मां को दिल की बात कैसे बतायें
अक्टूबर 11, 2006 8 टिप्पणियां
मां को कैसे बतायें – यह भी कोई चर्चा का विषय है?
है तो …
मैंने कुछ दिन पहले मैंने इसी चिट्ठे पर आईने, आईने यह तो बता – दुनिया में सबसे सुन्दर कौन और उन्मुक्त चिट्ठे पर Trans-gendered – सेक्स परिवर्तित पुरुष या स्त्री नाम की चिट्ठी पोस्ट कर, कुछ ऐसे बातों का उल्लेख किया जो हमारे समाज में तो हैं पर उन्हें ठीक नहीं माना जाता।
शोभा डे The Week में एक कॉलम THE SEXES के नाम से लिखती हैं। इसके १५ अक्टूबर २००६ के अंक में वे विक्रम सेठ के समलैंगिग रिश्तों के बारे वा उनका इन रिश्तों पर समर्थन देने के बारे में यहां बता रही हैं।
इस लेख में वे एक पत्रकार का जिक्र करती हैं जिसने इस तरह के रिश्ते के बारे में अपनी मां को एक रेस्तराँ में इस लिये बताया क्योंकि उसकी मां वहां पर नहीं रोती। लेख के अनुसार पत्रकार की मां ने यह सुन कर रोया तो नहीं पर खाना खाना बन्द कर दिया और एकदम चुप हो कर खिड़की के बाहर देखने लगींं। मैं नहीं समझता कि यह वाक्या सच है क्योंकि अपनी मां या किसी भी प्रिय जन को इस तरह की बात बताने का इससे ज्यादा क्रूर तरीका नहीं हो सकता।
एक बार मेरी मुलाकात ऑस्ट्रेलिया के एक प्रमुख व्यक्ति से हुई – अपने विषय में वे विश्व की जानी मानी हस्ती हैं। वे भी समलैंगिग हैं। उन्होंने मुझसे बताया कि जब तक उनकी मां जिन्दा रहीं उन्होने इस बात को गुप्त रखा, केवल उनके मरने के बाद उसको जग जाहिर किया। मेरे उनसे पूछने पर कि उन्होंने ऐसा क्यों किया उनका जवाब था कि,
‘मै जो हूं, मेरी जो पसन्द है वह ईश्वर के कारण है। इसमें मेरा कोई दोष नहीं। मेरी मां यह नहीं समझ पाती। उन्हे बहुत दुख होता और वे अपने को ही दोषी ठहरातीं। मैं उन्हें दुख नहीं देना चाहता था इसलिये इस बात को गुप्त रखा। आज वे नहीं हैं इसलिये सही बात को छुपाने का कोई कारण नहीं है। ‘
लोगों के अपने अपने तरीके, मां से के सामने दिल खोलने के लिये।
अन्य चिट्ठों पर क्या नया है इसे आप दाहिने तरफ साईड बार में, या नीचे देख सकते हैं।
यार तुम अपनी फीड ठीक करो और प्रोफाइल पर पूरा नाम लिखो. यह गुमनाम किसलिये रहना , इत्ता अच्छा ब्लाग लिखते हो, कौन्हो मस्तराम थोड़े लिखते हो जो छुप्पन मियां बने फिर रहे हो.
आपको मेरा लिखना पसन्द आया, पढकर अच्छा लगा। पर कुछ चिन्ता हो गयी क्योंकि फीड तो ठीक काम कर रही है। नारद पर सूचना आयी है कि कुछ लोगों की फीड ठीक काम नहीं कर रही है पर मैं उन लोगों में नहीं हूं।
भाई उन्मुक्त
मेरे को पिछली वाली कमेन्ट का आईपी एड्रेस भेजना जरा,
देखें तो सही ये कौन सा जीतू है, जो मेरे नाम से कमेन्ट करता फिर रहा है।
तुम्हारे फीड मे कोई परेशानी नही है, और तुम्हारे गुमनाम होने से ब्लॉग का कोई लेना देना नही है। इसलिए बिन्दास लिखो, ऊपर वाली कमेन्ट मेरी नही है।
मेरे को पिछली कमेन्ट की डिटेल भेजना मत भूलना।
जीतू जी
इन दोनो टिप्पणिंया में आईपी एड्रेस तो फर्क है पर बाकी सारे विवरण (यानि कि ई-मेल का पता, वेब पेज का पता इत्यादि) एक ही हैं। मैंने आपको यह ई-मेल से भेज दिया है।
हूं… हूं यह तो मामला रहस्यमय होता जा रहा है। लगता है शरलॉक होल्मस् की जरूरत पड़ेगी।
पहली टिप्पणी पढ़ कर जितनी प्रसन्नता हुई कि जीतू जी को मेरा लिखना पसन्द आता है तो दूसरी पढ़ कर उतनी ही निराशा – कि पहली टिप्पणी जीतू जी की नहीं है … शायद उन्हे मेरे लिखने का स्टाईल न पसन्द हो ।
मेरे अज्ञात मित्र तुम जो भी ही अज्ञात टिप्पणी तो चलती है पर दूसरे के नाम से टिप्पणी देना ठीक नहीं है यह गलत काम है।
उन्मुक्त
जैसे जैसे हिन्दी की लोकप्रियता जाल स्थलों पर बढती जाएगी, इस तरह की शरारतों की संख्या भी दिन दूनी की दर से बढ़ती जाएगी.
हम सभी को सतर्क रहना चाहिए ही होगा!
जरा ज्यादा ही सतर्क रहना होगा.
उन्मुक्त जी, बढीया लिखा आपने – बहुत पसंद आया
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