वर्ड प्रेस पर हिन्दी चिट्ठे की एक और मुश्किल और उसका हल

मुझे वर्ड प्रेस के हिन्दी चिट्ठे मे कई ऐसी मुशकिलों का सामाना करना पड़ रहा है जो कि ब्लौगर वाले चिट्ठे में नहीं हैं। इनमे से एक के बारे मे मैने Error 404 की चिट्ठी मे बताया था। उस मुश्किल को पार करने बाद मैने यही समझा था कि अब कोई और मुश्किल का सामना नहीं करना पड़ेगा, पर मैं गलत था।

मैने जून के प्रथम और अन्तिम सप्ताह मे ‘ओपेन सोर्स सौफ्टवेयर एवं लिनेक्स‘ और ‘साधू, फुटबाल, और संगम‘ नामक दो चिट्ठियां पोस्ट कीं। इन पर शायद कोई पाठक आयें हों पर कोई टिप्पणी नहीं आयी। मेरी चिट्ठियों के साथ अक्सर ऐसा ही होता है इसलिये मैने इसे साधारण बात मान कर कोई गौर नहीं किया।

जुलाई के प्रथम सप्ताह में ‘साधू, फुटबाल, और संगम’ पर देबाशीष जी ने पहली टिप्पणी की – मैने उसे तुरन्त पढ़ी। उन्होने लिखा कि कि मेरी RSS feed काम नहीं कर रही है, मै उसे ठीक करूं।

मैं लिनेक्स पर काम करता हूं। सारी RSS feed को थन्डर बर्ड पर देखता हूं। उसमे RSS feed एकदम ठीक चल रही थी। मैने उन्हें जवाब दिया कि मेरे विचार से तो ठीक है वे कैसे कह सकते हैं कि यह काम नहीं कर रही है।

देबाशीष जी ने वापस ईमेल भेजी कि यह विन्डोस़ मे इंटरनेट एक्सप्लोरर पर काम नहीं कर रही है। क्योंकि ज्यादातर लोग इंटरनेट एक्सप्लोरर पर चिट्ठों को देखते हैं इसलिये वे लोग इन चिट्ठियों को नहीं देख पा रहें होंगे। उन्होने यह भी बताया कि RSS feed चल रही है या नहीं, यह चेक करने का सबसे अच्छा तरीका है कि इंटरनेट एक्सप्लोरर पर चिट्ठा खोल कर जहां RSS feed लिखा है, वहां पर क्लिक करें। यदि खुल जाय तो ठीक है, नहीं तो समझ लो कि यह काम नहीं कर रही है। मैने इस चिट्ठे पर एक नयी श्रेणी ‘बौद्धिक सम्पदा अधिकार’ डाली थी उनके अनुसार यह नयी श्रेणी ही गड़बड़ी की सारी जड़ है।

मेरा कमप्यूटर विन्डोस़ पर नहीं है। इसलिये मैने साईबर कैफे की शरण ली। देवाशीष जी की बात तो सही थी चिट्ठा ‘बौद्धिक सम्पदा अधिकार’ पर पहुंच कर अटक जाता था। मैने इस श्रेणी को हटा दिया और उसके बाद चिट्ठियों को पुन: save कर लिया। अब RSS feed, इंटरनेट एक्सप्लोरर पर ठीक चलने लगी। इससे लगा कि वर्ड प्रेस के चिट्ठे पर हिन्दी मे श्रेणियां छोटी बनाओ या फिर अंग्रेजी मे बनाओ।

इन सब के बाद लगा कि,

  • हिन्दी चिट्ठे प्रेमियों का आपस का प्रेम ही इसे जीवन प्रदान कर रहा है यदि देबाशीष जी यह कमी नहीं बताते तो शायद मुझे पता ही नहीं चलता; और
  • कुछ पैसा खर्चा करना पड़ेगा – विन्डोस़ और साथ मे नौर्टन एन्टी वायरस की कौपी लेनी पड़ेगी या फिर … 🙂

यदि आप, Trans-gendered के बारे में कुछ जानना चाहें तो उसे मेरे उंमुक्त चिठ्ठे पर यहां देख सकते हैं।

मैने उन्मुक्त के चिट्ठे पर पेटेंट की एक सिरीस शुरू की है यह चार भागों मे है। इसकी भूमिका आप मेरे उन्मुक्त चिट्ठे पर यहां पढ़ सकते हैं और यदि आप इसे पढ़ने के बजाय इसे सुनना पसन्द करें तो इसे मेरे बकबक चिट्ठे पर यहां सुन सकते हैं। यह यह ऑडियो क्लिप, ogg फॉरमैट में है। इस फॉरमैट की फाईलों को आप,

  • Windows पर कम से कम Audacity एवं Winamp में;
  • Linux पर लगभग सभी प्रोग्रामो में; और
  • Mac-OX पर कम से कम Audacity में,

सुन सकते हैं।

मैने इसे ogg फॉरमैट क्यों रखा है यह जानने के लिये आप मेरे उन्मुक्त चिट्ठे की शून्य, जीरो, और बूरबाकी की चिट्ठी यहां पढ़ सकते हैं।

के बारे में उन्मुक्त
मैं हूं उन्मुक्त - हिन्दुस्तान के एक कोने से एक आम भारतीय। मैं हिन्दी मे तीन चिट्ठे लिखता हूं - उन्मुक्त, ' छुट-पुट', और ' लेख'। मैं एक पॉडकास्ट भी ' बकबक' नाम से करता हूं। मेरी पत्नी शुभा अध्यापिका है। वह भी एक चिट्ठा ' मुन्ने के बापू' के नाम से ब्लॉगर पर लिखती है। कुछ समय पहले,  १९ नवम्बर २००६ में, 'द टेलीग्राफ' समाचारपत्र में 'Hitchhiking through a non-English language blog galaxy' नाम से लेख छपा था। इसमें भारतीय भाषा के चिट्ठों का इतिहास, इसकी विविधता, और परिपक्वत्ता की चर्चा थी। इसमें कुछ सूचना हमारे में बारे में भी है, जिसमें कुछ त्रुटियां हैं। इसको ठीक करते हुऐ मेरी पत्नी शुभा ने एक चिट्ठी 'भारतीय भाषाओं के चिट्ठे जगत की सैर' नाम से प्रकाशित की है। इस चिट्ठी हमारे बारे में सारी सूचना है। इसमें यह भी स्पष्ट है कि हम क्यों अज्ञात रूप में चिट्टाकारी करते हैं और इन चिट्ठों का क्या उद्देश्य है। मेरा बेटा मुन्ना वा उसकी पत्नी परी, विदेश में विज्ञान पर शोद्ध करते हैं। मेरे तीनों चिट्ठों एवं पॉडकास्ट की सामग्री तथा मेरे द्वारा खींचे गये चित्र (दूसरी जगह से लिये गये चित्रों में लिंक दी है) क्रिएटिव कॉमनस् शून्य (Creative Commons-0 1.0) लाईसेन्स के अन्तर्गत है। इसमें लेखक कोई भी अधिकार अपने पास नहीं रखता है। अथार्त, मेरे तीनो चिट्ठों, पॉडकास्ट फीड एग्रेगेटर की सारी चिट्ठियां, कौपी-लेफ्टेड हैं या इसे कहने का बेहतर तरीका होगा कि वे कॉपीराइट के झंझट मुक्त हैं। आपको इनका किसी प्रकार से प्रयोग वा संशोधन करने की स्वतंत्रता है। मुझे प्रसन्नता होगी यदि आप ऐसा करते समय इसका श्रेय मुझे (यानि कि उन्मुक्त को), या फिर मेरी उस चिट्ठी/ पॉडकास्ट से लिंक दे दें। मुझसे समपर्क का पता यह है।

2 Responses to वर्ड प्रेस पर हिन्दी चिट्ठे की एक और मुश्किल और उसका हल

  1. रवि says:

    भाई उन्मुक्त,

    आपको विंडोज लेने की जरूरत ही नहीं है. वाइन के जरिए इंटरनेट एक्सप्लोरर 6 लिनक्स पर बढ़िया चलता है.

  2. पिंगबैक: देबाशीष -जन्मदिन के बहाने बातचीत

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