अरे! ऐसा भी चित्र बनाया जा सकता है?

स्कॉट वेड गन्दी कार की खिड़कियों के शीशे में सुन्दर चित्र बनाते हैं। मैं नहीं समझता था कि कोई इस तरह के चित्र भी बना सकता है। उनकी कार में बने चित्रों को देख कर, अक्सर लोग अपनी कार से उतर कर चित्र खींचने आ जाते हैं।

उनके बनाये गये नीचे के चित्र ने, मुझे अपने टॉमी की याद दिला दी। जिसे ईश्वर ने दस साल पहले उपहार में दिया था और कुछ दिन पहले अपने पास बुला लियाटॉमी अक्सर हम लोगों के साथ इसी तरह से घूमने जाता था। हम लोग पीछे वाली सीट नीचे कर देते थे ताकि वह उस पर आराम से बैठ सके।


यह चित्र मेरा नहीं है। मैंने इसे यहां से लिया है। वहां पर आप और भी बेहतरीन चित्र देख सकते हैं और स्कॉट वेड और उनकी इस बेहतरीन कला के बारे में विस्तार से पढ़ सकते हैं।



हमने टॉमी की याद में, उसकी कब्र के दो तरफ, बेला और काजू का पेड़ लगाया है ताकि आने वाले समय में, उसकी महक और याद, हमेशा रहे। मेरे एक मित्र ने एक खास कल्मी बेल का पेड़ भी हमें उसकी याद में लगाने के लिये भेंट किया। हमने उसे अपने घर के पीछे उसकी याद में लगाया है।

मेरे मित्र, अभी कितने दिन तुम मेरे जहन में रहोगे – शायद हमेशा।


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के बारे में उन्मुक्त
मैं हूं उन्मुक्त - हिन्दुस्तान के एक कोने से एक आम भारतीय। मैं हिन्दी मे तीन चिट्ठे लिखता हूं - उन्मुक्त, ' छुट-पुट', और ' लेख'। मैं एक पॉडकास्ट भी ' बकबक' नाम से करता हूं। मेरी पत्नी शुभा अध्यापिका है। वह भी एक चिट्ठा ' मुन्ने के बापू' के नाम से ब्लॉगर पर लिखती है। कुछ समय पहले,  १९ नवम्बर २००६ में, 'द टेलीग्राफ' समाचारपत्र में 'Hitchhiking through a non-English language blog galaxy' नाम से लेख छपा था। इसमें भारतीय भाषा के चिट्ठों का इतिहास, इसकी विविधता, और परिपक्वत्ता की चर्चा थी। इसमें कुछ सूचना हमारे में बारे में भी है, जिसमें कुछ त्रुटियां हैं। इसको ठीक करते हुऐ मेरी पत्नी शुभा ने एक चिट्ठी 'भारतीय भाषाओं के चिट्ठे जगत की सैर' नाम से प्रकाशित की है। इस चिट्ठी हमारे बारे में सारी सूचना है। इसमें यह भी स्पष्ट है कि हम क्यों अज्ञात रूप में चिट्टाकारी करते हैं और इन चिट्ठों का क्या उद्देश्य है। मेरा बेटा मुन्ना वा उसकी पत्नी परी, विदेश में विज्ञान पर शोद्ध करते हैं। मेरे तीनों चिट्ठों एवं पॉडकास्ट की सामग्री तथा मेरे द्वारा खींचे गये चित्र (दूसरी जगह से लिये गये चित्रों में लिंक दी है) क्रिएटिव कॉमनस् शून्य (Creative Commons-0 1.0) लाईसेन्स के अन्तर्गत है। इसमें लेखक कोई भी अधिकार अपने पास नहीं रखता है। अथार्त, मेरे तीनो चिट्ठों, पॉडकास्ट फीड एग्रेगेटर की सारी चिट्ठियां, कौपी-लेफ्टेड हैं या इसे कहने का बेहतर तरीका होगा कि वे कॉपीराइट के झंझट मुक्त हैं। आपको इनका किसी प्रकार से प्रयोग वा संशोधन करने की स्वतंत्रता है। मुझे प्रसन्नता होगी यदि आप ऐसा करते समय इसका श्रेय मुझे (यानि कि उन्मुक्त को), या फिर मेरी उस चिट्ठी/ पॉडकास्ट से लिंक दे दें। मुझसे समपर्क का पता यह है।

6 Responses to अरे! ऐसा भी चित्र बनाया जा सकता है?

  1. ऐसे मित्र हमेशा याद रहते हैं

  2. इन जानवरों से इतना अधिक लगाव हो जाता है कि इनका ना रहना मन को कसोटता है.

  3. वास्तव में पशुओ के प्रति हमारा प्रेम सात्विक होता है……सो भुलाया नही जा सकता…..

  4. Vakai aise Mitra hamesha yaad rahte hain, aur Painting ki to beshak ek anuthi shaili hai yeh.

  5. archana says:

    निस्वार्थ प्रेम हमेशा जेहन मे रहता है , उसे कभी अलग नही किया जा सकेगा….

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