बारिश कि बूंदे और साबुन के बुलबुले

परसों शाम उत्तर भारत के कुछ हिस्सों मे बारिश हुई, मेरे यहां भी| यह बूंदे हमेशा गोल होती हैं

बचपन मे हम लोग साबुन के बुलबुले भी उड़ाया करते थे:

  • साबुन का घोल बनाया,
  • नीम की पत्तियों के डंठल का आगे का हिस्सा गोल किया,
  • घोल मे डाला और हलके से फूका और
  • शुरू हो गये साबुन के बुलबुले उड़ाने|

आजकल तो मेले मे अक्सर लोग बेचते मिल जाते हैं दो रुपये के बेचते हैं| मै हमेशा खरीदता हूं और उड़ाता हूं – मेले मे बचपन का आनंद| साबुन के बुलबुले हमेशा गोल रहते हैं|

स्कूल मे पढ़ा था कि सर्फेस टेन्शन के कारण कोई भी तरल पदार्थ या गैस उस क्षेत्रफल के अन्दर बंधती है जो क्षेत्रफल, उस आयतन के लिये सबसे कम होता है| किसी भी आयतन के लिये गोले का क्षेत्रफल सबसे कम होता है इसिलिये बारिश कि बूंदें और साबुन के बुलबुले हमेश गोल रहते हैं|

पर अमेरिकन सईंटिस्ट का यह लेख बताता है कि गणितज्ञों ने सिद्ध किया है कि सबसे कम क्षेत्रफल ‘हैंडिल के साथ हेलिक्स’ का है जो कि अनन्त तक फैला है यह केवल कमप्यूटर के द्वारा ही देखा जा सकता है| यह खोज विज्ञान के एक तेजी से बढ़ते क्षेत्र – Material Science – मे नये आयाम खोलती है|

चलिये दूसरी तरफ भी कुछ नजर डालें| यदि आप यह जानना चाहते हैं कि,

  • ए.टी.&टी. ने कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बरकले पर यूनिक्स के सम्बन्ध पर क्या मुकदमा दायर किया था तथा उसमे क्या हुआ; या
  • मार्टिन गार्डनर की पुस्तकों के आलावा, पहेलीयों की अन्य अच्छी पुस्तकों कौन कौन सी हैं;

तो इनके बारे मे मेरे उंमुक्त नाम के चिठ्ठे पर,

की पोस्ट पर पढ़ सकते हैं।

के बारे में उन्मुक्त
मैं हूं उन्मुक्त - हिन्दुस्तान के एक कोने से एक आम भारतीय। मैं हिन्दी मे तीन चिट्ठे लिखता हूं - उन्मुक्त, ' छुट-पुट', और ' लेख'। मैं एक पॉडकास्ट भी ' बकबक' नाम से करता हूं। मेरी पत्नी शुभा अध्यापिका है। वह भी एक चिट्ठा ' मुन्ने के बापू' के नाम से ब्लॉगर पर लिखती है। कुछ समय पहले,  १९ नवम्बर २००६ में, 'द टेलीग्राफ' समाचारपत्र में 'Hitchhiking through a non-English language blog galaxy' नाम से लेख छपा था। इसमें भारतीय भाषा के चिट्ठों का इतिहास, इसकी विविधता, और परिपक्वत्ता की चर्चा थी। इसमें कुछ सूचना हमारे में बारे में भी है, जिसमें कुछ त्रुटियां हैं। इसको ठीक करते हुऐ मेरी पत्नी शुभा ने एक चिट्ठी 'भारतीय भाषाओं के चिट्ठे जगत की सैर' नाम से प्रकाशित की है। इस चिट्ठी हमारे बारे में सारी सूचना है। इसमें यह भी स्पष्ट है कि हम क्यों अज्ञात रूप में चिट्टाकारी करते हैं और इन चिट्ठों का क्या उद्देश्य है। मेरा बेटा मुन्ना वा उसकी पत्नी परी, विदेश में विज्ञान पर शोद्ध करते हैं। मेरे तीनों चिट्ठों एवं पॉडकास्ट की सामग्री तथा मेरे द्वारा खींचे गये चित्र (दूसरी जगह से लिये गये चित्रों में लिंक दी है) क्रिएटिव कॉमनस् शून्य (Creative Commons-0 1.0) लाईसेन्स के अन्तर्गत है। इसमें लेखक कोई भी अधिकार अपने पास नहीं रखता है। अथार्त, मेरे तीनो चिट्ठों, पॉडकास्ट फीड एग्रेगेटर की सारी चिट्ठियां, कौपी-लेफ्टेड हैं या इसे कहने का बेहतर तरीका होगा कि वे कॉपीराइट के झंझट मुक्त हैं। आपको इनका किसी प्रकार से प्रयोग वा संशोधन करने की स्वतंत्रता है। मुझे प्रसन्नता होगी यदि आप ऐसा करते समय इसका श्रेय मुझे (यानि कि उन्मुक्त को), या फिर मेरी उस चिट्ठी/ पॉडकास्ट से लिंक दे दें। मुझसे समपर्क का पता यह है।

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