अदृश्य हो जाने का अभिशाप

मुझे मालुम था, सारे हिन्दी चिट्ठेकार बन्धु बुद्धिमान हैं। कोई भी मेरी बातों में नहीं आयेगा; कोई भी अदृश्य हो जाने का वरदान नहीं लेना पसन्द करेगा क्योंकि यह वरदान नहीं है यह तो अभिशाप है; जी हां अभिशाप है। यदि कोई व्यक्ति अदृश्य हो जाये तो वह देख नहीं सकेगा – वह अन्धा हो जायेगा। आप पूछेंगे मैं ऐसा इतने विश्वास से कैसे कह सकता हूं कि अदृश्य व्यक्ति अन्धा हो जायेगा। चलिये हम बात करें कि हम कैसे देखते हैं।

हमें किसी वस्तु का अहसास तब होता है जब वह रोशनी की किरणो को या तो रोक ले, या मोड़ (refract) कर दे; या फिर परिवर्तित (reflect) कर दे। हमारी आखों की पुतलियां रोशनी को मोड़ कर, रेटिना पर केंद्रित करती हैं जिसके कारण हम देख पाते हैं। अदृश्य होने का मतलब तो यह है कि रोशनी की किरणे हमारे शरीर से आर पार हो जायेंगी – हमारा शरीर न तो रोशनी की किरणो को रोक पायेगा न उन्हे मोड़ पायेगा और न ही परिवर्तित कर पायेगा।। हमारी आखों की पुतलियां भी उन्हे मोड़ कर रेटिना पर केन्द्रित नहीं कर पायेंगी। यदि रेटिना पर केन्द्रित नहीं होंगी तो हम देख नहीं सकते। यही बात एच.जी. वेल्स की पुस्तक ‘द इंविसिबल मैन’ तथा ‘मिस्टर इन्डिया’ और ‘गायब’ नाम की पिक्चरों को विज्ञान की दृष्टि में कमजोर बनाती हैं।

मुझे लगता है कि अगली बार कोई कठिन सवाल पूछना पड़ेगा। जब तक मैं कठिन सवाल सोचता हूं तब तक आप चाहें तो आप पेटेंट के इतिहास के बार में जानना चाहें तो उसे मेरे उन्मुक्त के चिट्ठे पर ‘१.४ पेटेंट प्राप्त करने की प्रक्रिया का सरलीकरण’ की चिट्ठी यहां पढ़ सकते हैं और यदि आप इसे पढ़ने के बजाय इसे सुनना पसन्द करें तो इसे बकबक चिट्ठे पर यहां सुन सकते हैं।

उन्मुक्त चिट्ठे की पांच चिट्ठियों पर मैने रिचर्ड फिलिप्स फाइनमेन की जीवनी के बारे में बताया था इन्हे एक जगह संग्रहीत करके उनकी जीवनी एक जगह की है इसे आप मेरे लेख चिट्ठे पर यहां देख सकते हैं।

मेरा प्रयत्न रहता है कि पेटेंट सिरीस की चिट्ठियां और इनकी ऑडियो क्लिपें, भारतीय समय के अनुसार हर बृहस्पतिवार की रात्रि को उंमुक्त चिट्ठे और बकबक पॉडकास्ट पर पोस्ट होंं। इन्हे आप वहां पर अगले बृहस्पतिवार १० अगस्त को देख या सुन सकते हैं।

अन्य चिट्ठों पर क्या नया है इसे आप दाहिने तरफ साईड बार में, या नीचे देख सकते हैं।

के बारे में उन्मुक्त
मैं हूं उन्मुक्त - हिन्दुस्तान के एक कोने से एक आम भारतीय। मैं हिन्दी मे तीन चिट्ठे लिखता हूं - उन्मुक्त, ' छुट-पुट', और ' लेख'। मैं एक पॉडकास्ट भी ' बकबक' नाम से करता हूं। मेरी पत्नी शुभा अध्यापिका है। वह भी एक चिट्ठा ' मुन्ने के बापू' के नाम से ब्लॉगर पर लिखती है। कुछ समय पहले,  १९ नवम्बर २००६ में, 'द टेलीग्राफ' समाचारपत्र में 'Hitchhiking through a non-English language blog galaxy' नाम से लेख छपा था। इसमें भारतीय भाषा के चिट्ठों का इतिहास, इसकी विविधता, और परिपक्वत्ता की चर्चा थी। इसमें कुछ सूचना हमारे में बारे में भी है, जिसमें कुछ त्रुटियां हैं। इसको ठीक करते हुऐ मेरी पत्नी शुभा ने एक चिट्ठी 'भारतीय भाषाओं के चिट्ठे जगत की सैर' नाम से प्रकाशित की है। इस चिट्ठी हमारे बारे में सारी सूचना है। इसमें यह भी स्पष्ट है कि हम क्यों अज्ञात रूप में चिट्टाकारी करते हैं और इन चिट्ठों का क्या उद्देश्य है। मेरा बेटा मुन्ना वा उसकी पत्नी परी, विदेश में विज्ञान पर शोद्ध करते हैं। मेरे तीनों चिट्ठों एवं पॉडकास्ट की सामग्री तथा मेरे द्वारा खींचे गये चित्र (दूसरी जगह से लिये गये चित्रों में लिंक दी है) क्रिएटिव कॉमनस् शून्य (Creative Commons-0 1.0) लाईसेन्स के अन्तर्गत है। इसमें लेखक कोई भी अधिकार अपने पास नहीं रखता है। अथार्त, मेरे तीनो चिट्ठों, पॉडकास्ट फीड एग्रेगेटर की सारी चिट्ठियां, कौपी-लेफ्टेड हैं या इसे कहने का बेहतर तरीका होगा कि वे कॉपीराइट के झंझट मुक्त हैं। आपको इनका किसी प्रकार से प्रयोग वा संशोधन करने की स्वतंत्रता है। मुझे प्रसन्नता होगी यदि आप ऐसा करते समय इसका श्रेय मुझे (यानि कि उन्मुक्त को), या फिर मेरी उस चिट्ठी/ पॉडकास्ट से लिंक दे दें। मुझसे समपर्क का पता यह है।

3 Responses to अदृश्य हो जाने का अभिशाप

  1. आशीष says:

    हम्म आपकी बात मे दम है। मैने तो कभी ये सोचा ही नही था कि अदृश्य आदमी अंधा हो जायेगा।

    धन्यवाद,ऐसी जानकारी के लिये

  2. Ashish says:

    ये बात सर्वथा लागू नही होती। यह इस पर निर्भर करता है कि आप अदृश्य कैसे होते हैं। एक तरीका तो है जिसमें रोशनी की किरणें आपके शरीर के आर-पार चली जाती है उस स्थिती में लोग आपको नही देख सकेंगे और आप लोगों को नही। पर दूसरी अवस्था में रोशनी की किरणे आपके पास आती तो हैं पर लौटती नही है – माने कि कही उलटी दिशा में विसरित कर दी जायें – ऐसी अवस्था में चूकि आपके पास किरणे आ रही हैं – आप दुनिया को देख सकते हैं, पर आपके पास आई किरणे वापस नही जा रही तो दुनिया आपको नही देख सकती। इसके लिये ये जानना जरूरी है कि हमे दिखता जब है जब जिस वस्तु को हम देख रहें हैं उससे रोशनी की किरणे आकर (उत्पन्न हों या फ़िर टकराकर लौटें) हमारे रेटिना पर टकराती हैं।

  3. उन्मुक्त says:

    Ashishi ji
    आप ने अदृश्य लोग अन्धे नहीं होंगे के लिये जो तर्क रखा है वह लोग अक्सर रखते हैं पर मेरे विचार से यह सही नहीं है|
    अदृश्य केवल एक ही स्थिति मैं होंगे जब रोोशनी आर पार चली जाय जैसा कि हवा के साथ होता है| यदि रोशनी लौटेगी नहीं तो काली हो जायगी| लाल रंग लाल रंग की , नीला रंग नीले रंग की, इसी प्रकार सब रंग अपने रंग की किरणों को परिवर्तित करते हैं पर यदि कोई रंग कि किरणे परिवर्तित न हों तो वह काला हो जाता है आपके काले बाल काले इसलिये काले लगते हैं कि वे कोई भी किरणों को परिवर्तित नहीं करते पर शरीर के अन्य भाग कुछ न कुछ किरणे परिवर्तित करते हैं| यदि पूरा शरीर किरणों को परिवर्तित न करे और बाकी जगह रोशनी हो जैसा कि आप कह रहें हैं तो यह कालापन उस व्यक्ति के शक्ल के जैसा हो जायगा या कम से कम उसकी रेटिना की जगह काली हो जायगी| यह कुछ इस तरह कि बात होगी कि सब तरफ रोशनी और उसमे उस व्यक्ति के शक्ल का काला सा बुत – कोीई भी अनुमान लगा लेगा कि यहां पर कुछ है| मेरे विचार में इस स्थिति में उस व्यक्ति को अदृृश्य तो नहीं कहा जा सकता है|

    यदि रोशनी टकरा कर कहीं और चली जाती हैं तो वह शीशे जैसा लगेगा या उस रंग जैसा जिस रंग की किरणे परवर्तित कर रहा है|
    एक और तर्क दिया जाता है कि रोशनी शरीर से फिसल कर उसी किरण की लाईन पर पहुंच जाय| यह भी सही नहीं लगता है क्योंकि तब भी रोशनी रेटिना पर केन्द्रित नहीं हो सकती हैै|

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