विदर्भ में कर्ज में डूबे किसान और ब्लौगिंग

विदर्भ में कर्ज में डूबे किसानों के पास शायद आत्म-हत्या करने के आलावा कोई चारा नहीं है। पर क्या इसका ब्लौगिंग से कोई सम्बन्ध है?
जी हां, यहां देखिये कि ब्लौगिंग किस तरह इस आंदोलन में मदद कर रही है।

हरिवंश राय बच्चन ने अपनी जीवनी के दूसरे भाग में नीड़ का निर्माण फिर में तेजी जी से मिलन के बारे मे लिखा है। यदि इसके बारे में आप पढ़ना चाहें तो मेरे उन्मुकत चिट्ठे की पोस्ट ‘हरिवंश राय बच्चन – तेजी जी से मिलन’ पर यहां पढ़ सकते हैं।
कंप्यूटर प्रोग्राम, पेटेंट किया जा सकता है कि नहीं, बहुत विवादास्पद विषय है। इस बारे में मैने उन्मुक्त चिट्ठे पर एक नयी सिरीस ‘पेटेंट और कंप्यूटर प्रोग्राम’ नाम से शुरू की है। इसकी भूमिका आप यहां पढ़ सकते हैं।

अन्य चिट्ठों पर क्या नया है इसे आप दाहिने तरफ साईड बार में, या नीचे देख सकते हैं।

के बारे में उन्मुक्त
मैं हूं उन्मुक्त - हिन्दुस्तान के एक कोने से एक आम भारतीय। मैं हिन्दी मे तीन चिट्ठे लिखता हूं - उन्मुक्त, ' छुट-पुट', और ' लेख'। मैं एक पॉडकास्ट भी ' बकबक' नाम से करता हूं। मेरी पत्नी शुभा अध्यापिका है। वह भी एक चिट्ठा ' मुन्ने के बापू' के नाम से ब्लॉगर पर लिखती है। कुछ समय पहले,  १९ नवम्बर २००६ में, 'द टेलीग्राफ' समाचारपत्र में 'Hitchhiking through a non-English language blog galaxy' नाम से लेख छपा था। इसमें भारतीय भाषा के चिट्ठों का इतिहास, इसकी विविधता, और परिपक्वत्ता की चर्चा थी। इसमें कुछ सूचना हमारे में बारे में भी है, जिसमें कुछ त्रुटियां हैं। इसको ठीक करते हुऐ मेरी पत्नी शुभा ने एक चिट्ठी 'भारतीय भाषाओं के चिट्ठे जगत की सैर' नाम से प्रकाशित की है। इस चिट्ठी हमारे बारे में सारी सूचना है। इसमें यह भी स्पष्ट है कि हम क्यों अज्ञात रूप में चिट्टाकारी करते हैं और इन चिट्ठों का क्या उद्देश्य है। मेरा बेटा मुन्ना वा उसकी पत्नी परी, विदेश में विज्ञान पर शोद्ध करते हैं। मेरे तीनों चिट्ठों एवं पॉडकास्ट की सामग्री तथा मेरे द्वारा खींचे गये चित्र (दूसरी जगह से लिये गये चित्रों में लिंक दी है) क्रिएटिव कॉमनस् शून्य (Creative Commons-0 1.0) लाईसेन्स के अन्तर्गत है। इसमें लेखक कोई भी अधिकार अपने पास नहीं रखता है। अथार्त, मेरे तीनो चिट्ठों, पॉडकास्ट फीड एग्रेगेटर की सारी चिट्ठियां, कौपी-लेफ्टेड हैं या इसे कहने का बेहतर तरीका होगा कि वे कॉपीराइट के झंझट मुक्त हैं। आपको इनका किसी प्रकार से प्रयोग वा संशोधन करने की स्वतंत्रता है। मुझे प्रसन्नता होगी यदि आप ऐसा करते समय इसका श्रेय मुझे (यानि कि उन्मुक्त को), या फिर मेरी उस चिट्ठी/ पॉडकास्ट से लिंक दे दें। मुझसे समपर्क का पता यह है।

One Response to विदर्भ में कर्ज में डूबे किसान और ब्लौगिंग

  1. आशीष says:

    विदर्भ के किसानो की आत्महत्या के पिछे वहां के राजनेता जिम्मेदार हैं। विदर्भ मे यदि सहकारीता आंदोलन सफल हो जाता तो यह नौबत नही आती लेकिन इस आंदोलन की विदर्भ मे भ्रूण हत्या कर दी गयी।
    जितने भी सहकारी बैंक या समितियां है सभी पर नेतागण काबीज है जो सिर्फ और सिर्फ अपने रिस्तेदारो का भला करते है !
    मजबूरन किसान साहूकारो के चंगूल मे फंस जाते है, और कर्ज मे डूबकर आत्महत्या करते है।
    विदर्भ को आज जरूरत है एक कूरीयन या अण्णा हजारे की !
    इस दिशा मे कुछ ठोस करने की जरूरत है, ब्लाग जगत मे चर्चा करने से कुछ नही होगा।
    मै विदर्भ से हूं !

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