पत्रकार बनाम चिट्ठाकार

कुछ दिन पहले, हिन्दी चिट्ठाजगत में पत्रकार और चिट्ठाकार के सम्बन्ध में बहस शुरू हुई। शायद यह भी अनुमान लगाया गया कि पत्रकार, चिट्ठाकार क्यों बने। शायद कुछ नये सिद्धान्त भी प्रतिपादित किये गये। यह बहस शायद अभी भी हिन्दी चिट्टाजगत में चल रही है।

मैं ‘शायद’ शब्द का, इसलिये प्रयोग कर रहा हूं क्योंकि मैंने इस विषय पर, एक या दो पोस्ट पढ़ कर, पोस्टें पढ़ना छोड़ दिया। मेरे विचार से, सबको अपनी बात कहने का, चिट्टाकार बनने का अधिकार है।

चिट्टाकारिता करने का अधिकार, उसी तरह से है जैसे कि हिन्दी चिट्ठों की नयी प्रविष्टियां बताने वाली वेबसाइट (जैसे कि नारद, या HindiBlog.com, या हिन्दी चिट्टे एवं पॉडकास्ट) के प्रबन्धतंत्र को अधिकार है कि वे किस चिट्टे की प्रविष्टियां प्रकाशित करें और किसकी नहीं। यदि वे किसी चिट्ठे की प्रविष्टियां अनुपयुक्त पाते हैं तो वे उसे हटा सकते हैं। यदि कोई समझता है कि वे गलत कर रहें हैं तो वह स्वयं उस तरह की दूसरी सेवा शुरू कर सकता है। हमें उनके निर्णय को स्वीकारना होगा। यह अलग बात है कि उनके फैसले के आधार पर, उनकी विश्वसनीयता या निष्पक्षता आंकी जा सकती है।

पत्रकार और चिट्ठाकार के सम्बन्धों के बारे में न केवल हिन्दी चिट्ठाजगत पर अंग्रेजी चिट्ठाजगत पर भी बहस चल रही है। हांलाकि इसका स्वरूप, कुछ भिन्न है।

अंग्रेजी चिट्ठेकार यह कह रहें हैं कि उन्हें भी वही मान्यता और अधिकार मिलने चाहिये जो कि पत्रकारों को मिलते हैं।

पत्रकार कह रहें है कि,

  • चिट्ठेकार न तो पत्रकारों की श्रेणी में हैं;
  • न ही वे पत्रकारों जैसी मान्यता अथवा सुविधायें के अधिकारी हैं;
  • न ही उन्हें चिट्ठेकारों को वे सुविधायें मिलनी चाहिये, जो कि पत्रकारों को मिलती हैं।

आप क्या सोचते हैं? आपको क्या लगता है? क्या चिट्टाकार की श्रेणी पत्रकार से कम है? क्या चिट्टाकार को वह सारी मान्यता तथा अधिकार मिलने चाहिये जो कि पत्रकार को मिलते हैं?

नोट: मैं माफी चाहूंगा। भूलवश, अपनी बात इस चिट्ठी में ठीक से नहीं कह पाया। मैंने इसे अविनाश जी की टिप्पणी के संदर्भ में उनकी टिप्पणी के नीचे स्पष्ट किया है। कृपया इस चिट्ठी को मेरे स्पष्टीकरण के साथ पढ़ें। उससे मेरी मंशा स्पष्ट होगी।

के बारे में उन्मुक्त
मैं हूं उन्मुक्त - हिन्दुस्तान के एक कोने से एक आम भारतीय। मैं हिन्दी मे तीन चिट्ठे लिखता हूं - उन्मुक्त, ' छुट-पुट', और ' लेख'। मैं एक पॉडकास्ट भी ' बकबक' नाम से करता हूं। मेरी पत्नी शुभा अध्यापिका है। वह भी एक चिट्ठा ' मुन्ने के बापू' के नाम से ब्लॉगर पर लिखती है। कुछ समय पहले,  १९ नवम्बर २००६ में, 'द टेलीग्राफ' समाचारपत्र में 'Hitchhiking through a non-English language blog galaxy' नाम से लेख छपा था। इसमें भारतीय भाषा के चिट्ठों का इतिहास, इसकी विविधता, और परिपक्वत्ता की चर्चा थी। इसमें कुछ सूचना हमारे में बारे में भी है, जिसमें कुछ त्रुटियां हैं। इसको ठीक करते हुऐ मेरी पत्नी शुभा ने एक चिट्ठी 'भारतीय भाषाओं के चिट्ठे जगत की सैर' नाम से प्रकाशित की है। इस चिट्ठी हमारे बारे में सारी सूचना है। इसमें यह भी स्पष्ट है कि हम क्यों अज्ञात रूप में चिट्टाकारी करते हैं और इन चिट्ठों का क्या उद्देश्य है। मेरा बेटा मुन्ना वा उसकी पत्नी परी, विदेश में विज्ञान पर शोद्ध करते हैं। मेरे तीनों चिट्ठों एवं पॉडकास्ट की सामग्री तथा मेरे द्वारा खींचे गये चित्र (दूसरी जगह से लिये गये चित्रों में लिंक दी है) क्रिएटिव कॉमनस् शून्य (Creative Commons-0 1.0) लाईसेन्स के अन्तर्गत है। इसमें लेखक कोई भी अधिकार अपने पास नहीं रखता है। अथार्त, मेरे तीनो चिट्ठों, पॉडकास्ट फीड एग्रेगेटर की सारी चिट्ठियां, कौपी-लेफ्टेड हैं या इसे कहने का बेहतर तरीका होगा कि वे कॉपीराइट के झंझट मुक्त हैं। आपको इनका किसी प्रकार से प्रयोग वा संशोधन करने की स्वतंत्रता है। मुझे प्रसन्नता होगी यदि आप ऐसा करते समय इसका श्रेय मुझे (यानि कि उन्मुक्त को), या फिर मेरी उस चिट्ठी/ पॉडकास्ट से लिंक दे दें। मुझसे समपर्क का पता यह है।

6 Responses to पत्रकार बनाम चिट्ठाकार

  1. आप क्‍यों फालतू की बतकही फिर शुरू करवाना चाहते हैं!
    अरे कोई अच्‍छी-सी बात कहिए कि पढ़ने में भी आनंद आये।
    इस विषय पर प्रमोद सिंह के ब्‍लॉग अज़दक के माध्‍यम से काफी बातें हो चुकी हैं।
    फुरसतिया जी ने भी काफी कुछ लिख दिया है।
    वैसे भी आप कोई नयी बात तो कह नहीं रहे हैं।

    अविनाश जी, इस समय पत्रकार, चिट्ठाकार से ज्यादा सम्मानित और मान्यता प्राप्त हैं। इस चिट्ठी में दी गयी अंग्रेजी की लिंक पढ़ने से लगता है कि चिट्ठाकार उस सम्मान या मान्यता प्राप्त करने की बात कर रहें हैं। कुछ लोग वह कारण बता रहें हैं कि यह सम्मान तथा मान्यता चिट्ठाकार को क्यों नहीं मिलनी चहिये। मेरी मंशा केवल यह जानने की थी क्या चिट्ठाकार उस सम्मान या मान्यता के अधिकारी हैं जो कि पत्रकार को है अथवा नहीं।

    मैं विवाद नहीं शुरू करना चाहता था। यदि मेरी चिट्ठी से यह लगा कि मैं विवाद शुरू करना चाहता हूं तो मुझसे गलती हो गयी। मुझे क्षमा करें। मैं क्षमा प्रार्थी हूं।
    यदि चिट्ठेकार बनधुवों की यही राय हो तो मैं इस चिट्ठी को मिटा देता हूं या पास वर्ड से सुरक्षित कर दूंगा, जैसा आप सब कहें।
    आशा है कि आप मुझे माफ करेंगे। – उन्मुक्त

  2. Shrish says:

    बाकी प्रतिक्रिया तो बाद में दूँगा, लेकिन आप ‘चिट्ठाजगत’ को ‘चिट्ठेजगत’ और ‘चिट्ठाकार’ को ‘चिट्ठेकार’ क्यों लिखते हैं?

    श्रीष जी, मुझे नहीं मालुम कि क्या सही शब्द है। मुझे लगा कि चिट्टेकार, चिट्ठाकार का बहुवचन है बस इसलिये कहीं उसी समझ में प्रयोग कर लिया। मैं इसे ठीक कर देता हूं। बताने के लिये धन्यवाद – उन्मुक्त

  3. rajeshroshan says:

    Very firstly, Unmukt ji aapne koi galat baat nahi kahi hai. So dont apologise for this. Kavivar Agaye ne likha hai, Main sawal uthaunga aur baith jaunga, lekin sawal apne jagah bana rahega. Aur rahi baat chitthekar aur patrkaar ke is visay ki to jaha tak meri jankari hai PIB ne 2006 se hi internet patrkaro ko manyta dena shuru kiya hai. Sambahv hai ki der saver chitthekaro ko bhi manyata mil hi jayegi. (India thodi late hai). Iske baad Jaisa ki aap logo ko pata hi hoga ki TIME magzine ne Person of the Year, 2006 “You” ko chuna hai. You refers to all netizens. TIME ne likha ki Jo blog use karte hain, Wikipedia aur Youtube mein apna yogdaan dete hain, waise logo ne duniya ko badla hai. Ha ek patrakaar hone ke nate ek baat jaroor kah du ki ye baat un patrkaaro ko buri lag sakti hai, jinko apne patrkaar hone par gumaan hai. Sorry to u all Journalist brothers.

    Oxford ki dictionary isliye itni popular hai ki wo apne ko udaar banye hue hai. Har saal har us bhasha ke shabdo ko grahan karta hai jo global bante hain. Is se humlogo ko sikhte hue apne ko udaar banana chahiye na ki sankuchit.

    Thanks 🙂

  4. १.ब्लागिंग अभिव्यक्ति का एक माध्यम है। ब्लाग के द्वारा पत्रकार,कथाकार, कलाकार, खिलाड़ी, अध्यापक,घर-परिवार के लोग, मुन्ने की बापू, मुन्ने की मां यानि कि वह सभी लोग जो अभिव्यक्ति करना चाहें ,कर सकते हैं। जबकि पत्रकारिता एक पेशा है। आजीविका का साधन है। समर्पित पत्रकारों के लिये पत्रकारिता एक मिशन है, जूनून है।
    २. यह एक दम सही है कि चिट्ठाकार पत्रकार की श्रेणी में नहीं आता। पत्रकार का काम अनवरत सूचना संयोजन प्रस्तुतिकरण है जबकि ब्लागर मन की तरंग के अनुसार लिख्नने का काम करता है।
    ३.ब्लागर को अभिव्यक्ति के अधिकार के अलावा और किसी अधिकार की आवश्यकता नहीं होनी चाहिये।
    ४.यह सही है। ब्लागर घर बैठे लिखता है जबकि पत्रकार घटनास्थल पर जाकर लिखता है। रवीश आजकल बुंदेलखंड की खाक छान रहे हैं लोगों के बीच जाकर लोगों के बारे में लिख रहे हैं। उनको जो सुविधायें मिलनी चाहिये वही सुविधायें पाने के लिये ,सबेरे बिस्तर में लेटे हुये चाय सुड़कते टिपियाते फुरसतिया, हकदार नहीं हैं।
    आप अपना मत व्यक्त करने के लिये स्वतंत्र हैं। अविनाश इतना परेशान मत हों।

  5. चिट्ठाकार की तुलना पत्रकार से करना ही गैरजरूरी है। दोनों के क्षेत्र और काम की परिस्थितियों में अंतर है,

  6. चिट्ठाकार को पत्रकार के समान अधिकार देना समझ से बाहर है.
    अविनाश परेशान न हो भाई, सबको अपनी बात कहने का अधिकार है 🙂

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