ज्योतिष कूड़े का भार है

बीबीसी पर एक बेहतरीन विज्ञान श्रृंखला वंडरस् ऑफ द सोलर सिस्टम (Wonders of the Solar System) आ रही है। मैं नहीं कह सकता कि यह अपने देश में आ रही है कि नहीं। क्योंकि मेरे यहां केबल टीवी नहीं है केवल दूरदर्शन की सैटेलाइट चैनल है। यदि आप मेरी तरह के हैं तो इसे यूट्यूब में देख सकते हैं।

इस श्रृंखला के मेज़बान  प्रोफेसर ब्रायन कॉक्स (Professor Brian Cox) हैं।  आप मैनचेसटर विश्विद्यालय में प्रोफेसर और रॉयल सोसायटी युनिवर्सिटी रिसर्च फेलो (Royal Society University Research Fellow) हैं। इसके साथ वे लार्ज हार्डन कोलिडर (Large Hadron Collider) स्विटज़रलैंड में शोधकर्ता हैं।

वंडर्स् ऑफ द सोलर सिस्टम श्रृंखला की शुरुवात का दृश्य

 

इस श्रृंखला के दौरान जब वे बृहस्पति के बारे में बात करते हैं तब एक वाक्य ‘Astrology is a load of rubbish’ (ज्योतिष बकवास का भार है) का प्रयोग करते हैं। वे कहते हैं, Read more of this post

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कोई वकील क्यों बनना चाहता है?

‘उन्मुक्त जी, यह भी कोई सवाल है। क्या, कोई वकील भी बनना चाहता है। lawyer prestige

लगता है आपको मालुम नहीं, आज के समाज में स्पैमरस्  के बाद, समाज में, सबसे तिरस्कित  वकील ही हैं। कुछ वकील जरूर पैसा कमाते हैं पर अधिकतर तो फटेहाल ही हैं। यह सुन कर की आप कानून पढ़ रहे हैं, सुन्दर लड़कियां दूसरी तरफ मुंह फेर लेती हैं। फिर कोई वकील क्यों बनना चाहेगा।

यह कार्टून मेरा बनाया नहीं है। मैंने इसे यहां से लिया है। Cartoon by Nicholson from “The Australian” newspaper: www.nicholsoncartoons.com.au

जाइये, जाइये, मुझे न बताइये। मुझे सब मालुम है कि कोई वकील क्यों बनता है। पहले लोग आई.सी.एस. बनने विलायत जाते थे। आई.सी.एस. में फेल हो गये तो बार एट लॉ बन गये। आजकल इंजीनियरिंग, डाक्टरी या किसी प्रोफेशनल कोर्स में दाखिला नहीं मिला, कुछ करने को नहीं हुआ – वकालत की पढ़ाई करने लगे। उसके बाद वकील बन गये। अब आगे कुछ न कहलवाइये। कहीं, न्यायालय की अवमानना न हो जाय या फिर चिट्ठजगत से विदा लेनी पड़े।’

क्या आपका भी यही सोचना है। क्यों न यह सवाल उनसे पूछा जाय जो वकालत पढ़ रहे हैं। क्योंकि वे ही इसका सबसे अच्छा जवाब दे सकते हैं।

ऐक्सस ग्रुप विद्यार्थियों को ऋण की सुविधा प्रदान करता है। वे कई सालों से, अमेरिका में कानून में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के बीच एक प्रतियोगिता करा कर यह सवाल पूछते हैं। इस प्रतियोगिता में,  विद्यार्थियों को चार मिनट से कम समय का विडियो बना कर यूट्यूब में डालना होता है कि वे क्यों वकील बनना चाहते हैं। उन्हें इसके लिये क्यों और कहां से प्रेणना मिली। इसमें एक पुरुस्कार १०,००० डॉलर और पांच पुरुस्कार १,५०० के दिये जाते हैं।

इस साल की प्रतियोगिता में ११३ विद्यार्थियों ने भाग लिया। इन विडियों में से दस विद्यार्थियों के विडियो को चुना गया। इसके पश्चात लोगों ने वोटिंग की। इस वोटिंग में  ब्रानिगन रॉबर्टसन (Branigan Robertson) को प्रथम पुरुस्कार मिला। वे शैपमैन कानून विश्विद्यालय (Chapman University School of Law) के विद्यार्थी हैं।

आप रॉबर्टसन के बनाये विडियो को नीचे देखें। आपको वकील के जीवन का दूसरा पहलू भी देखने को मिलेगा। शायद यह जीवन, किसी  अन्य जीवन से, कहीं अधिक रोमांचकारी और समाजसेवा का है। क्या मालुम आपके विचार बदल जायें। जहां तक मेरा सवाल है, मुझे अनगिनत, अलग अलग प्रोफेशन के लोगों की जीवनी पढ़ने का मौका मिला। मैं तो यही सोचता हूं कि वकील का जीवन रोमांचकारी और समाजसेवा का है।

यदि आप अन्य पुरुस्कृत विडियो को देखना चाहें उन सबके बारे में यहां सूचना है।

हिन्दी में नवीनतम पॉडकास्ट Latest podcast in Hindi
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  • विकासवाद को पढ़ाने से मना करने वाले कानून – गैरकानूनी हैं:
  • मंकी ट्रायल:
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  • Linux पर सभी प्रोग्रामो में – सुन सकते हैं।
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न्यायालय ५ बजे बन्द होता है

शैरन केलर (Sharon Keller) सबसे पहले १९९४ में टेक्साज़ अपीली न्यायालय की न्यायाधीश चुनी गयी थीं। वे इसकी मुख्य न्यायधीश २००० में, फिर पुनः २००६ में २०१२ तक चुनी गयीं। लेकिन, क्या वे तब तक इस पद पर बनी रहेंगी।

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शैरन (अगली पंक्ति के मध्य में) अपने सहयोगियों के साथ - चित्र टेक्साज़ अपीली न्यायालय के वेब साइट के सौजन्य से है।

‘अरे उन्मुक्त जी, क्या हुआ उन्हें, क्या वे किसी बेहतर जगह जा रहीं हैं?’


बेहतर तो नहीं, पर उन्हें निकाले जाने के लिये जांच चल रही है।


‘उन्मुक्त जी, मुख्य न्यायाधीश पर जांच—क्या जुर्म किया है उन्होंने’


उन्होंने वकील से कहा कि न्यायालय ५ बजे बन्द होता है और उसे ५ बजे ही बन्द कर दिया।


‘लीजिये, इसमें क्या खता हो गयी कि उन्हें निकाले जाने के लिये जांच चल रही है।’


बहुत कुछ।

न्यायामूर्ति होल्मस् अंग्रेजी में फैसला लिखने वाले न्यायमूर्तियों में सबसे जाने माने न्यायमूर्ति हैं। वे बीसवीं शताब्दी के पहले चतुर्थांश में अमेरिकी सर्वोच्च न्यायया लय के न्यायाधीश थे। उनके अनुसार,

  • जज़ वास्तव में फैसला मुकदमों के तथ्यों पर ले लेते हैं फिर उस पर कानून का जामा पहना कर कारण लिखते हैं।
  • उनके तथ्यों पर लिये गये अधिकतर फैसले, कानून दायरे के बाहर होते हैं और ‘अव्यक्त धारणा’ (inarticulate major premise) पर निर्भर होते हैं।

    न्यायमूर्ती होल्मस् का चित्र विकिपीडिया के सौजन्य से


मैं नहीं जानता कि inarticulate major premise का ठीक अनुवाद ‘अव्यक्त धारणा’ है कि नहीं इसे तो हिन्दी ज्ञानी ही बता पायेंगे पर यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम किस प्रकार बड़े हुऐ, हमें कैसा वातावरण मिला।


हेरॉल्ड लास्की पिछली शताब्दी में अंग्रेज साम्यवादी विचाराधारा के विचारक हुऐ हैं। वे लंडन स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स अध्यापक रहे और भारतियों के जीवन के प्रेणनास्रोत। उनकी लिखी प्रसिद्ध पुस्तक है द ग्रामर ऑफ पॉलिटिक्स (The Grammar of Politics) इस पुस्तक में वे बताते हैं कि अच्छा जज़ वह जो अपनी अव्यक्त मुख्य प्रस्तावना से उपर उठ सके उनके मुताबिक होल्मस् के अतिरिक्त शायद कोई जज़ नहीं हुआ जो कि इसके ऊपर उठ सका। यह बात न्यायधीश शैरन कैलर के आचरण से साबित होती है जिसके कारण उनको हटाये जाने की जांच चल रही है।


२५ सितम्बर २००७ शाम पौने पांच बजे शैरन के पास वकील ने फोन किया,

‘माईकेल रिचार्ड मेरा मुवक्किल है। वह फांसी के तख्ते पर है। उसे आज रात में फांसी हो जायगी। सर्वोच्च न्यायालय के नये फैसले के आधार पर उसकी फांसी की सजा कट सकती है। इसके लिये वे एक याचिका प्रस्तुत कर रहे हैं। उनके कंप्यूटर में कुछ गड़बड़ी होने के कारण उन्हें आने में देर हो रही है। कृपया न्यायालय कुछ देर कर और खुला रखें ताकि हम यह याचिका प्रस्तुत कर सकें।’


शैरन ने जवाब दिया कि न्यायालय ५ बजे बन्द होता है। उसे घर में कुछ ठीक करवाना था। उसने न्यायालय बन्द करवाया और अपने घर मेकैनिक के साथ चली गयी। रात में माईकेल को फांसी हो गयी।


वकील ने शैरन के खिलाफ अभियोग दर्ज कराया कि उनका आचरण अनुचित था। वे जज़ बनी रहने के काबिल नहीं हैं। इसी कारण उन पर जांच चल रही है। जांच के दौरान, उन्होंने इस बात को स्वीकारा कि उन्होंने फोन मिलने के बाद भी न्यायालय बन्द कर दिया था। उनका कहना है,

‘माईकेल को एक महिला के साथ बलात्कार करने के बाद उसे मारने का जुर्म था। उसने इस जुर्म को स्वीकार कर लिया था। उस पर दो बार मुकदमा चल चुका था। उसकी याचिका पर पुनः सुनने की जरूरत नहीं थी।’


उन्होंने स्पष्ट किया,

‘यदि इस तरह की बात फिर उठेगी तो वे पुनः इस तरह का व्यवहार करेंगी।’


यदि, शैरन,  उस वकील की याचिका को सुन कर कहती कि उसमें कोई बल नहीं है तब  अलग बात होती, पर बिना उस याचिका देखे, सुने
यह कह देना अनुचित है। शायद, वे भूल गयीं कि जीवन लिया जा सकता है और एक बार उसके जाने के बाद, कभी भी वापस नहीं दिया जा सकता। एक बार जो चला गया वह वापस नहीं आ सकता। माइकेल के वकील की प्रार्थना ऐसी नहीं थी जो बिना सुने खारिज की जा सकती हो।

मेरे विचार से, शैरेन इस ‘अव्यक्त धारणा’ से ग्रसित थीं कि माईकेल को फांसी होनी चाहिये और किसी बात से ग्रसित हो कर काम करना, जज़ के आचरण के विरुद्ध है।

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इस विषय पर संबन्धित लेख नीचे दिये गये लिंक पर पढ़े जा सकते है।

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आभार … धन्यवाद

कुछ समय पहले, मैथली गुप्त जी ने, कैफे हिन्दी नामक एक वेबसाइट शुरू की। मैं न तो मैथली जी को, न ही  इस वेबसाइट के बारे में जानता था। दो साल पहले संजय जी की अक्षरधाम पर लिखी एक चिट्ठी से कैफे हिन्दी और आपके बारे में पता चला। कैफे हिन्दी पर कुछ चिट्ठाकारों के लेख, चिट्ठकारों की चिट्ठियों के लिंक के साथ थे। संजय जी ने इस बात पर आपत्ति जतायी थी कि यह कॉपीराइट का उल्लघंन है। कई चिट्ठकारों को इस पर आपत्ति थी। किन को आपत्ति थी यह आप उस चिट्ठी की टिप्पणी में पढ़ सकते हैं।


कैफे हिन्दी में मेरे भी कुछ लेख थे पर मुझे इस बारे में कोई आपत्ति नहीं थी। मेरे विचार में यह एक अच्छा कदम था। इससे हिन्दी आगे ही आयगी। ऐसे भी मेरी चिट्ठियां कॉपीलेफ्टेड हैं। मेरे अलावा कुछ अन्य भी मेरी विचारधारा के थे। अक्षरग्राम पर संजय जी की चिट्ठी के बाद,   मेरे एक लेख ‘२ की पॉवर के अंक, पहेलियां, और कमप्यूटर विज्ञान‘ पर मैथली जी की टिप्पणी आयी,

‘श्री उन्मुक्त जी,

हम समाचारों से परे, हिन्दी रचनाओं की एक वेबसाईट [कैफे हिन्दी] बना रहें हैं। इस वेबसाईट का उद्देश्य कोई भी लाभ कमाना नहीं है।
यह दिखाने के लिये कि इस वेबसाईट का स्वरूप कैसा होगा, हमने प्रायोगिक रूप से आपके कुछ लेख इस वेबसाईट पर डाले हैं। यह वेबसाईट मार्च के दूसरे सप्ताह में विधिवत शुरू हो जायेगी। आपका ई-मेल पता मेरे पास न होने के कारण में कमेंट के माध्यम से ये संदेश आपको भेज रहा हूं। क्या हम आपके ब्लोग रचनायें लेख के रूप में इस वेबसाईट पर उपयोग कर सकते हैं?

आपने लिखा है कि आपके हर चिठ्ठे की तरह इस लेख की सारी चिठ्ठियां भी कौपी-लेफ्टेड हैं। लेकिन फ़िर भी हम आपकी विधिवत अनुमति एवं सुझावों के इन्तजार में हैं।

आपका

मैथिली गुप्त’

मेरा जवाब था,

‘प्रिय गुप्त जी, मेरी चिट्ठियां कौपीलेफ्टेड हैं आपका स्वागत है।

आप इन्हें प्रयोग कर सकते हैं।

उन्मुक्त’


लेकिन हिन्दी जगत पर कॉपीराएट के उल्लघंन का तूफान नहीं ठहरा। इस बारे में, कई अन्य चिट्ठाकारों ने स्वतंत्र चिट्ठियां भी लिखीं।  मुझे लगा कि चिट्ठकार बन्धुवों की आपत्ति अन्तरजाल पर हिन्दी का बढ़ावा न होकर रोड़ा बन रही है तब मैंने एक चिट्ठी ‘डकैती, चोरी या जोश या केवल नादानी‘ नाम से लिखी थी। मेरे विचार से कैफे हिन्दी एक अच्छा कदम था। मुझे मैथली जी अच्छे व्यक्ति लगे। मुझे लगा कि वे हिन्दी की सेवा करेंगे।


जिस समय उक्त चिट्ठी लिखी गयी थी उस समय तक भी न तो मैं  मैथली गुप्त जी को जानता था, न ही उनसे मेरा कोई परिचय था, न ही यह पोस्ट उनके कहने पर लिखी गयी थी। ऊपर लिखी टिप्पणी के अलावा हमारे बीच कोई ई-मेल का आदान प्रदान भी नहीं हुआ था।


मेरी उक्त चिट्ठी लिखने के बाद उनसे जान पहचान शुरू हुई। लेकिन अभी तक मेरी उनसे मुलाकात नहीं हुई है पर हम अक्सर उनसे ई-मेल पर बात करते हैं। अधिकतर तो मैं ही उनसे कुछ करने के लिये प्रार्थना करता हूं।


कुछ समय पहले मैं ‘You are Too Kind – A Brief History of Flattery‘ नामक पुस्तक की समीक्षा लिखना चाह रहा था। चाटुकारिता के बारे में शायद यह सबसे  अच्छी लिखी पुस्तक है। १९८० के दशक में यह कई साल सर्वोत्तम पुस्तकों की सूची में रही।


इस पुस्तक की भूमिका के रूप में मैंने एक चिट्ठी ‘सिरफिरा उन्मुक्त आपको बेवकूफ बना रहा है‘ नाम से लिखी। मैंने, इस चिट्ठी को,  एक हैकर  की तरफ से, यह कहते हुऐ प्रकाशित की कि उसने मेरा चिट्टा हैक कर लिया है। मैं उसके बाद यह बताना चाहता था कि मैंने चाटुकारिता के द्वारा अपना चिट्ठा वापस पाया। उसी के साथ इस पुस्तक के बारे में लिखना चाहता था।


मैथली जी का ई-मेल मेरे पास आया कि वे मेरा चिट्टा वापस दिलवा सकते हैं। मैंने उनसे माफी मांगते हुऐ सही बात लिखी। मुझे लगा कि मैंने उन्हें जबरदस्ती परेशान किया पर इससे यह पता चलता है कि वे दूसरों के बारे में चिन्तित रहते हैं और उनके भले के बारे में सोचते हैं।


मुझे हमेशा लगता था कि मैथली जी हिन्दी के शुभचिन्तक हैं और वे अच्छा कार्य ही करेंगे। उनके बारे में, मेरा अनुमान सही निकला। कुछ दिनो बाद पता चला कि मैथली जी ने हिन्दी फॉन्टों के लिये भी निःशुल्क कार्य किया है।  इस समय वे एक बेहतरीन हिन्दी फीड एग्रेगेटर बलॉगवाणी चला रहे हैं।


कुछ चिट्ठाकारों का कहना था कि मैं अपना चित्र भी चिट्ठे पर डालूं। मैं गुमनाम रह कर चिट्ठाकारी करता हूं इसलिये मैं अपना चित्र नहीं डालना चाहता था। कैफे हिन्दी में लेखों के साथ बेहतरीन चित्र होते हैं जिससे उस लेख का आकर्षण बढ़ जाता है। मैं इस तरह के चित्र नहीं बना पाता हूं इसलिये मैंने उनसे प्रार्थना की क्या वे मेरी और मेरी पत्नी का कार्टून चित्र बना सकते हैं।


मैथली जी ने कहा कि जरूर – उन्होंने हमारे कुछ चित्र चाहे। मैं उन्हें भी अपने चित्र  नहीं देना चाहता था। मैंने उनसे कहा,

‘आपके मन में हमारे बारे में जिस प्रकार के व्यक्ति का चित्र आता हो वैसा ही बना दें।’

उन्होंने हमारे यह चित्र हमारे बारे में अपनी कल्पना से बनाये।

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मेरे इस चिट्ठे, ‘उन्मुक्त‘ एवं ‘लेख‘ चिट्ठे; मेरी पॉडकास्ट ‘बकबक‘; और मेरी पत्नी के चिट्ठे ‘मुन्ने के बापू‘ पर यही चित्र हैं जो उनके द्वारा बनाये गये हैं। मैंने अपना आभार प्रगट के लियेहिन्दी चिट्ठाकारिता, मोक्ष, और कैफे हिन्दी नाम से चिट्ठी भी लिखी।


मैं यौन शिक्षा और सांख्यिकी  के बारे में कुछ लिखना चाहता था। संख्यिकी के कुछ सिद्धांतों को समझाने के लिये चित्र की आवश्यकता थी। मैथली जी ने इस चिट्ठी के लिये भी एक खास चित्र बनाया।


मैं अक्सर लोगों से ई-मेल से बात करता हूं  मुझे लगा कि मैं इन ई-मेलों को भी प्रकाशित करूं। मैंने इसके लिये ई-पाती नाम की अलग श्रेणी बनायी है। मैंने सबसे पहले अपनी बिटिया रानी ‘परी’ (जो कि वास्तव में मेरी बहूरानी है) के साथ होने वाली ई-मेलों को प्रकाशित करना शुरू किया। मैं अपने बेटे ‘मुन्ना’ के साथ हुई बातचीत को जल्द ही प्रकाशित करूंगा।


मुझे लगा कि यदि इन चिट्ठियों के साथ मेरी बहूरानी एवं बेटे के कार्टून चित्र हों तो उन चिट्ठियों का आकर्षण बढ़ जायगा। इसलिये मैंने मैथली जी से उनके चित्र बनाने के लिये प्रार्थना की।


मैंने अपने बेटे और बहूरानी के चित्र तो मैथली जी के पास नहीं भेजे पर उन्हें उनके बारे में कुछ तथ्यों को बताया,

  • मेरी बहूरानी और बेटा विदेश में हैं।
  • मेरा बेटा आईआईटी कानपुर से इंजीनियर हैं। उसने शोध पूरा कर लिया है और पोस्ट डॉक कर रहा है और जिस तरह से इस प्रकार का एक साधरण सा लड़का होता है वह उसी प्रकार से है।
  • मेरी बहूरानी भारतीय मूल की कैनेडियन युवती है। उसने भौतिक शास्त्र की शिक्षा कैनाडा से ली है और इस समय अमेरिका में भौतिक शास्त्र पर शोध कर रही है। वह पाश्चात्य सभ्यता के कपड़े पहनती है पर चित्र में वे उसे सलवार कुर्ते में दिखा सकते हैं।

मैथली जी ने इसी वर्णन से उनके यह चित्र बनाये हैं।

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अब आप इन्हीं चित्रों को उनसे संबन्धित चिट्ठियों में पायेंगे।


लीसा से मेरी मुलाकात वियाना में हुई थी। मैंने  उससे भी ई-मेल पर की गयी बातचीत प्रकाशित करता रहता हूं। मुझे लगा कि मैं लीसा का भी इसी तरह का चित्र प्रकाशित करूं। मैंने मैथली जी के पास लीसा का वास्तविक चित्र भेजा। उन्होंने लीसा का यह चित्र बना कर भेजा है।

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आगे से लीसा से संबन्धित ई-मेल पर यही चित्र रहेगा।


मैथली जी को मेरा धन्यवाद, मेरा आभार। वे हिन्दी की सेवा करते चलें और हम सब के लिये सुन्दर चित्र बनाते चलें – ऐसी प्रार्थना, ऐसी कामना।


‘उन्मुक्त जी क्या हिन्दी चिट्ठकार बंधुवों और अन्य लोगों से भी ई-मेल पर उस तरह से बात करते रहते हैं जैसे आप अपनी बहूरानी, लीसा, और बेटे के साथ।’

हां करता तो हूं।

‘तो क्या आप उनके साथ हुआ वर्तालाप प्रकाशित करेंगे।’

सारी ई-मेल में तो नहीं पर कुछ ई-मेल में जरूर ऐसी बात रहती है जो कि प्रकाशित करने लायक होती है। लेकिन कई लोग उसको प्रकाशित करने के लिये मना करते हैं पर शायद बिना नाम बताये प्रकाशित करने की अनुमति दे दें। इंतज़ार कीजिये।

मुझे मिलना उस मोड़ पर

‘मुझे मिलना उस मोड़ पर,
जहां केवल हम दोनो हों
वो मोड़ ऐसा हो,
जहां से मैं, न पीछे हट सकूं,
और न ही आगे जा सकूं,
बिन संग तुम्हारे।


मुझे मिलना उस मोड़ पर,
जहा बसंती हवा के झोके,
मुझे मीठी सी कशिश में बांध ले
और तुम्हे भी रंग ले,
अपने रंग में।

मुझे मिलना उस मोड़ पर
जब मै बिखर जाऊं ,
अमलताश की भांति
और तुम समेट लो,
अपनी बाहों में मुझे।

मुझे मिलना उस मोड़ पर
जब तुम सुनना चाहो
कुछ दिल से,
और मै कुछ कहना चाहूं
दिल से।

मुझे मिलना उस मोड़ पर,
जहां जोर से बारिश आ रही हो,
जहां पर सिर्फ़ और सिर्फ़ हम दोनो हों,
हंसते हंसते, प्यार से मीठी, मीठी बातें करते।
सुनते उस लम्बे से रास्ते में,
सिर्फ़ वह आवाज,
जो हमारे दिल को,
खुश कर देती है।

मुझे मिलना उस मोड़ पर,
जहां हम दोनो के लिये,
पूरी जगह है।
है जगह, यादों के लिए
बातों के लिए,
हो जगह, प्यार के लिए।
सिर्फ़ उस मोड़ पर मिलना मुझे!’

‘उन्मुक्त जी, क्या बात है लगता है कि ‘जॉगरस् पार्क’ या फिर ‘चीनी कम’ फिल्म देख कर आ रहें हैं?’

नहीं भाई, नहीं बहना नहीं।  मैं और कविता –  कवितायें तो गागर में सागर भरती हैं। कविता लिखना मेरे बस की बात नहीं है।  यह कविता मैंने नहीं लिखी है। यह तो मैंने  चुरायी है। इस चिट्ठी के चित्र भी चुरायें हैं।

‘चुरा ली है! आप, यह क्या कह रहे हैं?’

इसे अपने चिट्ठे पर डालने से पहले सहाना जी (इस कविता की रचयिता)  से अनुमति नहीं ली है। इसे तो चुराया जाना  ही कहा जायगा।

‘उन्मुक्त, यह  सहाना जी कौन हैं? कभी इनकी कोई हिन्दी में चिट्ठी नहीं पढ़ी? क्या यह चित्र उनका है?

मैं नहीं जानता कि यह चित्र उनका है अथवा नहीं। यह चित्र तो उनके परिचय से है। वैसे मुझे तो यह चित्र मुझे कलाकारा कैटरीना कैफ की तरह लग रहा है 🙂

सहाना जी, बैंगलोर की रहने वाली हैं पर आजकल मुम्बई में पढ़ती हैं। वे अंग्रेजी में चिट्ठाकारी करती हैं पर कभी कदा हिन्दी में चिट्ठियां लिख देती हैं। बस, उनकी हिन्दी की एक चिट्ठी मेरे उन्मुक्त हिन्दी चिट्ठे फीड एग्रेगेटर के पकड़ में आ गयी। वहां पहुंच कर जब उनके चिट्ठे ‘Exhibiting Hidden Talents!!‘ को देखने लगा तो उनके द्वारा प्रकाशित, यह  कविता पसन्द आयी। इसमें रुमानी भावनाओं का अपना ही अन्दाज़ है। वहीं से यह कविता और पहला चित्र चुराया है। मैंने कविता के शब्दों में कुछ बदलाव किये हैं। उनकी मूल कविता वहीं, उसी चिट्ठी पर पढ़ें। कुहू जी  भी,  मुझें इसी तरह से अन्तरजाल पर मिली थीं। मुझे हिन्दी में नियमित रूप से चिट्टाकारी करने वाले कई चिट्ठाकार भी इस तरह से मिले।

मैंने सहाना जी एक चिट्ठी पर टिप्पणी की कि आप बहुत जल्द हिन्दी में चिट्ठाकारी करने लगेंगी। उनका जवाब था,

‘Oh God! It’s unimaginable to blog in Hindi. Of course,  I’ve completed Hindi BA (taking Private Exams) and Sanskrit BA (Private Exams).’

हे भगवान। हिन्दी में चिट्ठाकारी करना तो कल्पना से भी बाहर है। हांलाकि, मैंने हिन्दी और संस्कृत में स्नातक (प्राइवेट) डिग्री ली हुई है।

मेरा कहना कि सहाना जी हिन्दी में चिट्ठाकारी करेंगी, इसलिये था कि वे लिखती अच्छा हैं पर उसके अनुरूप उनके चिट्ठे में टिप्पणी नहीं है। हिन्दी चिट्ठाकार एक दूसरे को प्रोत्साहित करने के लिये ज्यादा टिप्पणी करते हैं, जो कि अच्छी बात है। अब टिप्पणियां किसे पसन्द नहीं हैं। मुझे भी – चाहें मैं जितना कहूं कि टिप्पणियां न मिलने से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता 🙂

मैंने उन्हें बताया कि मैंने एक शर्त लगायी है कि आप हिन्दी में चिट्टाकारी करेंगी। यदि मैं शर्त हार गया तो एक नवयुवती  से हारने के कारण आपके बारे में एक खास चिट्ठी लिखूंगा। इस पर, मेरे परिवार के सदस्य (मेरी पत्नी, मेरे बेटा, और मेरी बहूरानी) बहुत हसेंगे।

‘उन्मुक्त जी, तब तो लगता है आप हार गये क्योंकि यह चिट्ठी तो खास सहाना जी के बारे में है।’

बिलकुल नहीं। मैं हारा नहीं हूं। मैं तो जीत गया हूं। सहाना जी के लिये यह खास चिट्ठी जीतने की खुशी में लिख रहा हूं।

‘अरे उन्मुक्त जी यह आप कैसे कह सकते हैं। कहां है सहाना जी का हिन्दी का चिट्ठा। जरा हम भी तो देखें :-)’

भाई जी, बहना जी – मैं तो इतना जानता हूं कि सहाना जी ने मुझे बताया है कि,

‘I have composed many poems in Hindi.  … My first romantic poem was ‘Love at First Sight’. I got the title but was struggling for the content. I took, 5 hours to interpret my imagination. … I take some time to step into any new one. … I may take some time for Hindi Blog! Don’t worry, you will win your   bet. I won’t allow an elderly person to loose the bet.  No one will  laugh at you rather they will appreciate you!’
मैंने हिन्दी में, बहुत सारी कवितायें  लिखी हैं। मेरी पहली रुमानी कविता ‘पहली मुलाकात में प्यार’ (लव ऍट फर्स्ट साइट) थी। मुझे शीर्षक तो मिल गया पर अपनी कल्पना को शब्द देने में ५ घंटे लगे। मुझे नयी कविता लिखने में समय लगता है। हो सकता है कि मुझे हिन्दी में  चिट्ठा लिखने में समय लगे।  घबराईये नहीं, मैं आपको हारने नहीं दूंगी। आप पर कोई नहीं हसेगा, लोग आपका आदर करेंगे।

अन्तरजाल पर कहीं पढ़ा था कि हिन्दी के ६५४० चिट्ठे हैं। चलिये, बहुत जल्द ही ६५४१ होने वाले हैं।

हमारी बातचीत ई-मेल के द्वारा नहीं हुई है पर एक दूसरे के चिट्ठे पर टिप्पणी के द्वारा हुई है जो कि, अन्तरजाल पर कोई भी पढ़ सकता है। इसलिये यह मत सोचियेगा कि मैं किसी की व्यक्तिगत ई-मेल सार्वजनिक कर रहा हूं। हां, मैंने कुछ भाषा सम्पादित की है।  नयी उम्र के लोगों की एसएमएस (SMS), मुझे कम समझ में आती है 🙂

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इंगलैंड में कंप्यूटर प्रोग्राम और पेटेंट के संबन्ध में नया निर्णय

पेटेंट, बौद्धिक सम्पदा अधिकारों में सबसे महत्वपूर्ण है और शायद सबसे मुश्किल भी। मैंने इसके बारे में तीन श्रंख्ला पेटेंट, पेटेंट और कंप्यूटर प्रोग्राम, पेटेंट और पौधों की किस्में एवं जैविक भिन्नता अपने उन्मुक्त चिट्ठे पर की है। इनकी पहली कड़ी यहां, यहां, और यहां और अन्तिम कड़ी यहां, यहां, और यहां हैं। इसके बाद इन्हें संकलित कर, अपने लेख चिट्ठे पर पेटेंट, पेटेंट और कंप्यूटर प्रोग्राम, और पेटेंट और पौधों की किस्में एवं जैविक भिन्नता नाम से चिट्ठियां पोस्ट की हैं। बौद्धिक सम्पदा अधिकारों में सबसे महत्वपूर्ण है और शायद सबसे मुश्किल भी। मैंने इसके बारे में तीन श्रंख्ला पेटेंट, पेटेंट और कंप्यूटर प्रोग्राम, पेटेंट और पौधों की किस्में एवं जैविक भिन्नता अपने उन्मुक्त चिट्ठे पर की है। इनकी पहली कड़ी यहां, यहां और यहां और अन्तिम कड़ी यहां, यहां और यहां हैं। इसके बाद इन्हें संकलित कर एक इसी नाम से तीन चिट्ठियां अपने लेख चिट्ठे पर यहां, यहां और यहां रखी हैं। पेटेंट विषय में सबसे विवादास्पद विषय है कि कंप्यूटर प्रोग्राम कब पेटेंट कराया जा सकता है। इस बारे में अलग-अलग देशों के नियम भी भिन्न हैं। यह सब इस श्रंखला में विस्तार से बताया है।

कंप्यूटर प्रोग्राम को पेटेंट कराने के विषय में भी सबसे विवादास्पद बात है कि क्या कंप्यूटर के द्वारा व्यापार करने के तरीके को क्या पेटेंट कराया जा सकता है? मैंने क्या अमेरिका में कंप्यूटर प्रोग्राम के संबन्ध में पेटेंट का कानून बदलेगा की चिट्ठी पर बताया था कि अमेरिका में उलझन क्यों शुरू हुई और क्या वहां पर कानून बदलेगा। इंगलैंड में कंप्यूटर प्रोग्राम के संबन्ध में, पेटेंट के कानून में एक निर्णय के द्वारा कुछ बदलाव आया है। आज इसी की चर्चा है।


यूरोपियन पेटें‍ट कनवेशंन १९७३ (ई.पी.सी.) का अनुच्छेद ५२(२) कहता है कि मानसिक कार्य करने की प्रक्रिया, खेल खेलने के तरीके, व्यापार तरीके, और कं‍प्यूटर प्रोग्राम आविष्कार नहीं माने जायेगें। यानी कि, कं‍प्यूटर प्रोग्राम और व्यापार तरीकों को पेटेंट नहीं किया जा सकता। यही ई.पी.सी. के सदस्य देशों का भी कानून है। किन्तु व्यवहार में, यह नियम बदल गया है। यूरोप के देशों में इस बारे के कानून में विरोधाभास है। कुछ देश, यदि आवेदन पत्र – कंप्यूटर प्रोग्राम या व्यापार के तरीकों की जगह – तकनीकी में बढ़ोत्तरी की तरह प्रस्तुत किये जांय तो उस पर पेटेंट दे रहे हैं पर इंगलैंड में ऐसा नहीं हो रहा था था वे सारे आवेदन पत्रों को खारिज कर रहे थे।

United Kingdom Intellectual Property Office (UKIPO) (यू.के.आई.पी.ओ.) के समक्ष पेटेंट करवाने के लिये छः आवेदन पत्र दिये गये। इन सब में किसी भी कार्य को करने के लिये कंप्यूटर प्रोग्राम की सहायता ली जा रही है यह सारे आवेदन यू.के.आई.पी.ओ. ने इस बात पत खारिज कर दिये कि यूरोपियन पेटें‍ट कनवेशंन १९७३ (ई.पी.सी.) के अनुच्छेद ५२ के अन्दर यह पेटेंट नहीं किये जा सकते। इसके विरुद्ध अपील प्रस्तुत की गयी। जो कि In re Astron Clinica {(२००८) EWHC ८५ (Pat); २००८ WLR (D) १२} मुकदमें २८ फरवरी २००८ को स्वीकार कर ली गयी। न्यायालय का कहना है कि,

‘[C]laims to computer programs are not necessarily excluded by Article 52. In a case where claims to a method performed by running a suitably programmed computer or to a computer programmed to carry out the method are allowable, then, in principle, a claim to the program itself should also be allowable.’
यदि प्रोग्रामड् किये गये किसी कंप्यूटर पर किसी तरीके के लिये पेटेंट दिये जा सकते हैं तब सिद्धान्तः उस प्रोग्राम के लिये भी दिये जा सकते हैं।

इस निर्णय के कारण, अब कंप्यूटर प्रग्राम के लिये आवेदन पत्र केवल इस बात पर खारिज नहीं किये जा सकते हैं कि वे यूरोपियन पेटें‍ट कनवेशंन १९७३ (ई.पी.सी.) के अनुच्छेद ५२ से बाधित हैं।

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(सुनने के लिये चिन्ह शीर्षक के बाद लगे चिन्ह ► पर चटका लगायें यह आपको इस फाइल के पेज पर ले जायगा। उसके बाद जहां Download और उसके बाद फाइल का नाम अंग्रेजी में लिखा है वहां चटका लगायें।: Click on the symbol ► after the heading. This will take you to the page where file is. Click where ‘Download’ and there after name of the file is written.)

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यह ऑडियो फइलें ogg फॉरमैट में है। इस फॉरमैट की फाईलों को आप –

  • Windows पर कम से कम Audacity, MPlayer, VLC media player, एवं Winamp में;
  • Mac-OX पर कम से कम Audacity, Mplayer एवं VLC में; और
  • Linux पर सभी प्रोग्रामो में – सुन सकते हैं।

बताये गये चिन्ह पर चटका लगायें या फिर डाउनलोड कर ऊपर बताये प्रोग्राम में सुने या इन प्रोग्रामों मे से किसी एक को अपने कंप्यूटर में डिफॉल्ट में कर ले।

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मुफ्त बांटे – पैसा कमायें

‘वाह जी वाह, क्या बात है। मुफ्त बांटा जाय और पैसा कमाया जाय। लगता है कि उन्मुक्त जी पर होली का नशा नहीं उतरा है।’

चलिये मैं आपको कुछ दिन पहले अफ्रीका के एक वित्तीय संस्थान के अफसर की बात बताता हूं। उसने कहा कि, आजकल उनके वित्तीय संस्थान का काम बहुत अच्छा चल रहा है। लोगों को आश्चर्य हुआ। उन्होने इसका कारण कुछ यह बताया।

‘अफ्रीका में लोग बैंकों में दो कारणों से पैसा नहीं रखते हैं।

  • उनके पास बैंक में रखने के लिये पैसा नहीं है
  • उनके पास सूचना का आभाव है।

वहां पर अधिकतर लोग किसान हैं। लोग उनसे सस्ते में गल्ला खरीदते हैं फिर शहर के बज़ार में महंगे में बेच देते हैं। वित्तीय संस्थानों ने सबको मोबाईल फोन मुफ्त में बाटें। इस कारण वे शहर में फोन के द्वारा सही दाम पता कर लेते हैं और लोगों से अपनी फसलों के सही दाम मांगते हैं। इस तरह से लोगों के पास पैसा आने लगा, वे बैंकों में खाते खुलवाने लगे और पैसा रखने लगे।’

इस तरह की कुछ बात मुझे केरल में भी सुनायी पड़ी। वहां मछुवारे मछली पकड़ते ही मोबाइल से दाम मालुम करने लगते हैं और वहीं अपनी नाव ले जाते हैं जहां मछली के लिये सबसे अच्छे दाम मिले।

ओपेन सोर्स की भी यही कहानी है। लोग अक्सर सोचते हैं कि ओपेन सोर्स पर किसी एक का मालिकाना हक होना संभव नहीं है; इसके लिये पैसा नहीं लिया जा सकता है – इसलिये इससे पैसा नहीं कमाया जा सकता। यह सोच गलत है। ओपेन सोर्स सॉफ्टवेयर मुफ्त बांटने का यह मतलब नहीं है कि इससे पैसा नहीं कमाया जा सकता। यह उसी तरह की युक्ति है जैसी कि अफ्रीका के वित्तीय संस्थानों ने की।

ओपेन सोर्स में, पैसा कमाने का तरीका, मालिकाना सॉफ्टवेयर से अलग है। शायद, यही बेहतर तरीका है। इसलिये एक्सट्रामॅड्यूरा (Extremadura) में ओपेन सोर्स को बढ़ावा दिया जा रहा है।

एक्सट्रामॅड्यूरा, स्पेन का स्वाशासित (autonomous) पश्चमी भाग है

‘एक्सट्रामॅड्यूरा (Extremadura)? भईये, यह किस जगह का नाम है?’

एक्सट्रामॅड्यूरा, स्पेन का स्वाशासित (autonomous) पश्चमी भाग है। इतिहास ने इसे हमेशा नज़र अन्दाज़ किया पर अब वह उपेक्षित नहीं रहना चाहता – इसलिये उसने तय किया है कि वह ओपेन सोर्स को बढ़ावा देगा। उन्होने अपने लिये लिनेक्स का नया वितरण लिनएक्स (LinEx) निकाला है। यह लिनेक्स के डेबियन (Debian) वितरण को अपनी जरूरतों को देखते हुऐ बदला गया है। सारे शिक्षा संस्थनो में केवल इसी का प्रयोग हो रहा है। उनके सात लाख डेस्कटॉप और चार सौ सर्वर केवल लिनेक्स में ही चल रहे हैं।

linex-mascot-stork.jpg

एक्सट्रामॅड्यूरा में लिनएक्स का मंगलकारी चिन्ह (Mascot) सटॉर्क (Stork) चिड़िया है।

stork-fly-high.jpg

यह इसलिये कि वे सोचते हैं जिस तरह से यह चिड़िया आकाश में ऊंचे उड़ सकती है, ओपेन सोर्स के जरिये वे भी ऊंचे उठ पायेंगे।

यह और क्या, क्या कर रहें हैं, किस प्रकार कर रहे हैं – यह आप स्वयं यूरोन्यूस् (EuroNews) की इस क्लिप में देख लिजिये।

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