विदर्भ में कर्ज में डूबे किसान और ब्लौगिंग
सितम्बर 3, 2006 1 टिप्पणी
विदर्भ में कर्ज में डूबे किसानों के पास शायद आत्म-हत्या करने के आलावा कोई चारा नहीं है। पर क्या इसका ब्लौगिंग से कोई सम्बन्ध है?
जी हां, यहां देखिये कि ब्लौगिंग किस तरह इस आंदोलन में मदद कर रही है।
हरिवंश राय बच्चन ने अपनी जीवनी के दूसरे भाग में नीड़ का निर्माण फिर में तेजी जी से मिलन के बारे मे लिखा है। यदि इसके बारे में आप पढ़ना चाहें तो मेरे उन्मुकत चिट्ठे की पोस्ट ‘हरिवंश राय बच्चन – तेजी जी से मिलन’ पर यहां पढ़ सकते हैं।
कंप्यूटर प्रोग्राम, पेटेंट किया जा सकता है कि नहीं, बहुत विवादास्पद विषय है। इस बारे में मैने उन्मुक्त चिट्ठे पर एक नयी सिरीस ‘पेटेंट और कंप्यूटर प्रोग्राम’ नाम से शुरू की है। इसकी भूमिका आप यहां पढ़ सकते हैं।
अन्य चिट्ठों पर क्या नया है इसे आप दाहिने तरफ साईड बार में, या नीचे देख सकते हैं।
विदर्भ के किसानो की आत्महत्या के पिछे वहां के राजनेता जिम्मेदार हैं। विदर्भ मे यदि सहकारीता आंदोलन सफल हो जाता तो यह नौबत नही आती लेकिन इस आंदोलन की विदर्भ मे भ्रूण हत्या कर दी गयी।
जितने भी सहकारी बैंक या समितियां है सभी पर नेतागण काबीज है जो सिर्फ और सिर्फ अपने रिस्तेदारो का भला करते है !
मजबूरन किसान साहूकारो के चंगूल मे फंस जाते है, और कर्ज मे डूबकर आत्महत्या करते है।
विदर्भ को आज जरूरत है एक कूरीयन या अण्णा हजारे की !
इस दिशा मे कुछ ठोस करने की जरूरत है, ब्लाग जगत मे चर्चा करने से कुछ नही होगा।
मै विदर्भ से हूं !