अदृश्य हो जाने का वरदान

पिछले कुछ वर्षों मे ‘मिस्टर इन्डिया’ और ‘गायब’ नाम की दो पिक्चरे आयीं। इन दोनो पिक्चरों मे हीरो के पास अदृश्य हो जाने की क्षमता थी। यह दोनो पिक्चरे आज से सौ साल पहले, एच.जी. वेल्स (१८६६-१९४६) के द्वारा १८९७ मे लिखी पुस्तक ‘द इंविसिबल मैन’ से प्रेरित थी। यदि आप इसे पढ़ना चाहें तो यहां पढ़ सकते हैं।

मैने इस किताब को अपने बचपन मे पढ़ा था कई बार इच्छा हुई काश मै भी अदृश्य हो सकता तो कितना मज़ा आता – क्लास मे तो हमेशा फर्स्ट ही रहता। मान लीजये यदि एक दिन शिव भगवान खुश होकर आपको अदृश्य हो जाने की क्षमता देने का वरदान देने को कहें तो क्या आप उसे लेना पसन्द करेंगे। सोच लीजये, बम भोले तो वास्तव मे भोले हैं – अजीब अजीब वरदान दे चुके हैं।

वरदान लिया जाय या छोड़ दिया जाय यदि इस उधेड़बुन के बीच आप पेटेंट के इतिहास के बार में जानना चाहें तो उसे मेरे उन्मुक्त के चिट्ठे पर ‘१.३ पेटेंट इतिहास की दृष्टि में’ की चिट्ठी में यहां पढ़ सकते हैं और यदि आप इसे पढ़ने के बजाय इसे सुनना पसन्द करें तो इसे बकबक चिट्ठे की दो ऑडियो क्लिपों में यहां और यहां सुन सकते हैं।

उन्मुक्त चिट्ठे की तीन चिट्ठियां – पहेली, मार्टिन गार्डनर , और पहेलीबाज जज को संग्रहीत कर के एक लेख पहेलियां और मार्टिन गार्डनर बनाया है। इसे मेरे लेख चिट्ठे पर यहां देख सकते हैं।

अन्य चिट्ठों पर क्या नया है इसे आप दाहिने तरफ साईड बार में, या नीचे देख सकते हैं।

के बारे में उन्मुक्त
मैं हूं उन्मुक्त - हिन्दुस्तान के एक कोने से एक आम भारतीय। मैं हिन्दी मे तीन चिट्ठे लिखता हूं - उन्मुक्त, ' छुट-पुट', और ' लेख'। मैं एक पॉडकास्ट भी ' बकबक' नाम से करता हूं। मेरी पत्नी शुभा अध्यापिका है। वह भी एक चिट्ठा ' मुन्ने के बापू' के नाम से ब्लॉगर पर लिखती है। कुछ समय पहले,  १९ नवम्बर २००६ में, 'द टेलीग्राफ' समाचारपत्र में 'Hitchhiking through a non-English language blog galaxy' नाम से लेख छपा था। इसमें भारतीय भाषा के चिट्ठों का इतिहास, इसकी विविधता, और परिपक्वत्ता की चर्चा थी। इसमें कुछ सूचना हमारे में बारे में भी है, जिसमें कुछ त्रुटियां हैं। इसको ठीक करते हुऐ मेरी पत्नी शुभा ने एक चिट्ठी 'भारतीय भाषाओं के चिट्ठे जगत की सैर' नाम से प्रकाशित की है। इस चिट्ठी हमारे बारे में सारी सूचना है। इसमें यह भी स्पष्ट है कि हम क्यों अज्ञात रूप में चिट्टाकारी करते हैं और इन चिट्ठों का क्या उद्देश्य है। मेरा बेटा मुन्ना वा उसकी पत्नी परी, विदेश में विज्ञान पर शोद्ध करते हैं। मेरे तीनों चिट्ठों एवं पॉडकास्ट की सामग्री तथा मेरे द्वारा खींचे गये चित्र (दूसरी जगह से लिये गये चित्रों में लिंक दी है) क्रिएटिव कॉमनस् शून्य (Creative Commons-0 1.0) लाईसेन्स के अन्तर्गत है। इसमें लेखक कोई भी अधिकार अपने पास नहीं रखता है। अथार्त, मेरे तीनो चिट्ठों, पॉडकास्ट फीड एग्रेगेटर की सारी चिट्ठियां, कौपी-लेफ्टेड हैं या इसे कहने का बेहतर तरीका होगा कि वे कॉपीराइट के झंझट मुक्त हैं। आपको इनका किसी प्रकार से प्रयोग वा संशोधन करने की स्वतंत्रता है। मुझे प्रसन्नता होगी यदि आप ऐसा करते समय इसका श्रेय मुझे (यानि कि उन्मुक्त को), या फिर मेरी उस चिट्ठी/ पॉडकास्ट से लिंक दे दें। मुझसे समपर्क का पता यह है।

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