मैंने ‘ज्योतिष, अंक विद्या, हस्तरेखा विद्या, और टोने-टुटके’ श्रृंखला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिये लिखी

मैंने इस चिट्ठे की पिछली चिट्ठी में बताया था कि मैंने ‘ज्योतिष, अंक विद्या, हस्तरेखा विद्या, और टोने-टुटके‘ श्रृंखला ज्योतिष पर विश्वास करने वालों का मजाक बनाने के लिये या किसी की आस्था या विश्वास पर चोट पहुंचाने के लिये नहीं लिखी थी और वायदा किया कि इसके लिखने का कारण बताउंगा। इस चिट्ठी इस श्रृंखला के लिखने का कारण है। Read more of this post

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इंटरनेट (अन्तरजाल) का प्रयोग – मौलिक अधिकार है

अन्तरजाल पर कॉपीराइट का उल्लंघन रोकना मुश्किल है। इसको रोकने के लिये नये नये तरीके ढूंढे जा रहे नये नये कानून भी बन रहे हैं। नये कानूनों की वैधता को भी न्यायालयों में चुनौती दी जा रही है। तकनीक के विकास के साथ, कानून का भी विकास हो रहा है। internet_dog

(Cartoon by Peter Steiner. The New Yorker, July 5, 1993
issue [Vol.69 no. 20] page 61 – taken from here.)

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गाना, विडियो अपलोड करने वालों – सावधान

मैंने कुछ समय पहले उन्मुक्त चिट्ठे पर अंतरजाल की मायानगरी में नामक एक श्रंखला लिखी थी। इस चिट्ठी में वेब के इतिहास, उसके आविष्कार, उसके भविष्य, उसके कारण उठ रही मुश्किलों, सवालों और कानूनी अड़चनों के बारे में चर्चा की गयी है। इसकी एक कड़ी ‘गोलमाल है भाई गोलमाल‘ में बताया था

‘बाज़ार में हर तरह की सीडी मिलती – कानूनी, गैर कानूनी। यदि आप कानूनी वीडियो या संगीत की सीडी खरीदते हैं तो उसे आप सुन तो सकते हैं पर उसे या उसके भाग को किसी वेबसाइट {(जैसे यूट्यूब (youtube) या ईस्निप्स् (esnips)} पर अपलोड कर, उसे सार्वजनिक कर देना, गलत है। यह कॉपीराइट का उल्लंघन है। गाने अपलोड करना कॉपीराइट का उल्लंघन है।’

यह भी सच कि कुछ परिस्थितियों में कॉपीराइट का उल्लंघन नहीं होगा। इस बारे में आप मेरी चिट्ठी, ‘मुज़रिम उन्मुक्त, हाज़िर हों‘ पर पढ़ सकते हैं।

अमेरिका में, युनिवर्सल म्यूज़िक ग्रुप ने, जैमी थॉमस रैसेट (Jammie Thomas Rasset) नामक महिला पर मुकदमा चलाया कि उसने २४ गानों को अपलोड कर दूसरों को कॉपी करने की सुविधा दी। इस मुकदमे में जैjammie thomas kidsमी का कहना था कि उसने कोई गाना अपलोड नहीं किया था।

जैमी थॉमस रैसेट अपने दो पुत्रों के साथ

जैमी के ऊपर पहले चला मुकदमा, जूरी को ठीक से न निर्देश देने के कारण रद्द कर दिया गया। उसके ऊपर फिर से मुकदमा चलाया गया। उनके पहले वकील ब्राइन टोडर (Brian Toder) ने उन्हे पैसे न मिलने के कारण मुकदमे से अपना नाम, न्यायालय से अनुमति मिलने के बाद हटा दिया था। जैमी के नये वकील, २५ साल के किवि कामारा (Kiwi Camara) हैं।

कामारा ने १९ साल की उम्र में हावर्ड विश्वविद्यालय में कानून का दाख़िला लिया था। वे हावर्ड से कानून की शिक्षा लेने वाले सबसे कम उम्र के विद्यार्थी है। वे यह मुकदमा बिना कोई फ़ीस लिये कर रहे थे। उनके मुताबिक उन्होंने यह मुकkiwi camaraदमा इसलिये लिया ताकि अन्य मुक़द्दमों में यह नज़ीर बन सके।

जैमी के वकील किवी कामारा

जूरी ने, जैमी की कोई बात नहीं मानी और उस पर ८०,००० डॉलर प्रति गाना, कुल १९ लाख २० हज़ार डॉलर का जुर्माना लगाया गया। यह इस तरह का पहला मुकदमा है।

माना जैमी गलत है।  लेकिन फिर भी क्या एक गाने के लिये ८०,००० डॉलर सही है?

इस बारे में, आप विस्तार से, नीचे ज़मेन्टा के द्वारा बताये सम्बन्धित लिखों में पढ़ सकते हैं।

 

उन्मुक्त की पुस्तकों के बारे में यहां पढ़ें।

इस चिट्ठी का पहला चित्र यहां और दूसरा  यहां से लिया गया है।

अंतरजाल की मायानगरी में

टिम बरनर्स् ली।। इंटरनेट क्या होता है।। वेब क्या होता है।। वेब २.०।। सॅमेंटिक वेब क्या है और विकिपीडिया का महत्व।। लिकिंग, क्या यह गलत है।। चित्र जोड़ना – यह ठीक नहीं।। फ्रेमिंग भी ठीक नहीं।। बैंडविड्थ की चोरी – क्या यह गैर कानूनी है।। बैंडविड्थ की चोरी – कब गैरकानूनी है।। डोमेन नाम विवाद क्या होता है।। समान डोमेन नाम विवाद नीति, साइबर और टाइपो स्कवैटिंग।। की वर्ड और मॅटा टैग विवाद।। गोलमाल है भाई गोलमाल।। गाना, विडियो अपलोड करने वालों – सावधान।। अन्तरजाल पर कानून में टकराव।। समकक्ष कंप्यूटर के बीच फाइल शेयरिंग।। शॉ फैनिंग, नैपस्टर सॉफ्टवेयर, और उस पर चला मुकदमा।। कज़ा केस।। ग्रॉकस्टर केस।। ग्रॉकस्टर केस में अमेरिकी सर्वोच्च न्यायालय का फैसला।।

ज़ेमन्टा के द्वारा बताये गये सम्बन्धित लेख

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महिलाओं की स्कर्ट छोटी नहीं हो सकती

‘पुरुषों की ब्रीफ तो लम्बी हो सकती है पर महिलाओं की स्कर्ट ब्रीफ नहीं हो सकती। नेकटाई मर्यादित होनी चाहिये मूर्खतापूर्ण नहीं।’

यह विचार थे – १९ मई इंडियानापोलीस में  हुई वकीलों और न्यायधीशों की  वार्षिक मिली जुली बैठक के।

इस बैठक में वकीलों के वस्त्र पहनने के तरीके की बात, ९ जनवरी १९४४ मैं जन्मी, राष्ट्रपती बिल क्लिंटन के द्वारा Federal Judge Joan Lefkow३० जून २००० में नियक्ति की गयी, इलीनॉए की फैडरल न्यायधीश जोन लेफकॉओ (federal judge, Joan H. Lefkow of the Northern District of Illinois) ने उठायी।

फैडरल न्यायधीश जोन लेफकॉओ ने अपने न्यायलय का एक किस्सा बताया जब उनके न्यायालय में एक महिला एस तरह के वस्त्र पहन कर आयी जैसे कि वह किसी व्यामशाला से कसरत कर के आयी हो। बैठक में अन्य न्यायधीशों और वकीलों ने भी इस विषय पर अपने विचार दिये कि कई महिलायें की स्कर्ट और ब्लॉउस इतने छोटे होते हैं कि नज़र उस पर चली जाती है। उनके इस तरह के वस्त्र पहनना आपत्तिजनक है

यहां गौर करने की बात है कि अपने देश में वकीलों (पुरुष एवं महिला दोनो को) की वस्त्र निर्धारित है जिसमें बैन्ड और गाउन पहनना पड़ता है। बैन्ड बन्द गले के कोट, या बन्द गले की शर्ट, ब्लाउस, कुर्ते पर लगाया जा सकता है पर अमेरिका में वकीलों के लिये कोई भी वस्त्र निर्धारित नहीं है। हांलाकि जहां तक मुझे याद पड़ता है कि अपने देश में भी न्यायधीश चन्द्रचूड़ ने एक बार सर्वोच्च न्यायालय में एक महिला को जीन्स वा इतनी लिपिस्टिक लगा कर न्यायालय में आने से मना किया था।

बेथ ब्रिकिंमैन (Beth Brinkmann) अमेरिका में सॉलिसिटर जेनरल के ऑफिस में काम करती थीं। अमेरिक के सर्वोच्च न्यायालय में वे एक बार भूरी स्कर्ट पहन कर बहस करने चली गयीं। इस पर वहां के न्यायधीशों ने आपत्ति की। हांलाकि सॉलिसिटर जेनरल ने उनका बचाव किया पर उसके बाद वहां काम करने वाली सारी महिलाओं ने काले रंग की स्कर्ट पहनना शुरू कर दिया। यह भी प्रसांगिक है कि इस समय बेथ ब्रिकिंमैन का नाम भी सर्वोच्च न्यायालय में न्यायधीश बनाने जाने पर विचार किया जा रहा है।


 

यह गौरतलब है  कि फैडरल न्यायधीश जोन लेफकॉओ जिनहोंने यह विषय १९ मई में हो रही बैठक में उठाया था वे स्वयं मर्यादित एवं सुरुचिपूर्ण (elegant) वस्त्र पहनने के लिये जानी जाती हैं। उन्होंने महिलाओं को कॉर्परीएटी  (Corporette) चिट्ठे को भी पढ़ने की सलाह दी कि वे इसे देखें कि किस तरह के वस्त्र पहनने चाहिये। मैंने इस चिट्ठे को देखा। इसकी सलाह मुझे अच्छी लगी पर यह पश्चमी वस्त्रों के बारे में बात करती है न कि भारतीय परिधानों के बारे में। आजकल भारत में भी बहुत सी महिलायें पश्चमी वस्त्र पहनना पसन्द करतीं है। उनके लिये यह चिट्टा अच्छा है। मैं तो यह जानना चाहूंगा कि क्या इस तरह का कोई चिट्ठा पुरुषों के लिये या महिलाओं के भारतीय परिधानों के लिये है?

बहस कोई अन्त नहीं है। अमेरिका में न्यायधीश जोन लेफकॉओ की इस टिप्पणी ने वहां पर लैंगिक समानता पर बहस छेड़ दी है। इसके बारे में आप विस्तार से यहां और यहां पढ़ सकते हैं।

मेरे विचार में ऑफिस, न्यायालय पर काम की सारी जगहों पर वस्त्र मर्यादित, और सुरिचिपूर्ण होने चाहिये। हां वे काम के अनुसार भी होने चाहिये। समुद्र तट पर लाइफ गार्ड नहाने योग्य कपड़े ही पहनेगें 🙂

उन्मुक्त की पुस्तकों के बारे में यहां पढ़ें।

 

न्यायधीश जोन लेफकॉओ का चित्र इस विडियो से है जिसमें वे अपनी मां की कविता के बारे में बता रहीं हैं।

हिन्दी में नवीनतम पॉडकास्ट Latest podcast in Hindi
 
सुनने के लिये चिन्ह शीर्षक के बाद लगे चिन्ह ► पर चटका लगायें यह आपको इस फाइल के पेज पर ले जायगा। उसके बाद जहां Download और उसके बाद फाइल का नाम अंग्रेजी में लिखा है वहां चटका लगायें।:
Click on the symbol after the heading. This will take you to the page where file is. Click where ‘Download’ and there after name of the file is written.)
यह ऑडियो फइलें ogg फॉरमैट में है। इस फॉरमैट की फाईलों को आप –
  • Windows पर कम से कम Audacity, MPlayer, VLC media player, एवं Winamp में;
  • Mac-OX पर कम से कम Audacity, Mplayer एवं VLC में; और
  • Linux पर सभी प्रोग्रामो में – सुन सकते हैं।
बताये गये चिन्ह पर चटका लगायें या फिर डाउनलोड कर ऊपर बताये प्रोग्राम में सुने या इन प्रोग्रामों मे से किसी एक को अपने कंप्यूटर में डिफॉल्ट में कर लें।
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मैं लड़के के शरीर में कैद थी

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‘मैं ग़ज़ल हूं। मैं २४ साल पुरुष शरीर के अन्दर, कैद रही 😦 शल्यचिकित्सा से आज़ाद हुई। बहुत समय निकल गया, बहुत कुछ रह गया, छूट गया, बहुत कुछ पाना है – कपड़े, चूड़ियां, बालियां, मेकअप पर मैंने जीवन की सबसे महत्वपूर्ण चीज़ पा ली – जो अक्सर लोगों से छूट जाती है – ज़िंदगी 🙂 ‘

लिङ्ग डिज़िटल नहीं होता इसे आप दो भाग में नहीं बांट सकते हैं। इसके कुछ रूप और भी हैं। मैंने कुछ समय पहले अपने उन्मुक्त चिट्ठे पर ‘Trans-gendered – सेक्स परिवर्तित पुरुष या स्त्री‘ नामक चिट्ठी में उन लोगों की चर्चा की थी जिन्हें प्रकृति अलग तरह से बनाती है – मस्तिष्क, लिङ्ग का देती है और शरीर, दूसरे लिङ्ग का। इस चिट्ठी में मैंने इन लोगों की परेशानियों के बारे में लिखा था और एक टीवी कंपनी के ओछे विज्ञापन का जिक्र किया था, जिसके खिलाफ कुछ लिखा पढ़ी की। हमारा समाज ऐसे लोगों की पीड़ा समझना तो दूर, इनका मजाक बनाने मे भी पीछे नहीं रहता। मैंने इसी तरह के विचार शास्त्री जी इस चिट्ठी पर भी दिये थे।

ग़ज़ल चंडीगढ़ में, गुनराज़ नाम का लड़का थीं। लड़के के रूप में, इंजीनियर बनी। पिछले साल, शल्यचिकित्सा के द्वारा स्वतंत्र की गयीं। उन्होने अपनी यह भावनात्मक यात्रा, बेहतरीन तरीके से ‘द वीक‘ पत्रिका ने ९ मार्च के अंक पर लिखी है। यदि आपने यह नही पढ़ी हो तो यहां जा कर अवश्य पढ़ें। इस चिट्ठी में प्रकाशित ग़ज़ल के चित्रों को श्री संजय अहलवात ने खींचा है। यह तीनों चित्र ‘द वीक’ के उसी लेख से, उसी पत्रिका के सौजन्य से हैं।

‘उन्मुक्त जी, तीन चित्र? यहां तो एक ही है’

जी हां, मैंने तीन चित्रों को जोड़ कर एक किया। उसके बाद उसका आकार और पिक्सल कम करके यहां प्रकाशित किया है। यह सारा काम मैंने जिम्प (GIMP) प्रोग्राम से किया है। यह न केवल मुफ्त है पर मुक्त भी। यह सारे ऑपरेटिंग सिस्टम में चलता है और बेहतरीन प्रोग्राम है। जी हां, यह विंडोज़ पर भी चलता है। यह हमारी सारी जरूरतों को पूरा करता है। यदि यह आपके पास यह है तो आपको फोटोशॉप खरीदने की या फिर … करने की कोई जरूरत नहीं। आप एक बार स्वयं ,इस पर काम करके क्यों नहीं देखते।

‘उन्मुक्त जी, एक बात समझ में नहीं आयी?’

अरे, शर्माना कैसा, तुरन्त पूछिये।

‘आप घूम फिर कर ओपेन सोर्स पर क्यों पहुंच जाते हैं?’

गज़ल स्वयं अपना चिट्ठा A little hope… A little happiness के नाम से लिखा है। इसमें न केवल वे अपनी कहानी बताती हैं पर ऐसे लोगों को सलाह भी देती हैं जो अपने को उनकी तरह कैद पाते हैं।

उन्मुक्त की पुस्तकों के बारे में यहां पढ़ें।

सांकेतिक शब्द

culture, life, Sex education, जीवन शैली, समाज, कैसे जियें, जीवन दर्शन, जी भर कर जियो, दर्शन, यौन शिक्षा,

यौन शिक्षा जरूरी है

मैं समलैंगिक रिश्तों का हिमायती नहीं हूं पर ऐसे लोगो को हेय दृष्टि से देखना, या उनके साथ भेदभाव करना, गलत समझता हूं।

कुछ व्यक्ति, दो लिंगों के बीच फंस (intersex) जाते हैं। मैं ऐसे लोगों का मजाक बनाना गलत समझता हूं। मेरे विचार से लिंग डिज़िटल नहीं होता। इसे दो भागों में नहीं बांटा जा सकता हैं। इसके कुछ और रूप भी हैं। जो हर युग में, हर जगह, हर सभ्यता में पाये जाते हैं। मेरे विचार से ईश्वर – शायद प्रकृति कहना उचित होगा – इन्हें इसी तरह से बनाया है। इन्हे हास्य का पात्र बनाना अनुचित है। हमें इन्हें ऐसे ही स्वीकर करना चाहिये।

इस सब के साथ, मैं यौन शिक्षा का भी हिमायती हूं। मेरे विचार से, इसकी प्ररंभिक शिक्षा घर में ही होनी चाहिये। यह आजकल खास तौर से जरूरी है जब अंतरजाल में सब तरह की ब्लू फिल्म देखने को आसानी से मिल जाती है। टीवी के प्रोग्राम भी कुछ कम नहीं हैं।

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यही कारण है कि मैंने अपने उन्मुक्त चिट्ठे पर चार चिट्ठियां ‘Trans-gendered – सेक्स परिवर्तित पुरुष या स्त्री‘, ‘यहां सेक्स पर बात करना वर्जित है‘, ‘यौन शिक्षा‘,’ यौन शिक्षा और सांख्यिकी‘, नाम से लिखीं। छुट-पुट चिट्ठे पर भी तीन चिट्ठियां ‘चार बराबर पांच, पांच बराबर चार, चार…‘, ‘आईने, आईने, यह तो बता – दुनिया मे सबसे सुन्दर कौन‘, ‘मां को दिल की बात कैसे बतायें‘ लिखीं। हां, ‘मां को को दिल की बात पता चली‘।
इन चिट्ठियों का संदर्भ कुछ अलग, अलग है। इसलिये यह यौन शिक्षा, जैसा हम समझते हैं, वैसी नहीं हैं पर इनमें यौन शिक्षा का महत्व या भ्रांतियों को अलग, अलग तरह से बताने का प्रयत्न किया है।

यौन शिक्षा‘ की चिट्ठी पर मैं एक कविता पर दुख, आक्रोश प्रगट कर, यह कहने का प्रयत्न कर रहा था कि बच्चों को ही नहीं, पर बड़ो को भी यौन शिक्षा की जरूरत है और महिला या बालिका शोषण का हल, बालक शोषण नहीं है। बालक भी, उतने ही यौन शोषण के शिकार होते हैं जितना कि बालिकायें या फिर महिलायें – शायद उनसे ज्यादा। आज के दैनिक जागरण की यह खबर कुछ इस तरफ इशारा करती है।

उन्मुक्त की पुस्तकों के बारे में यहां पढ़ें।

संबन्धित लेख

सांकेतिक शब्द

culture, life, जीवन शैली, समाज, कैसे जियें, जीवन दर्शन, जी भर कर जियो,

बचपन की प्रिय पुस्तकें

कुछ समय पहले मैंने जूले वर्न के बारे में चिट्ठी पोस्ट की थी। इस चिट्ठी में उनकी कई और पुस्तकों का जिक्र किया था। यह सारी पुस्तकें तथा अंग्रेजी साहित्य एवं अन्य भाषाओं में लिखे प्रसिद्ध उपन्यास, मैंने अपने बचपन में पढ़े थे। इसमें अधिकतर हिन्दी में ही थे। count-of-monte-christo

जुले वर्न की पुस्तक अस्सी दिन में दुनिया की सैर वाली चिट्ठी पोस्ट करते समय मैंने इन पुस्तकों फिर से ढ़ूढ़ना शुरु किया। मुझे यह फिर से मिली और मैंने इनका पूरा सेट फिर से खरीद लिया। यह पुस्तके हैं,

  • 20,000 Leagues Under the Sea समुद्री दुनिया की रोमांचकारी यात्राएं
  • Alice in Wonderland जादूनगरी
  • Anderson’s Fairy Tales बर्फ की रानी
  • Around the World in 80 Days अस्सी दिन में दुनिया की सैर
  • Black Beauty काला घोड़ा
  • Black Tulip काला फूल
  • Call of the Wild जंगल की कहानी
  • Coral Island मूंगे का द्वीप
  • Count of Monte Christo कैदी की करामात
  • David Copperfield डेविड कापरफील्ड Don Quiote तीसमार खां
  • Grimm’s Fairy Tales परियों की कहानियां
  • Gulliver’s Travels गुलिवर की यात्राएं
  • Ivanhoe वीर सिपाही
  • Kidnapped चांदी का बटन
  • Moby Dick मोबी डिक
  • Pinnochio कठपुतला
  • Robinhood राबिनहुड
  • Robinson Crusoe राबिन्सन क्रूसो
  • Swiss Family Robinson अद्भुत द्वीप
  • Talisman चमत्कारी ताबीज
  • The Seven Voyages of Sindbad सिंदबाद की सात यात्राएं
  • Three Musketeers तीन तिलंगे
  • Tom Sawyer बहादुर टाम
  • Treasure Island खजाने की खोज में

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हमारी शिक्षा प्रणाली

न्यू यॉर्क टाईम्स में एक लेख A College Education Without Job Prospects के नाम से निकला है। पढ़ कर लगा कि शायद ठीक ही कहता है। अपने देश में इम्तिहान में नम्बरों पर कुछ कर ज्यादा ही जोर रहता है और व्यक्तित्व के विकास पर कम।

कुछ साल पहले, आई.आई.टी. कानपुर की दीक्षान्त समारोह में रहने का मौका मिला था। वहां पर उस मौके पर बांटे जाने वाली पत्रिका भी देखने को मिली थी। इसमें,

  • वहां पर हर साल दाखिला लेने वाले उस लड़के का नाम जिसे जे.ई.ई. में सबसे अच्छी रैंकिंग मिली थी;
  • पास होने वाले लड़को में से प्रेसीडेन्ट का पुरुस्कार पाने वाले लड़के का नाम; और
  • २५ साल बाद सबसे अच्छे पुरातन छात्र का पुरुस्कार पाने वाले का नाम था।

२५ साल बाद सबसे अच्छे पुरातन छात्र का पुरुस्कार प्राप्त करने वाला छात्र पहले वाले श्रेणियों वाला छात्र नहीं था।

केवल इम्तिहान में रट कर अच्छे नम्बर ले आना ही जीवन को सफल नहीं बना सकता – शायद यही हमारी शिक्षा प्रणाली की सबसे बड़ी कमी है।

उन्मुक्त की पुस्तकों के बारे में यहां पढ़ें।

सही – गलत

आज कल हिन्दे चिट्ठे जगत पर हिन्दी को ठीक लिखने ओर उसके सही करने तरीके पर बहस चल रही है। इसकी कुछ झलकियां आप यहां, यहां और यहां देख सकते हैं। यह बहस हिन्दी भाषा तक ही सीमित नहीं है, अंग्रेजी में भी बहस चलती रहती है पर अक्सर यह तय करना मुश्किल है कि क्या सही है और क्या गलत।

अब नील आर्मस्ट्रौंग के उस वाक्य को ही ले लें जो उन्होने २० जुलाई १९६९ को चन्द्रमा पर पहला कदम रखते समय दिया था। नासा केे मुताबिक, आर्मस्ट्रौंग नेे कहा था,

‘That’s one small step for man, one giant leap for mankind.’

अंग्रेजी व्याकरण विशेष्ज्ञों के अनुसार man के पहले a होना चाहिये था। आर्मस्ट्रौंग का भी कहना था कि उसने a कहा था। अब ऑस्ट्रेलिया के कंप्यूटर प्रोग्रामर पीटर शैन फोर्ड ने कंप्यूटर से टेस्ट करके बताया है कि a शब्द बोला गया था। यानी कि आर्मस्ट्रौंग ने यह कहा था कि,

‘That’s one small step for a man, one giant leap for mankind’,

पर दोनो में से कौन सा वाक्य व्याकरण की दृष्टि में सही है।

मैं अंग्रेजी भाषा का ज्ञाता तो नहीं हूं पर मेरे विचार से दोनो वाक्य सही हैं। गलत और सही तो इस बात पर निर्भर करता है कि नील आर्मस्ट्रौंग, कहना क्या चाहते थे? यदि वे यह कहना चाहते थे कि,

‘एक मानव के लिये छोटा कदम, पर मानव जाति के लिये लम्बी छलांग’

तो बेशक a प्रयोग करना चाहिये था। यदि वे कहना चाहते थे कि,

‘मानव के लिये छोटा कदम, पर मानव जाति के लिये लम्बी छलांग’

तो a का प्रयोग ठीक नहीं था।

सच में, यदि मैं उनकी जगह होता तो a शब्द का प्रयोग नहीं करता। मेरे विचार से उस अवसर के लिये उपयुक्त वाक्य था ‘मानव के लिये छोटा कदम, पर मानव जाति के लिये लम्बी छलांग’ न कि ‘एक मानव के लिये छोटा कदम, पर मानव जाति के लिये लम्बी छलांग’।

यह सच है कि वह कदम तो एक व्यक्ति (नील आर्मस्ट्रौंग) ने लिया था पर वह हज़ारों लोगों की मेहनत का फल था; वह कदम उन सब की आकांक्षाओं का फल था। मैं उसे एक व्यक्ति के कदम से न जोड़ कर सबसे जोड़ने की बात करता।

देखते हैं कि हिन्दी चिट्टे जगत में यह बहस कितने दिन और चलती है।

खास चिट्ठा

चिट्ठे तो बहुत से हैं पर यह चिट्ठा और इसके YouTube तो सबसे खास हैं, सबसे अलग। हों भी क्यों ना, यह चिट्ठा है अनुशेह अन्सारी का – पहली ईरानियन अमेरिकन स्पेस महिला का। इससे क्या फर्क पड़ता है कि वे व्यक्तिगत रूप से गयीं थीं।

इस चिट्ठे में है, दुनिया की स्पेस से लिखी पहली चिट्ठी और कुछ वह़ां कि बातें – वह भी एक महिला के नजर से।

मुझे तो रोचक लगा

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