अदृश्य हो जाने का वरदान
जुलाई 22, 2006 टिप्पणी करे
पिछले कुछ वर्षों मे ‘मिस्टर इन्डिया’ और ‘गायब’ नाम की दो पिक्चरे आयीं। इन दोनो पिक्चरों मे हीरो के पास अदृश्य हो जाने की क्षमता थी। यह दोनो पिक्चरे आज से सौ साल पहले, एच.जी. वेल्स (१८६६-१९४६) के द्वारा १८९७ मे लिखी पुस्तक ‘द इंविसिबल मैन’ से प्रेरित थी। यदि आप इसे पढ़ना चाहें तो यहां पढ़ सकते हैं।
मैने इस किताब को अपने बचपन मे पढ़ा था कई बार इच्छा हुई काश मै भी अदृश्य हो सकता तो कितना मज़ा आता – क्लास मे तो हमेशा फर्स्ट ही रहता। मान लीजये यदि एक दिन शिव भगवान खुश होकर आपको अदृश्य हो जाने की क्षमता देने का वरदान देने को कहें तो क्या आप उसे लेना पसन्द करेंगे। सोच लीजये, बम भोले तो वास्तव मे भोले हैं – अजीब अजीब वरदान दे चुके हैं।
वरदान लिया जाय या छोड़ दिया जाय यदि इस उधेड़बुन के बीच आप पेटेंट के इतिहास के बार में जानना चाहें तो उसे मेरे उन्मुक्त के चिट्ठे पर ‘१.३ पेटेंट इतिहास की दृष्टि में’ की चिट्ठी में यहां पढ़ सकते हैं और यदि आप इसे पढ़ने के बजाय इसे सुनना पसन्द करें तो इसे बकबक चिट्ठे की दो ऑडियो क्लिपों में यहां और यहां सुन सकते हैं।
उन्मुक्त चिट्ठे की तीन चिट्ठियां – पहेली, मार्टिन गार्डनर , और पहेलीबाज जज को संग्रहीत कर के एक लेख पहेलियां और मार्टिन गार्डनर बनाया है। इसे मेरे लेख चिट्ठे पर यहां देख सकते हैं।
अन्य चिट्ठों पर क्या नया है इसे आप दाहिने तरफ साईड बार में, या नीचे देख सकते हैं।
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