Oh Be A Fine Girl Kiss Me

आकाश के तारे वास्तव मे सूर्य हैं| उन्नीसवीं शताब्दी के अन्त मैं हार्वड औबसरवेटेरी ने तारों का वर्गीकरण इनसे निकली रोशनी का विश्लेषण करके किया| आज यह मालुम है कि यह मोटे तौर पर उनके तापमान पर निर्भर करता है| इस वर्गीकरण को A से शुरू होकर M तक के अक्षरों तक के एल्फाबेट (मुझे इसकी हिन्दी नहीं मिली, क्या कोई बतायेगा) दिखाया गया| बाद मे कुछ वर्ग छोड दिये गये; कुछ दूसरे से जोड़ दिये गये; और एक नया वर्ग O भी जोड़ा गया| इन सब के बाद वर्ग A, B, F,G, K, M, और O बचे| अब इनको याद कैसे रखा जाय| इसलिये एक वाक्य बनाया गया| उसके हर शब्द का पहला एल्फाबेट एक वर्ग को चिन्हित करता है| यह वाक्य है,

Oh Be A Fine Girl Kiss Me

इसके बाद तीन नये वर्ग जोड़े गये जिन्हे R, N, और S इन एल्फाबेट को याद करने के लिये नया वाक्य बनाया गया

Right Now Sweetheart

मैने शादी के पहले विद्यार्थी जीवन मे, और शादी के बाद – मुन्ने की मां के विरोध के बावजूद – अनगिनत राते मैदानो मे, खेतों मे, नदी के किनारे बितायीं हैं: कभी पुच्छल तारे को देखने के लिये, कभी लिओनिडस को देखने के लिये, पर अधिकतर आसमान मे तारों को देखने के लिये| मुझे आसमान के तारों को देखना, उनका अध्यन करना हमेशा पसन्द था| पर काश कभी कोई मेरे साथ होती जिससे मै तारों के वर्गीकरण के बारे मे बता पाता| पर क्या मालुम मै भी वही मूर्खता कर बैठता जो यहां बतायी जा रही है।

अब तो रात मे बाहर जाने की जरूरत नहीं है आप तारों को कमप्यूटर के प्रोग्राम से देख सकते हैं स्टलेरियम इसी तरह का विंडोस और लिनेक्स के लिये एक फ्री ओपेन सोर्स प्रोग्राम है| आप इसे यहां से डाउनलोड कर सकते हैं| बताईयेगा अपको यह प्रोग्राम कैसा लगा। और हां यदि आप इस शताब्दी के सबसे चर्चित मुकदमे के बारे मे जानना चाहते हैं – अरे वही मुकदमा जो लिनेक्स के सम्बन्ध मे आई.बी.एम. पर चल रहा है – तो आप उसे मेरे उंमुक्त के चिठ्ठे पर ४. लिनेक्स: आई.बी.एम. पर मुकदमा नामक पोस्ट पर यहां पढ़ सकते हैं और यदि शतरंज के जादू के बारे मे जानना चाहें तो उसी चिठ्ठे पर नारद जी की छड़ी और शतरंज का जादू-३ नामक पोस्ट यहां पर पढ़ सकते हैं|

पर यह तो बताना भूल ही गया कि मुझे स्टलेरियम प्रोग्राम के बारे मे पता कैसे चला|

मै इस प्रोग्राम के बारे मे नहीं जानता था न ही कभी सुना था| राजीव जी (rajeev.tandon @gmail.com) हिन्दी चिठ्ठों के पाठक हैं| इन्होने मेरी एक चिठ्ठी पर टिप्पणी की, वहीं से हमारी मित्रता शुरू हो गयी|

राजीव जी कुछ अनूठे किस्म के व्यक्ति हैं ये हिन्दी चिठ्ठे तो पढ़ते हैं पर स्वयं लिखते नहीं| मै यही सोचता था, कि हिन्दी चिठ्ठे केवल वही लोग पढ़ते हैं जो कि हिन्दी मे चिठ्ठे लिखते हैं पर इनसे ईमेल के द्वारा बात होने के बाद मेरी गलतफहमी दूर हो गयी|

ये काफी जानकार व्यक्ति हैं और मै इनसे कई बार कह चुका हूं कि वे अपना हिन्दी का चिठ्ठा शुरू करें – देखें कि कब करते हैं या हो सकता है कि ब्लौगिंग करते हों ….. के नाम से| मै इतना तो अवश्य कह सकता हूं कि यह उंमुक्त के नाम से तो ब्लौगिंग नहीं करते हैं| शयद वह स्वयं टिप्पणी कर के इस विषय पर और रोशनी डालना चाहें|

के बारे में उन्मुक्त
मैं हूं उन्मुक्त - हिन्दुस्तान के एक कोने से एक आम भारतीय। मैं हिन्दी मे तीन चिट्ठे लिखता हूं - उन्मुक्त, ' छुट-पुट', और ' लेख'। मैं एक पॉडकास्ट भी ' बकबक' नाम से करता हूं। मेरी पत्नी शुभा अध्यापिका है। वह भी एक चिट्ठा ' मुन्ने के बापू' के नाम से ब्लॉगर पर लिखती है। कुछ समय पहले,  १९ नवम्बर २००६ में, 'द टेलीग्राफ' समाचारपत्र में 'Hitchhiking through a non-English language blog galaxy' नाम से लेख छपा था। इसमें भारतीय भाषा के चिट्ठों का इतिहास, इसकी विविधता, और परिपक्वत्ता की चर्चा थी। इसमें कुछ सूचना हमारे में बारे में भी है, जिसमें कुछ त्रुटियां हैं। इसको ठीक करते हुऐ मेरी पत्नी शुभा ने एक चिट्ठी 'भारतीय भाषाओं के चिट्ठे जगत की सैर' नाम से प्रकाशित की है। इस चिट्ठी हमारे बारे में सारी सूचना है। इसमें यह भी स्पष्ट है कि हम क्यों अज्ञात रूप में चिट्टाकारी करते हैं और इन चिट्ठों का क्या उद्देश्य है। मेरा बेटा मुन्ना वा उसकी पत्नी परी, विदेश में विज्ञान पर शोद्ध करते हैं। मेरे तीनों चिट्ठों एवं पॉडकास्ट की सामग्री तथा मेरे द्वारा खींचे गये चित्र (दूसरी जगह से लिये गये चित्रों में लिंक दी है) क्रिएटिव कॉमनस् शून्य (Creative Commons-0 1.0) लाईसेन्स के अन्तर्गत है। इसमें लेखक कोई भी अधिकार अपने पास नहीं रखता है। अथार्त, मेरे तीनो चिट्ठों, पॉडकास्ट फीड एग्रेगेटर की सारी चिट्ठियां, कौपी-लेफ्टेड हैं या इसे कहने का बेहतर तरीका होगा कि वे कॉपीराइट के झंझट मुक्त हैं। आपको इनका किसी प्रकार से प्रयोग वा संशोधन करने की स्वतंत्रता है। मुझे प्रसन्नता होगी यदि आप ऐसा करते समय इसका श्रेय मुझे (यानि कि उन्मुक्त को), या फिर मेरी उस चिट्ठी/ पॉडकास्ट से लिंक दे दें। मुझसे समपर्क का पता यह है।

4 Responses to Oh Be A Fine Girl Kiss Me

  1. रवि says:

    के-स्टार्स एक केडीई का अनुप्रयोग है जो तारों की स्थिति बताता है.

    ख़ासियत यह है कि यह हिन्दी में भी उपलब्ध है!

  2. हो सकता है कि ब्लौगिंग करते हों ….. के नाम से| मै इतना तो अवश्य कह सकता हूं कि यह उंमुक्त के नाम से तो ब्लौगिंग नहीं करते हैं
    Saayad aap se hee seekha hoga
    🙂

  3. राजीव says:

    अब तो उन्मुक्त जी ने मुझे अपना पक्ष प्रस्तुत करने पर बाध्य कर ही दिया।

    पहले तो इस चिट्ठे पर टिप्पणी, फिर अपनी सफाई में कुछ –

    श्री उन्मुक्त जी, आपके द्वारा दी गयी जानकारी के लिये धन्यवाद! कौतूहलवश मैनें जब संजाल पर इस वर्गीकरण के बारे में और देखा तो पाया कि इस प्रचलित वाक्य के अतिरिक्त कुछ और भी वाक्य इस वर्णमाला को सहज रूप में कंठस्थ करने के लिये बनाये गये हैं – जैसे कि –

    प्रचलित वाक्यांश
    Oh Be A Fine [Guy/Gal/Girl] Kiss Me (Right Now Smack/Sweetheart]).
    Oh Begone, A Friend’s Gonna Kiss Me (Right Now Smack).
    Only Boys Accepting Feminism Get Kissed Meaningfully.

    अन्यान्य मज़ेदार वाक्यांश
    Official Bureaucrats At Federal Government Kill Many Researchers’ National Support.
    Oh, Bring A Fully Grown Kangaroo – My Recipe Needs Some!
    Oven-Baked Ants, when Fried Gently, and Kept Moist, Retain Natural Succulence.

    इसके अतिरिक्त, अन्य वाक्यांश और जानकारी आंग्ल भाषा में यहां पर देखी जा सकती है। अब इस चिठ्ठे के बाद यह तो हम मान नहीं सकते कि उन्मुक्त जी को ये वाक्यांश नहीं मालूम थे, इनमें से उन्मुक्त जी ने प्रथम वाक्य के भी अन्य रूपांतरण क्यों नहीं बताये, ये तो मुन्ने की मां को जानना होगा ।

    खैर यह तो मात्र एक चुहलबाज़ी थी, अपनी अनेक रुचियों के अतिरिक्त, मैंने इस रुचि में भी कुछ समय किशोरावस्था तथा बाद में भी दिया जैसी कि – दूरदर्शी यंत्र को बनाना और लियोनिड्स वर्षा को देखना (संभवत: 1999 में) परंतु शहरी वातावरण के बाहर आकाशीय पिन्डों को निहारने का संयोग कभी नहीं बन पाया।

    अब बारी है अपनी सफाई देने की – श्री उन्मुक्त जी ने मुझे चिठ्ठा लिखने के लिये बहुत बार प्रेरित किया और विषयों की भी सलाह दी पर यह तो मैं ही था जो अभी तक कछ लिख नहीं पाया हूं । सम्भवत: भविष्य में कुछ लिखूं और हां – सम्प्रति मैं अपने या किसी अन्य गुप्त नाम से भी कोई चिठ्ठा नहीं लिखता हूं। मैं यह भी मानता हूं, कि पाठक भी अपना महत्व रखते हैं और कदाचित अभी मैं लिखने की यथोचित योग्यता और समुचित उत्तरदायित्व वहन की क्षमता नहीं रखता हूं ।

  4. उन्मुक्त says:

    राजीव जी
    टिप्पणी करने के लिये धन्यवाद|
    शायद पाठकों का महत्व लेखकों से ज्यादा है यदि वे नहीं हैं तो लेखकों का क्या काम और यदि आप नहीं होते तो मुझे यह चिठ्ठी पोस्ट करने का कभी मौका नहीं मिलता|
    मै ठहरा पुराने समय का व्यक्ति| सूचनाओं के लिये किताबों का सहारा लेना पसन्द करता हूं बजाय इंटरनेट के| स्कूल मे एक किताब ‘A Planet called Sun by George Gamov’ परुस्कार मे मिली थी उसी मे पढ़ा था जब आप की ईमेल आयी तो उसे पुन: निकाल कर पढ़ा और यह चिठ्ठी लिखी| मुझे इसके कोई और रूप नहीं मालुम थे| यह भी बताने के लिये धन्यवाद

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