कुछ समय पहले, मैथली गुप्त जी ने, कैफे हिन्दी नामक एक वेबसाइट शुरू की। मैं न तो मैथली जी को, न ही इस वेबसाइट के बारे में जानता था। दो साल पहले संजय जी की अक्षरधाम पर लिखी एक चिट्ठी से कैफे हिन्दी और आपके बारे में पता चला। कैफे हिन्दी पर कुछ चिट्ठाकारों के लेख, चिट्ठकारों की चिट्ठियों के लिंक के साथ थे। संजय जी ने इस बात पर आपत्ति जतायी थी कि यह कॉपीराइट का उल्लघंन है। कई चिट्ठकारों को इस पर आपत्ति थी। किन को आपत्ति थी यह आप उस चिट्ठी की टिप्पणी में पढ़ सकते हैं।
कैफे हिन्दी में मेरे भी कुछ लेख थे पर मुझे इस बारे में कोई आपत्ति नहीं थी। मेरे विचार में यह एक अच्छा कदम था। इससे हिन्दी आगे ही आयगी। ऐसे भी मेरी चिट्ठियां कॉपीलेफ्टेड हैं। मेरे अलावा कुछ अन्य भी मेरी विचारधारा के थे। अक्षरग्राम पर संजय जी की चिट्ठी के बाद, मेरे एक लेख ‘२ की पॉवर के अंक, पहेलियां, और कमप्यूटर विज्ञान‘ पर मैथली जी की टिप्पणी आयी,
‘श्री उन्मुक्त जी,
हम समाचारों से परे, हिन्दी रचनाओं की एक वेबसाईट [कैफे हिन्दी] बना रहें हैं। इस वेबसाईट का उद्देश्य कोई भी लाभ कमाना नहीं है।
यह दिखाने के लिये कि इस वेबसाईट का स्वरूप कैसा होगा, हमने प्रायोगिक रूप से आपके कुछ लेख इस वेबसाईट पर डाले हैं। यह वेबसाईट मार्च के दूसरे सप्ताह में विधिवत शुरू हो जायेगी। आपका ई-मेल पता मेरे पास न होने के कारण में कमेंट के माध्यम से ये संदेश आपको भेज रहा हूं। क्या हम आपके ब्लोग रचनायें लेख के रूप में इस वेबसाईट पर उपयोग कर सकते हैं?
आपने लिखा है कि आपके हर चिठ्ठे की तरह इस लेख की सारी चिठ्ठियां भी कौपी-लेफ्टेड हैं। लेकिन फ़िर भी हम आपकी विधिवत अनुमति एवं सुझावों के इन्तजार में हैं।
आपका
मैथिली गुप्त’
मेरा जवाब था,
‘प्रिय गुप्त जी, मेरी चिट्ठियां कौपीलेफ्टेड हैं आपका स्वागत है।
आप इन्हें प्रयोग कर सकते हैं।
उन्मुक्त’
लेकिन हिन्दी जगत पर कॉपीराएट के उल्लघंन का तूफान नहीं ठहरा। इस बारे में, कई अन्य चिट्ठाकारों ने स्वतंत्र चिट्ठियां भी लिखीं। मुझे लगा कि चिट्ठकार बन्धुवों की आपत्ति अन्तरजाल पर हिन्दी का बढ़ावा न होकर रोड़ा बन रही है तब मैंने एक चिट्ठी ‘डकैती, चोरी या जोश या केवल नादानी‘ नाम से लिखी थी। मेरे विचार से कैफे हिन्दी एक अच्छा कदम था। मुझे मैथली जी अच्छे व्यक्ति लगे। मुझे लगा कि वे हिन्दी की सेवा करेंगे।
जिस समय उक्त चिट्ठी लिखी गयी थी उस समय तक भी न तो मैं मैथली गुप्त जी को जानता था, न ही उनसे मेरा कोई परिचय था, न ही यह पोस्ट उनके कहने पर लिखी गयी थी। ऊपर लिखी टिप्पणी के अलावा हमारे बीच कोई ई-मेल का आदान प्रदान भी नहीं हुआ था।
मेरी उक्त चिट्ठी लिखने के बाद उनसे जान पहचान शुरू हुई। लेकिन अभी तक मेरी उनसे मुलाकात नहीं हुई है पर हम अक्सर उनसे ई-मेल पर बात करते हैं। अधिकतर तो मैं ही उनसे कुछ करने के लिये प्रार्थना करता हूं।
कुछ समय पहले मैं ‘You are Too Kind – A Brief History of Flattery‘ नामक पुस्तक की समीक्षा लिखना चाह रहा था। चाटुकारिता के बारे में शायद यह सबसे अच्छी लिखी पुस्तक है। १९८० के दशक में यह कई साल सर्वोत्तम पुस्तकों की सूची में रही।
इस पुस्तक की भूमिका के रूप में मैंने एक चिट्ठी ‘सिरफिरा उन्मुक्त आपको बेवकूफ बना रहा है‘ नाम से लिखी। मैंने, इस चिट्ठी को, एक हैकर की तरफ से, यह कहते हुऐ प्रकाशित की कि उसने मेरा चिट्टा हैक कर लिया है। मैं उसके बाद यह बताना चाहता था कि मैंने चाटुकारिता के द्वारा अपना चिट्ठा वापस पाया। उसी के साथ इस पुस्तक के बारे में लिखना चाहता था।
मैथली जी का ई-मेल मेरे पास आया कि वे मेरा चिट्टा वापस दिलवा सकते हैं। मैंने उनसे माफी मांगते हुऐ सही बात लिखी। मुझे लगा कि मैंने उन्हें जबरदस्ती परेशान किया पर इससे यह पता चलता है कि वे दूसरों के बारे में चिन्तित रहते हैं और उनके भले के बारे में सोचते हैं।
मुझे हमेशा लगता था कि मैथली जी हिन्दी के शुभचिन्तक हैं और वे अच्छा कार्य ही करेंगे। उनके बारे में, मेरा अनुमान सही निकला। कुछ दिनो बाद पता चला कि मैथली जी ने हिन्दी फॉन्टों के लिये भी निःशुल्क कार्य किया है। इस समय वे एक बेहतरीन हिन्दी फीड एग्रेगेटर बलॉगवाणी चला रहे हैं।
कुछ चिट्ठाकारों का कहना था कि मैं अपना चित्र भी चिट्ठे पर डालूं। मैं गुमनाम रह कर चिट्ठाकारी करता हूं इसलिये मैं अपना चित्र नहीं डालना चाहता था। कैफे हिन्दी में लेखों के साथ बेहतरीन चित्र होते हैं जिससे उस लेख का आकर्षण बढ़ जाता है। मैं इस तरह के चित्र नहीं बना पाता हूं इसलिये मैंने उनसे प्रार्थना की क्या वे मेरी और मेरी पत्नी का कार्टून चित्र बना सकते हैं।
मैथली जी ने कहा कि जरूर – उन्होंने हमारे कुछ चित्र चाहे। मैं उन्हें भी अपने चित्र नहीं देना चाहता था। मैंने उनसे कहा,
‘आपके मन में हमारे बारे में जिस प्रकार के व्यक्ति का चित्र आता हो वैसा ही बना दें।’
उन्होंने हमारे यह चित्र हमारे बारे में अपनी कल्पना से बनाये।

मेरे इस चिट्ठे, ‘उन्मुक्त‘ एवं ‘लेख‘ चिट्ठे; मेरी पॉडकास्ट ‘बकबक‘; और मेरी पत्नी के चिट्ठे ‘मुन्ने के बापू‘ पर यही चित्र हैं जो उनके द्वारा बनाये गये हैं। मैंने अपना आभार प्रगट के लिये ‘हिन्दी चिट्ठाकारिता, मोक्ष, और कैफे हिन्दी‘ नाम से चिट्ठी भी लिखी।
मैं यौन शिक्षा और सांख्यिकी के बारे में कुछ लिखना चाहता था। संख्यिकी के कुछ सिद्धांतों को समझाने के लिये चित्र की आवश्यकता थी। मैथली जी ने इस चिट्ठी के लिये भी एक खास चित्र बनाया।
मैं अक्सर लोगों से ई-मेल से बात करता हूं मुझे लगा कि मैं इन ई-मेलों को भी प्रकाशित करूं। मैंने इसके लिये ई-पाती नाम की अलग श्रेणी बनायी है। मैंने सबसे पहले अपनी बिटिया रानी ‘परी’ (जो कि वास्तव में मेरी बहूरानी है) के साथ होने वाली ई-मेलों को प्रकाशित करना शुरू किया। मैं अपने बेटे ‘मुन्ना’ के साथ हुई बातचीत को जल्द ही प्रकाशित करूंगा।
मुझे लगा कि यदि इन चिट्ठियों के साथ मेरी बहूरानी एवं बेटे के कार्टून चित्र हों तो उन चिट्ठियों का आकर्षण बढ़ जायगा। इसलिये मैंने मैथली जी से उनके चित्र बनाने के लिये प्रार्थना की।
मैंने अपने बेटे और बहूरानी के चित्र तो मैथली जी के पास नहीं भेजे पर उन्हें उनके बारे में कुछ तथ्यों को बताया,
- मेरी बहूरानी और बेटा विदेश में हैं।
- मेरा बेटा आईआईटी कानपुर से इंजीनियर हैं। उसने शोध पूरा कर लिया है और पोस्ट डॉक कर रहा है और जिस तरह से इस प्रकार का एक साधरण सा लड़का होता है वह उसी प्रकार से है।
- मेरी बहूरानी भारतीय मूल की कैनेडियन युवती है। उसने भौतिक शास्त्र की शिक्षा कैनाडा से ली है और इस समय अमेरिका में भौतिक शास्त्र पर शोध कर रही है। वह पाश्चात्य सभ्यता के कपड़े पहनती है पर चित्र में वे उसे सलवार कुर्ते में दिखा सकते हैं।
मैथली जी ने इसी वर्णन से उनके यह चित्र बनाये हैं।

अब आप इन्हीं चित्रों को उनसे संबन्धित चिट्ठियों में पायेंगे।
लीसा से मेरी मुलाकात वियाना में हुई थी। मैंने उससे भी ई-मेल पर की गयी बातचीत प्रकाशित करता रहता हूं। मुझे लगा कि मैं लीसा का भी इसी तरह का चित्र प्रकाशित करूं। मैंने मैथली जी के पास लीसा का वास्तविक चित्र भेजा। उन्होंने लीसा का यह चित्र बना कर भेजा है।

आगे से लीसा से संबन्धित ई-मेल पर यही चित्र रहेगा।
मैथली जी को मेरा धन्यवाद, मेरा आभार। वे हिन्दी की सेवा करते चलें और हम सब के लिये सुन्दर चित्र बनाते चलें – ऐसी प्रार्थना, ऐसी कामना।
‘उन्मुक्त जी क्या हिन्दी चिट्ठकार बंधुवों और अन्य लोगों से भी ई-मेल पर उस तरह से बात करते रहते हैं जैसे आप अपनी बहूरानी, लीसा, और बेटे के साथ।’
हां करता तो हूं।
‘तो क्या आप उनके साथ हुआ वर्तालाप प्रकाशित करेंगे।’
सारी ई-मेल में तो नहीं पर कुछ ई-मेल में जरूर ऐसी बात रहती है जो कि प्रकाशित करने लायक होती है। लेकिन कई लोग उसको प्रकाशित करने के लिये मना करते हैं पर शायद बिना नाम बताये प्रकाशित करने की अनुमति दे दें। इंतज़ार कीजिये।
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