सैकड़ों वर्ष पहले के इंजीनियर ही बेहतर थे

श्री अनुपम मिश्र गांधी पीस फाउंडेशन (Gandhi Peace Foundation) की नींव डालने वाले सदस्यों में हैं। वे राजस्थान में पानी संचय के बारे में बात करते हैं। उन्होंने ‘राजस्थान की रजत बूंदे’ नामक पुस्तक लिखी है। इसे गांधी शांति प्रतिष्ठान, नयी दिल्ली ने छापा है।

कुछ समय पहले ‘टेड आइडियआस् वर्थ स्परैडिंग’ (TED Ideas Worth Spreading) में,  अनुपम जी का भाषण सुनने को मिला। इसमें वे बताते हैं कि किस तरह  से सैकड़ों वर्ष पहले, भारतवासियों ने रेगिस्तान में, पानी संचय करने के तरीके निकाले। यह तरीके आजकल के कड़ोरों रुपये खर्च कर बनाये गये पानी संचय करने के तरीकों से कहीं बेहतर हैं। Read more of this post

Advertisement

लगता है कि साइकिल चलाने का चस्का बढ़ेगा

यह चित्र मैसाचुसेटस् इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलोजी की वेबसाइट से।

‘उन्मुक्त जी, आप यह इसलिये कह रहे हैं क्योंकि आप साइकिल प्रेमी हैं।’

यह सच है कि मैं साइकिल प्रेमी हूं और कई काम साइकिल पर ही करता हूं। मैंने अपने साइकिल प्रेम के बारे में पहले भी लिखा है। लेकिन यह बात मैं अपने साईकिल प्रेम के कारण नहीं पर कोपेनहेगन व्हील के कारण कह रहा हूं। मैं यह भी सोचता हूं कि साइकिल चलाना, अपनी पृथ्वी मां की धरोहर को बचा रखने में सहायक है।

‘कोपेनहेगन व्हील!! यह क्या बला है?’ Read more of this post

%d bloggers like this: