माँ री ऐसा तो न सोचा था

विचारों अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मूलभूत है। यह उन्हीं को मिल सकती है जो इस अधिकार के लिये खड़े हो सकें।

‘उन्मुक्त जी, आपका शीर्षक तो आशा जी द्वारा लिखी चिट्ठी पर कि उन्हीं की टिप्पणी है। उसका आपकी ऊपर की बात से क्या संबन्ध। आप तो बस कहीं की बात कहीं ले कर उड़ लेते हैं। बन्द करिये अपनी बकबक को।’

तिब्बती मूल के लोग सब जगह चीन में हो रहे ओलिम्पिक का विरोध कर रहे हैं। वे कहते हैं इनका चीन में मानवाधिकार का हनन हो रहा है इसलिये इनका विरोध होना चाहिये। कुछ दिन पहले न्यूयॉर्क में चीन के वाणिज्यदूतावास के सामने तिब्बती लोगों ने प्रदर्शन किया। इसका विडियो बना कर यूट्यूब में डाल दिया। वे चाहते थे कि लोग इसे देखने आयें इसलिये उन्होंने इसका शीर्षक Beijing Olympics Opening Ceremony डाल दिया।

The seat of the IOC in Lausanne.Image via Wikipedia

International Olympic Committee (IOC) (आईओसी) ने  यूट्यूब को एक नोटिस Digital Millennium Copyright Act (DMCA) (डीएमसीए) के अन्दर दिया कि यह उनके कॉपीराइट का उल्लंघन है।

WORLD INTELLECTUAL PROPERTY ORGANISATION (WIPO) (वाइपो) ने १९९० दशक के अन्त में WIPO Copyright Treaty (WCT)(डब्लूसीटी) और WIPO Performances and Phonograms Treaty (WPPT) (डब्लूपीपीटी) नामक दो संबन्धित सन्धिपत्र (sister treaties) बनाये हैं। अमेरिका ने डीएमसीए अधनियम इसी के अनुपालन में बनाया है।

आईओसी से नोटिस मिलने के मिनटों में ही यूट्यूब ने इसे हटा दिया। बाद में जब उन्होंने इस पर गौर किया तो उन्हें लगा कि यह तो किसी प्रकार डीएमसीए अधनियम का उल्लंघन नहीं करता है। उन्होने इसका विरोध किया। आईओसी को भी अपनी गलती समझ में आयी। उन्होंने अपनी नोटिस वापस ले ली। यदि वे इसकी आवाज़ नहीं उठाते तो आईओसी कभी नोटिस वापिस नहीं लेता। इसके बारे में आप यहां विस्तार से पढ़ सकते हैं और नीचे इस विडियो को देख सकते हैं।

सच  है अपने अधिकारों के लिये आवाज़ उठाइये नहीं तो कोई सुनेगा नहीं – पर आवाज़ उस तरह से नहीं जैसे कि आजकल लोग सब बन्द कर, हिंसा पर उतारू हो कर, उठाते हैं। महात्मा गांधी ने भी आवाज़ उठायी, वही रास्ता सही है।

महिला अधिकारों की भी आवाज़ उठनी चाहिये और हिन्दी चिट्ठाजगत में चोखरबाली और नारी नामक चिट्ठे यह बाखूबी करते हैं। पुरुषों को इन चिट्ठों को पढ़ना जरूरी है। यह चिट्ठे न केवल किसी बात का दूसरा स्वरूप पेश करते हैं पर हिन्दी चिट्ठाजगत की परिक्वत्ता की तरफ भी इशारा करते हैं। हांलाकि, कभी कभी इनकी चिट्ठियों और उस पर आयी टिप्पणियों पर लगता है – माँ रे ऐसा तो न सोचा था।

चोखर बालियों, नारियों, और आशा जी से, भूल चूक लेनी देनी 🙂

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