संस्करण आता है। इसमें एक स्तंभ है व्यक्तिगत इतिहास (Personal History) का। १३ सितम्बर के अंक के इस कॉलम के अन्तर्गत इसी महिला  ने इस बारे में

‘I pray that some day I will sleep without seeing those hands in my dreams’

नाम के शीर्षक से लिखे हैं आप इस अंक के लेख को पढ़ें या अन्तरजाल में यहां पढ़ें।

वे मुझेउस जगह छू रहे थे जहांं उन्हें नहीं छूना चाहिये था। वे मुझसे वह करवा रहे थे जो मुझे नहीं करना चाहिये था।


आपको क्या लगता है कि यह महिला झूट बोल रही है?

मुन्ने की मां के अनुसार जो भी इसके साथ हुआ वह अक्सर होता है। यह काम परिवार के लोग या फिर जान पहचान के लोग ही करते हैं।

यह महिला अपने अनुभव में कुछ हद तक अपने को भी को दोषी मानती है।  आपको क्या लगता है क्या वह दोषी है?

लड़की छोटी थी पर उसका भाई बड़ा था। उसका पड़ोसी भी उम्र में बड़ा था। क्या गलती उन दोनो की नहीं है? उन्होंने ऐसा क्यों किया? क्या उन्हें यह सब नहीं समझना चाहिये था? क्या गलती उनके माता पिता की, यह उस समाज की नहीं है जिसने,

  • न तो बड़े भाई को न उस पड़ोसी को उचित यौन शिक्षा दी
  • न ही उस महिला बच्ची को इस मुसीबत से बचाया।

मेरे विचार में शायद उन्हें  ठीक प्रकार से शिक्षा नहीं मिली। उन्हें यह ठीक प्रकार से मिली होती तो वे समझ पाते कि ६ साल की बच्ची पर उनकी हरकतों का क्या असर पड़ेगा।

आपको क्या लगता है कि क्या यौन शिक्षा नहीं होनी चाहिये?

मेरे विचार से यौन शिक्षा होनी चाहिये। मैं इसका पक्षधर हूं। अक्सर लोग इसका विरोध इसलिये करते हैं क्योंकि वे इसका अर्थ गलत समझते हैं। वे समझते हैं कि इसका सम्बन्ध केवल सम्भोग  या फिर प्रजनन से है। यह सोच ठीक नहीं है। यौन शिक्षा का अर्थ कुछ और है।  इस तरह की बातें परिवार समाज में होती हैं। मैंने पिछले साल लिखा था कि,

  • मेरी मां ने किस प्रकार से मुझे किस तरह से इससे दूर रखा
  • किस तरह से इस सच्चाई से अवगत कराया,
  • मुझे किस तरह यौन शिक्षा मिली, और
  • मैंने अपनी अगली पीढ़ी को इसके बारे में बताया।

मेरे विचार में यौन शिक्षा जरूरी है और यह किस तरह से हो उसके बारे में विचार जरूरी है।

क्या वह लड़की कभी ठीक से सो सकेगी? आशा करता हूं कि उसका वैवाहिक जीवन सुखी रहेगा।

तहलका में लिखे लेख को पढ़ने के लिये इस चित्र पर चटका लगायें।

उन्मुक्त की पुस्तकों के बारे में यहां पढ़ें।

इस चिट्ठी पर सारे चित्र तहलका के सौजन्य से हैं।

यौन शिक्षा क्या है और वह क्यों जरूरी है – कुछ लेख

यौन शिक्षा।। यहां सेक्स पर बात करना वर्जित है: हमने जानी है जमाने में रमती खुशबू।। यौन शिक्षा जरूरी है।। Trans-gendered – सेक्स परिवर्तित पुरुष या स्त्री।। मैं लड़के के शरीर में कैद थी।। मां को दिल की बात कैसे बतायें।।  क्या, अंतरजाल तकनीक पर काम करने वालों पर, वाई क्रोमोसोम हावी है?।।

हिन्दी में नवीनतम पॉडकास्ट Latest podcast in Hindi

(सुनने के लिये चिन्ह शीर्षक के बाद लगे चिन्ह ► पर चटका लगायें यह आपको इस फाइल के पेज पर ले जायगा। उसके बाद जहां Download और उसके बाद फाइल का नाम अंग्रेजी में लिखा है वहां चटका लगायें।: Click on the symbol ► after the heading. This will take you to the page where file is. Click where ‘Download’ and there after name of the file is written.)

  • नानी पालकीवाला – एक जीवनी
  • वह तारा 

यह ऑडियो फइलें ogg फॉरमैट में है। इस फॉरमैट की फाईलों को आप –

  • Windows पर कम से कम Audacity, MPlayer, VLC media player, एवं Winamp में;
  • Mac-OX पर कम से कम Audacity, Mplayer एवं VLC में; और
  • Linux पर सभी प्रोग्रामो में – सुन सकते हैं।

बताये गये चिन्ह पर चटका लगायें या फिर डाउनलोड कर ऊपर बताये प्रोग्राम में सुने या इन प्रोग्रामों मे से किसी एक को अपने कंप्यूटर में डिफॉल्ट में कर लें।

सांकेतिक शब्द

culture, life, Sex education, जीवन शैली, समाज, कैसे जियें, जीवन दर्शन, जी भर कर जियो, दर्शन, यौन शिक्षा,

मैं लड़के के शरीर में कैद थी

gazal.jpg

‘मैं ग़ज़ल हूं। मैं २४ साल पुरुष शरीर के अन्दर, कैद रही 😦 शल्यचिकित्सा से आज़ाद हुई। बहुत समय निकल गया, बहुत कुछ रह गया, छूट गया, बहुत कुछ पाना है – कपड़े, चूड़ियां, बालियां, मेकअप पर मैंने जीवन की सबसे महत्वपूर्ण चीज़ पा ली – जो अक्सर लोगों से छूट जाती है – ज़िंदगी 🙂 ‘

लिङ्ग डिज़िटल नहीं होता इसे आप दो भाग में नहीं बांट सकते हैं। इसके कुछ रूप और भी हैं। मैंने कुछ समय पहले अपने उन्मुक्त चिट्ठे पर ‘Trans-gendered – सेक्स परिवर्तित पुरुष या स्त्री‘ नामक चिट्ठी में उन लोगों की चर्चा की थी जिन्हें प्रकृति अलग तरह से बनाती है – मस्तिष्क, लिङ्ग का देती है और शरीर, दूसरे लिङ्ग का। इस चिट्ठी में मैंने इन लोगों की परेशानियों के बारे में लिखा था और एक टीवी कंपनी के ओछे विज्ञापन का जिक्र किया था, जिसके खिलाफ कुछ लिखा पढ़ी की। हमारा समाज ऐसे लोगों की पीड़ा समझना तो दूर, इनका मजाक बनाने मे भी पीछे नहीं रहता। मैंने इसी तरह के विचार शास्त्री जी इस चिट्ठी पर भी दिये थे।

ग़ज़ल चंडीगढ़ में, गुनराज़ नाम का लड़का थीं। लड़के के रूप में, इंजीनियर बनी। पिछले साल, शल्यचिकित्सा के द्वारा स्वतंत्र की गयीं। उन्होने अपनी यह भावनात्मक यात्रा, बेहतरीन तरीके से ‘द वीक‘ पत्रिका ने ९ मार्च के अंक पर लिखी है। यदि आपने यह नही पढ़ी हो तो यहां जा कर अवश्य पढ़ें। इस चिट्ठी में प्रकाशित ग़ज़ल के चित्रों को श्री संजय अहलवात ने खींचा है। यह तीनों चित्र ‘द वीक’ के उसी लेख से, उसी पत्रिका के सौजन्य से हैं।

‘उन्मुक्त जी, तीन चित्र? यहां तो एक ही है’

जी हां, मैंने तीन चित्रों को जोड़ कर एक किया। उसके बाद उसका आकार और पिक्सल कम करके यहां प्रकाशित किया है। यह सारा काम मैंने जिम्प (GIMP) प्रोग्राम से किया है। यह न केवल मुफ्त है पर मुक्त भी। यह सारे ऑपरेटिंग सिस्टम में चलता है और बेहतरीन प्रोग्राम है। जी हां, यह विंडोज़ पर भी चलता है। यह हमारी सारी जरूरतों को पूरा करता है। यदि यह आपके पास यह है तो आपको फोटोशॉप खरीदने की या फिर … करने की कोई जरूरत नहीं। आप एक बार स्वयं ,इस पर काम करके क्यों नहीं देखते।

‘उन्मुक्त जी, एक बात समझ में नहीं आयी?’

अरे, शर्माना कैसा, तुरन्त पूछिये।

‘आप घूम फिर कर ओपेन सोर्स पर क्यों पहुंच जाते हैं?’

गज़ल स्वयं अपना चिट्ठा A little hope… A little happiness के नाम से लिखा है। इसमें न केवल वे अपनी कहानी बताती हैं पर ऐसे लोगों को सलाह भी देती हैं जो अपने को उनकी तरह कैद पाते हैं।

उन्मुक्त की पुस्तकों के बारे में यहां पढ़ें।

सांकेतिक शब्द

culture, life, Sex education, जीवन शैली, समाज, कैसे जियें, जीवन दर्शन, जी भर कर जियो, दर्शन, यौन शिक्षा,

यौन शिक्षा जरूरी है

मैं समलैंगिक रिश्तों का हिमायती नहीं हूं पर ऐसे लोगो को हेय दृष्टि से देखना, या उनके साथ भेदभाव करना, गलत समझता हूं।

कुछ व्यक्ति, दो लिंगों के बीच फंस (intersex) जाते हैं। मैं ऐसे लोगों का मजाक बनाना गलत समझता हूं। मेरे विचार से लिंग डिज़िटल नहीं होता। इसे दो भागों में नहीं बांटा जा सकता हैं। इसके कुछ और रूप भी हैं। जो हर युग में, हर जगह, हर सभ्यता में पाये जाते हैं। मेरे विचार से ईश्वर – शायद प्रकृति कहना उचित होगा – इन्हें इसी तरह से बनाया है। इन्हे हास्य का पात्र बनाना अनुचित है। हमें इन्हें ऐसे ही स्वीकर करना चाहिये।

इस सब के साथ, मैं यौन शिक्षा का भी हिमायती हूं। मेरे विचार से, इसकी प्ररंभिक शिक्षा घर में ही होनी चाहिये। यह आजकल खास तौर से जरूरी है जब अंतरजाल में सब तरह की ब्लू फिल्म देखने को आसानी से मिल जाती है। टीवी के प्रोग्राम भी कुछ कम नहीं हैं।

time.jpg

यही कारण है कि मैंने अपने उन्मुक्त चिट्ठे पर चार चिट्ठियां ‘Trans-gendered – सेक्स परिवर्तित पुरुष या स्त्री‘, ‘यहां सेक्स पर बात करना वर्जित है‘, ‘यौन शिक्षा‘,’ यौन शिक्षा और सांख्यिकी‘, नाम से लिखीं। छुट-पुट चिट्ठे पर भी तीन चिट्ठियां ‘चार बराबर पांच, पांच बराबर चार, चार…‘, ‘आईने, आईने, यह तो बता – दुनिया मे सबसे सुन्दर कौन‘, ‘मां को दिल की बात कैसे बतायें‘ लिखीं। हां, ‘मां को को दिल की बात पता चली‘।
इन चिट्ठियों का संदर्भ कुछ अलग, अलग है। इसलिये यह यौन शिक्षा, जैसा हम समझते हैं, वैसी नहीं हैं पर इनमें यौन शिक्षा का महत्व या भ्रांतियों को अलग, अलग तरह से बताने का प्रयत्न किया है।

यौन शिक्षा‘ की चिट्ठी पर मैं एक कविता पर दुख, आक्रोश प्रगट कर, यह कहने का प्रयत्न कर रहा था कि बच्चों को ही नहीं, पर बड़ो को भी यौन शिक्षा की जरूरत है और महिला या बालिका शोषण का हल, बालक शोषण नहीं है। बालक भी, उतने ही यौन शोषण के शिकार होते हैं जितना कि बालिकायें या फिर महिलायें – शायद उनसे ज्यादा। आज के दैनिक जागरण की यह खबर कुछ इस तरफ इशारा करती है।

उन्मुक्त की पुस्तकों के बारे में यहां पढ़ें।

संबन्धित लेख

सांकेतिक शब्द

culture, life, जीवन शैली, समाज, कैसे जियें, जीवन दर्शन, जी भर कर जियो,

%d bloggers like this: