अम्मां यादों में
मई 11, 2015 2 टिप्पणियां
रिश्तों में सबसे पवित्र रिश्ता मां का है। इस चिट्ठी में अम्मां के बारे में, कुछ चर्चा। Read more of this post
उन्मुक्त पर मेरे विचार, छुट-पुट पर कुछ इधर की, कुछ उधर की
मई 11, 2015 2 टिप्पणियां
रिश्तों में सबसे पवित्र रिश्ता मां का है। इस चिट्ठी में अम्मां के बारे में, कुछ चर्चा। Read more of this post
अप्रैल 4, 2012 टिप्पणी करे
इस चिट्ठी में कर्ट वोनेगेट के एक प्रसिद्ध उद्धरण, ज़ेन पेन्सिल चिट्ठे, और और मेरे प्रिय समय की चर्चा है।
कर्ट वोनेगेट फिल्म 'बैक टू स्कूल' फिल्म में
अगस्त 16, 2010 2 टिप्पणियां
मैंने इस चिट्ठे की पिछली चिट्ठी में बताया था कि मैंने ‘ज्योतिष, अंक विद्या, हस्तरेखा विद्या, और टोने-टुटके‘ श्रृंखला ज्योतिष पर विश्वास करने वालों का मजाक बनाने के लिये या किसी की आस्था या विश्वास पर चोट पहुंचाने के लिये नहीं लिखी थी और वायदा किया कि इसके लिखने का कारण बताउंगा। इस चिट्ठी इस श्रृंखला के लिखने का कारण है। Read more of this post
जुलाई 25, 2010 4 टिप्पणियां
कुछ समय पहले मैंने ‘नाई की दाढ़ी को कौन बनाता है‘ नामक चिट्ठी लिखी। इसमें संस्कृत का एक श्लोक भी लिखा था। मैं जानना चाहता था कि वह कहां से है। कई चिट्ठाकार बन्धुवों ने मदद की। इस पर अरविन्द जी ने ‘मेरे ही बुकशेल्फ में छुपा था उन्मुक्त जी के प्रश्न का जवाब!‘ नामक चिट्ठी लिखी। इस पर हिमान्शू मोहन जी, ने टिप्पणी की,
‘… एक बात और यहाँ साथ ही कहता चलूँ – जो मैंने उन्मुक्त की पोस्ट पर भी कही थी – कि बिना पूरी तरह जाने किसी विषय को, उस के बारे में अच्छी या बुरी धारणा बना लेना – पूर्वाग्रह है। सतर्क और जिज्ञासु – ज्ञान-पिपासु को इससे बचना चाहिए।’
राशियां – चित्र विकिपीडिया के सौजन्यसे
मैंने भी वहीं टिप्प्णी कर कहा था कि मैं जल्द ही अपनी बात रखूंगा। यह रहा मेरे जवाब का पहला भाग। Read more of this post
अक्टूबर 7, 2009 7 टिप्पणियां
मैंने कुछ समय पहले बचपन में पढ़ी आर्ची कॉमिक्स के बारे में ‘हाय, यह क्या किया – मेरा दिल ही टूट गया‘ नाम से एक चिट्ठी लिखी थी। यह इसलिये क्योंकि आर्ची कॉमिक्स प्रकाशकों ने घोषणा की थी कि आर्ची, विरॉनिका से शादी कर रहा है। मेरा तो दिल ही टूट गया।
मुझे लगता है कि कोई बेवकूफ ही बॅटी जैसी प्यारी और बेहतरीन व्यक्तित्व की लड़की छोड़ कर, विरॉनिका जैसी अमीर पर घमन्डी लड़की से शादी कर ले। यह सारी कहानी छः अंकों में लिखी जानी थी। इसके पहले तीन अंक कुछ इस तरह के थे। इसे देख कर तो बस क्या बताउं …
मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि आर्ची क्यों इतनी बड़ी भूल कर रहा है। मेरे विचार में उसके लिये विरॉनिका नहीं, पर बॅटी सही है। उसे बॅटी से शादी करनी चाहिये। लेकिन मैंने पहली वाली चिट्ठी का अन्त करते समय लिखा था कि क्या कहानी में ट्विस्ट है।
ट्विस्ट तो है। लेकिन आने वाले तीन अंको का चित्र तो देखिये।
आ गया न मजा। दिल खुश हुआ न। शायद यह इसलिये हुआ कि इस बारे में सारे मतदान में ८०% लोगो ने कहा कि आर्ची को बॅटी से और केवल २०% ने कहा कि विरॉनिका से शादी करनी चाहिये। इसके बारे में आप विस्तार से न्यू यॉर्क टाइम्स् का यह लेख पढ़ सकते हैं।
अन्य संबन्धित लेख
सांकेतिक शब्द
Archie Comics, Archie Andrews, Betty Cooper, Veronica Lodge, Betty and Veronica,
अगस्त 24, 2009 4 टिप्पणियां
शैरन केलर (Sharon Keller) सबसे पहले १९९४ में टेक्साज़ अपीली न्यायालय की न्यायाधीश चुनी गयी थीं। वे इसकी मुख्य न्यायधीश २००० में, फिर पुनः २००६ में २०१२ तक चुनी गयीं। लेकिन, क्या वे तब तक इस पद पर बनी रहेंगी।
शैरन (अगली पंक्ति के मध्य में) अपने सहयोगियों के साथ - चित्र टेक्साज़ अपीली न्यायालय के वेब साइट के सौजन्य से है।
‘अरे उन्मुक्त जी, क्या हुआ उन्हें, क्या वे किसी बेहतर जगह जा रहीं हैं?’
बेहतर तो नहीं, पर उन्हें निकाले जाने के लिये जांच चल रही है।
‘उन्मुक्त जी, मुख्य न्यायाधीश पर जांच—क्या जुर्म किया है उन्होंने’
उन्होंने वकील से कहा कि न्यायालय ५ बजे बन्द होता है और उसे ५ बजे ही बन्द कर दिया।
‘लीजिये, इसमें क्या खता हो गयी कि उन्हें निकाले जाने के लिये जांच चल रही है।’
बहुत कुछ।
न्यायामूर्ति होल्मस् अंग्रेजी में फैसला लिखने वाले न्यायमूर्तियों में सबसे जाने माने न्यायमूर्ति हैं। वे बीसवीं शताब्दी के पहले चतुर्थांश में अमेरिकी सर्वोच्च न्यायया लय के न्यायाधीश थे। उनके अनुसार,
न्यायमूर्ती होल्मस् का चित्र विकिपीडिया के सौजन्य से
मैं नहीं जानता कि inarticulate major premise का ठीक अनुवाद ‘अव्यक्त धारणा’ है कि नहीं इसे तो हिन्दी ज्ञानी ही बता पायेंगे पर यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम किस प्रकार बड़े हुऐ, हमें कैसा वातावरण मिला।
हेरॉल्ड लास्की पिछली शताब्दी में अंग्रेज साम्यवादी विचाराधारा के विचारक हुऐ हैं। वे लंडन स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स अध्यापक रहे और भारतियों के जीवन के प्रेणनास्रोत। उनकी लिखी प्रसिद्ध पुस्तक है द ग्रामर ऑफ पॉलिटिक्स (The Grammar of Politics) इस पुस्तक में वे बताते हैं कि अच्छा जज़ वह जो अपनी अव्यक्त मुख्य प्रस्तावना से उपर उठ सके उनके मुताबिक होल्मस् के अतिरिक्त शायद कोई जज़ नहीं हुआ जो कि इसके ऊपर उठ सका। यह बात न्यायधीश शैरन कैलर के आचरण से साबित होती है जिसके कारण उनको हटाये जाने की जांच चल रही है।
२५ सितम्बर २००७ शाम पौने पांच बजे शैरन के पास वकील ने फोन किया,
‘माईकेल रिचार्ड मेरा मुवक्किल है। वह फांसी के तख्ते पर है। उसे आज रात में फांसी हो जायगी। सर्वोच्च न्यायालय के नये फैसले के आधार पर उसकी फांसी की सजा कट सकती है। इसके लिये वे एक याचिका प्रस्तुत कर रहे हैं। उनके कंप्यूटर में कुछ गड़बड़ी होने के कारण उन्हें आने में देर हो रही है। कृपया न्यायालय कुछ देर कर और खुला रखें ताकि हम यह याचिका प्रस्तुत कर सकें।’
शैरन ने जवाब दिया कि न्यायालय ५ बजे बन्द होता है। उसे घर में कुछ ठीक करवाना था। उसने न्यायालय बन्द करवाया और अपने घर मेकैनिक के साथ चली गयी। रात में माईकेल को फांसी हो गयी।
वकील ने शैरन के खिलाफ अभियोग दर्ज कराया कि उनका आचरण अनुचित था। वे जज़ बनी रहने के काबिल नहीं हैं। इसी कारण उन पर जांच चल रही है। जांच के दौरान, उन्होंने इस बात को स्वीकारा कि उन्होंने फोन मिलने के बाद भी न्यायालय बन्द कर दिया था। उनका कहना है,
‘माईकेल को एक महिला के साथ बलात्कार करने के बाद उसे मारने का जुर्म था। उसने इस जुर्म को स्वीकार कर लिया था। उस पर दो बार मुकदमा चल चुका था। उसकी याचिका पर पुनः सुनने की जरूरत नहीं थी।’
उन्होंने स्पष्ट किया,
‘यदि इस तरह की बात फिर उठेगी तो वे पुनः इस तरह का व्यवहार करेंगी।’
यदि, शैरन, उस वकील की याचिका को सुन कर कहती कि उसमें कोई बल नहीं है तब अलग बात होती, पर बिना उस याचिका देखे, सुने―यह कह देना अनुचित है। शायद, वे भूल गयीं कि जीवन लिया जा सकता है और एक बार उसके जाने के बाद, कभी भी वापस नहीं दिया जा सकता। एक बार जो चला गया वह वापस नहीं आ सकता। माइकेल के वकील की प्रार्थना ऐसी नहीं थी जो बिना सुने खारिज की जा सकती हो।
मेरे विचार से, शैरेन इस ‘अव्यक्त धारणा’ से ग्रसित थीं कि माईकेल को फांसी होनी चाहिये और किसी बात से ग्रसित हो कर काम करना, जज़ के आचरण के विरुद्ध है।
इस विषय पर संबन्धित लेख नीचे दिये गये लिंक पर पढ़े जा सकते है।
जून 12, 2009 5 टिप्पणियां
किशोरावस्था में कदम रखते रखते मैंने, शायद हम सब ने, आर्ची कॉमिक्स पढ़ना शुरु कर दिया। कॉमिक्स पढ़ने में, आर्ची कॉमिक्स पढ़ने का जनून सबसे अन्त तक चला। सुपरमैन, बैटमैन, फ्लैश, वंडरगर्ल, टार्ज़न, फैंटम भी पढ़ा पर कहीं यह भी आभास होता था कि सच नहीं हो सकता पर आर्ची कॉमिक्स के साथ यह नहीं लगता था। आर्ची कॉमिक्स पढ़ते पढ़ते, हम अपने मित्रों में, आर्ची, रॅगी, जगहॅड, बॅटी और विरॉनिका को ढ़ूढ़ने लग गये – सब मिल गये पर बस बॅटी ही नहीं मिली। फिर उम्र के साथ यह आर्ची कॉमिक्स का यह जनून भी चला गया।
क्या कोई ऐसा व्यक्ति होगा जो बॅटी को छोड़ विरॉनिका से शादी कर ले … खैर अमेरिकन और भारतीयों के सोच में कुछ अन्तर तो है।
कुछ दिन पहले पढ़ा कि आर्ची कॉमिक्स प्रकाशकों ने घोषणा की है कि आर्ची, विरॉनिका से शादी कर रहा है। मेरा तो दिल ही टूट गया। क्या कोई ऐसा व्यक्ति होगा जो बॅटी जैसी प्यारी और बेहतरीन व्यक्तित्व की लड़की छोड़ कर, विरॉनिका जैसी अमीर पर … से शादी कर ले।
मुझे तो बॅटी ही अच्छी लगती थी। बहुत ढ़ूढ़ा पर मिली नहीं – मिलती तो शायद उसी के साथ होता। वह होगी पर वह मुझे नहीं, आर्ची को ढ़ूढ रही होगी। जीवन का यही रोना है हम जिसे ढ़ूढते हैं वह किसी और को ढ़ूढ रहा होता है।
क्या मज़ा है कि शुभा आजकल चिट्ठकारी से दूर है। वरना, यह पढ़ कर तो मेरी खाल खींच लेती। आज का खाना और नहीं मिलता 🙂
बॅटी, तो आर्ची के पास है, उसके दिल के करीब, फिर भी उसे छोड़, विरॉनिका से शादी कर रहा है – हुंह।
सच तो यह है आर्ची की शादी बॅटी से और रॅगी की शादी विरॉनिका से होनी चाहिये। शायद यह अन्तर अमेरिकन और भारतीयों के सोच में है। खैर यदि हम भावुक है और वे भौतकवादी – हमारे उनके बीच तो कुछ अन्तर तो होगा। यह निर्णय आमेरिकन सोच को परलिक्षित करता है।
लेकिन आर्ची तो अच्छा लड़का है उसे तो जीवन में अच्छी लड़की मिलनी चाहिये – शायद जीवन का सत्य यही है – लड़को को अच्छी लड़की और अच्छी लड़कियों को अच्छे लड़के नहीं मिलते हैं 😦
इस शादी में अभी समय है। अगस्त में, आर्ची विरॉनिका को शादी के लिये प्रस्ताव देगा और यह शादी सितम्बर में होगी 😦 क्या टल नहीं सकती।
आर्ची, अब भी समय है, क्यों इतनी बड़ी भूल कर रहे हो – विरॉनिका नहीं पर बॅटी तुम्हारे लिये सही है उसी से शादी करो। पैसा ही सब कुछ नहीं होता।
अपने जीवन में भी बॅटी और विरॉनिका ऐसे ही हैं। यह चित्र देख कर समझ गये होंगे। वह कैसी युवती होगी जो सहेली को अपने जैसी ड्रैस में देख कर चिढ़ जाये।
कैसे, कैसे कोई, यह कर सकता है। क्या कोई इतना … हो सकता है।
८ सितंबर कॉमिक्स के अंक का यह चित्र भी देखिये। इसे देख कर लगता है कि यह तय नहीं है कि, आर्ची किस से शादी कर रहा है। क्या कहानी में कुछ मोड़ (twist) है। क्या प्रकाशक लोगों कि प्रतिक्रिया जानना चाह रहें हैं।
गोरे तो दोनो के हाथ है, उंगलियां तो दोनो की सुन्दर हैं – आशा पर ही जीवन है 🙂
Archie , don’t marry Veronica, marry Betty. She is the right girl for you. Money is not everything. My appeal to Archie comics publishers also – this is a mistake.
इस चिट्ठी के पहले दो चित्र विकिपीडिया से हैं । तीसरा और पांचवां चित्र Archie & Jughead Bloggin’ with Boys! से लिया गया है। चौथा चित्र आर्ची कॉमिक्स के डाउनलोड पेज से लिया गया है जहां बहुत सारे चित्र हैं जिन्हें आप भी डाउनलोड कर सकते है।
हिन्दी में नवीनतम पॉडकास्ट Latest podcast in Hindi
सांकेतिक शब्द
दर्शन , पसन्द-नापसन्द, सूचना , Archie, Betty, Veronica, Reggi, jughead,
मई 26, 2009 9 टिप्पणियां
‘पुरुषों की ब्रीफ तो लम्बी हो सकती है पर महिलाओं की स्कर्ट ब्रीफ नहीं हो सकती। नेकटाई मर्यादित होनी चाहिये मूर्खतापूर्ण नहीं।’
यह विचार थे – १९ मई इंडियानापोलीस में हुई वकीलों और न्यायधीशों की वार्षिक मिली जुली बैठक के।
इस बैठक में वकीलों के वस्त्र पहनने के तरीके की बात, ९ जनवरी १९४४ मैं जन्मी, राष्ट्रपती बिल क्लिंटन के द्वारा ३० जून २००० में नियक्ति की गयी, इलीनॉए की फैडरल न्यायधीश जोन लेफकॉओ (federal judge, Joan H. Lefkow of the Northern District of Illinois) ने उठायी।
फैडरल न्यायधीश जोन लेफकॉओ ने अपने न्यायलय का एक किस्सा बताया जब उनके न्यायालय में एक महिला एस तरह के वस्त्र पहन कर आयी जैसे कि वह किसी व्यामशाला से कसरत कर के आयी हो। बैठक में अन्य न्यायधीशों और वकीलों ने भी इस विषय पर अपने विचार दिये कि कई महिलायें की स्कर्ट और ब्लॉउस इतने छोटे होते हैं कि नज़र उस पर चली जाती है। उनके इस तरह के वस्त्र पहनना आपत्तिजनक है
यहां गौर करने की बात है कि अपने देश में वकीलों (पुरुष एवं महिला दोनो को) की वस्त्र निर्धारित है जिसमें बैन्ड और गाउन पहनना पड़ता है। बैन्ड बन्द गले के कोट, या बन्द गले की शर्ट, ब्लाउस, कुर्ते पर लगाया जा सकता है पर अमेरिका में वकीलों के लिये कोई भी वस्त्र निर्धारित नहीं है। हांलाकि जहां तक मुझे याद पड़ता है कि अपने देश में भी न्यायधीश चन्द्रचूड़ ने एक बार सर्वोच्च न्यायालय में एक महिला को जीन्स वा इतनी लिपिस्टिक लगा कर न्यायालय में आने से मना किया था।
बेथ ब्रिकिंमैन (Beth Brinkmann) अमेरिका में सॉलिसिटर जेनरल के ऑफिस में काम करती थीं। अमेरिक के सर्वोच्च न्यायालय में वे एक बार भूरी स्कर्ट पहन कर बहस करने चली गयीं। इस पर वहां के न्यायधीशों ने आपत्ति की। हांलाकि सॉलिसिटर जेनरल ने उनका बचाव किया पर उसके बाद वहां काम करने वाली सारी महिलाओं ने काले रंग की स्कर्ट पहनना शुरू कर दिया। यह भी प्रसांगिक है कि इस समय बेथ ब्रिकिंमैन का नाम भी सर्वोच्च न्यायालय में न्यायधीश बनाने जाने पर विचार किया जा रहा है।
यह गौरतलब है कि फैडरल न्यायधीश जोन लेफकॉओ जिनहोंने यह विषय १९ मई में हो रही बैठक में उठाया था वे स्वयं मर्यादित एवं सुरुचिपूर्ण (elegant) वस्त्र पहनने के लिये जानी जाती हैं। उन्होंने महिलाओं को कॉर्परीएटी (Corporette) चिट्ठे को भी पढ़ने की सलाह दी कि वे इसे देखें कि किस तरह के वस्त्र पहनने चाहिये। मैंने इस चिट्ठे को देखा। इसकी सलाह मुझे अच्छी लगी पर यह पश्चमी वस्त्रों के बारे में बात करती है न कि भारतीय परिधानों के बारे में। आजकल भारत में भी बहुत सी महिलायें पश्चमी वस्त्र पहनना पसन्द करतीं है। उनके लिये यह चिट्टा अच्छा है। मैं तो यह जानना चाहूंगा कि क्या इस तरह का कोई चिट्ठा पुरुषों के लिये या महिलाओं के भारतीय परिधानों के लिये है?
बहस कोई अन्त नहीं है। अमेरिका में न्यायधीश जोन लेफकॉओ की इस टिप्पणी ने वहां पर लैंगिक समानता पर बहस छेड़ दी है। इसके बारे में आप विस्तार से यहां और यहां पढ़ सकते हैं।
मेरे विचार में ऑफिस, न्यायालय पर काम की सारी जगहों पर वस्त्र मर्यादित, और सुरिचिपूर्ण होने चाहिये। हां वे काम के अनुसार भी होने चाहिये। समुद्र तट पर लाइफ गार्ड नहाने योग्य कपड़े ही पहनेगें 🙂
उन्मुक्त की पुस्तकों के बारे में यहां पढ़ें।
न्यायधीश जोन लेफकॉओ का चित्र इस विडियो से है जिसमें वे अपनी मां की कविता के बारे में बता रहीं हैं।
फ़रवरी 7, 2009 11 टिप्पणियां
कुछ समय पहले, मैथली गुप्त जी ने, कैफे हिन्दी नामक एक वेबसाइट शुरू की। मैं न तो मैथली जी को, न ही इस वेबसाइट के बारे में जानता था। दो साल पहले संजय जी की अक्षरधाम पर लिखी एक चिट्ठी से कैफे हिन्दी और आपके बारे में पता चला। कैफे हिन्दी पर कुछ चिट्ठाकारों के लेख, चिट्ठकारों की चिट्ठियों के लिंक के साथ थे। संजय जी ने इस बात पर आपत्ति जतायी थी कि यह कॉपीराइट का उल्लघंन है। कई चिट्ठकारों को इस पर आपत्ति थी। किन को आपत्ति थी यह आप उस चिट्ठी की टिप्पणी में पढ़ सकते हैं।
कैफे हिन्दी में मेरे भी कुछ लेख थे पर मुझे इस बारे में कोई आपत्ति नहीं थी। मेरे विचार में यह एक अच्छा कदम था। इससे हिन्दी आगे ही आयगी। ऐसे भी मेरी चिट्ठियां कॉपीलेफ्टेड हैं। मेरे अलावा कुछ अन्य भी मेरी विचारधारा के थे। अक्षरग्राम पर संजय जी की चिट्ठी के बाद, मेरे एक लेख ‘२ की पॉवर के अंक, पहेलियां, और कमप्यूटर विज्ञान‘ पर मैथली जी की टिप्पणी आयी,
‘श्री उन्मुक्त जी,
हम समाचारों से परे, हिन्दी रचनाओं की एक वेबसाईट [कैफे हिन्दी] बना रहें हैं। इस वेबसाईट का उद्देश्य कोई भी लाभ कमाना नहीं है।
यह दिखाने के लिये कि इस वेबसाईट का स्वरूप कैसा होगा, हमने प्रायोगिक रूप से आपके कुछ लेख इस वेबसाईट पर डाले हैं। यह वेबसाईट मार्च के दूसरे सप्ताह में विधिवत शुरू हो जायेगी। आपका ई-मेल पता मेरे पास न होने के कारण में कमेंट के माध्यम से ये संदेश आपको भेज रहा हूं। क्या हम आपके ब्लोग रचनायें लेख के रूप में इस वेबसाईट पर उपयोग कर सकते हैं?आपने लिखा है कि आपके हर चिठ्ठे की तरह इस लेख की सारी चिठ्ठियां भी कौपी-लेफ्टेड हैं। लेकिन फ़िर भी हम आपकी विधिवत अनुमति एवं सुझावों के इन्तजार में हैं।
आपका
मैथिली गुप्त’
मेरा जवाब था,
‘प्रिय गुप्त जी, मेरी चिट्ठियां कौपीलेफ्टेड हैं आपका स्वागत है।
आप इन्हें प्रयोग कर सकते हैं।
उन्मुक्त’
लेकिन हिन्दी जगत पर कॉपीराएट के उल्लघंन का तूफान नहीं ठहरा। इस बारे में, कई अन्य चिट्ठाकारों ने स्वतंत्र चिट्ठियां भी लिखीं। मुझे लगा कि चिट्ठकार बन्धुवों की आपत्ति अन्तरजाल पर हिन्दी का बढ़ावा न होकर रोड़ा बन रही है तब मैंने एक चिट्ठी ‘डकैती, चोरी या जोश या केवल नादानी‘ नाम से लिखी थी। मेरे विचार से कैफे हिन्दी एक अच्छा कदम था। मुझे मैथली जी अच्छे व्यक्ति लगे। मुझे लगा कि वे हिन्दी की सेवा करेंगे।
जिस समय उक्त चिट्ठी लिखी गयी थी उस समय तक भी न तो मैं मैथली गुप्त जी को जानता था, न ही उनसे मेरा कोई परिचय था, न ही यह पोस्ट उनके कहने पर लिखी गयी थी। ऊपर लिखी टिप्पणी के अलावा हमारे बीच कोई ई-मेल का आदान प्रदान भी नहीं हुआ था।
मेरी उक्त चिट्ठी लिखने के बाद उनसे जान पहचान शुरू हुई। लेकिन अभी तक मेरी उनसे मुलाकात नहीं हुई है पर हम अक्सर उनसे ई-मेल पर बात करते हैं। अधिकतर तो मैं ही उनसे कुछ करने के लिये प्रार्थना करता हूं।
कुछ समय पहले मैं ‘You are Too Kind – A Brief History of Flattery‘ नामक पुस्तक की समीक्षा लिखना चाह रहा था। चाटुकारिता के बारे में शायद यह सबसे अच्छी लिखी पुस्तक है। १९८० के दशक में यह कई साल सर्वोत्तम पुस्तकों की सूची में रही।
इस पुस्तक की भूमिका के रूप में मैंने एक चिट्ठी ‘सिरफिरा उन्मुक्त आपको बेवकूफ बना रहा है‘ नाम से लिखी। मैंने, इस चिट्ठी को, एक हैकर की तरफ से, यह कहते हुऐ प्रकाशित की कि उसने मेरा चिट्टा हैक कर लिया है। मैं उसके बाद यह बताना चाहता था कि मैंने चाटुकारिता के द्वारा अपना चिट्ठा वापस पाया। उसी के साथ इस पुस्तक के बारे में लिखना चाहता था।
मैथली जी का ई-मेल मेरे पास आया कि वे मेरा चिट्टा वापस दिलवा सकते हैं। मैंने उनसे माफी मांगते हुऐ सही बात लिखी। मुझे लगा कि मैंने उन्हें जबरदस्ती परेशान किया पर इससे यह पता चलता है कि वे दूसरों के बारे में चिन्तित रहते हैं और उनके भले के बारे में सोचते हैं।
मुझे हमेशा लगता था कि मैथली जी हिन्दी के शुभचिन्तक हैं और वे अच्छा कार्य ही करेंगे। उनके बारे में, मेरा अनुमान सही निकला। कुछ दिनो बाद पता चला कि मैथली जी ने हिन्दी फॉन्टों के लिये भी निःशुल्क कार्य किया है। इस समय वे एक बेहतरीन हिन्दी फीड एग्रेगेटर बलॉगवाणी चला रहे हैं।
कुछ चिट्ठाकारों का कहना था कि मैं अपना चित्र भी चिट्ठे पर डालूं। मैं गुमनाम रह कर चिट्ठाकारी करता हूं इसलिये मैं अपना चित्र नहीं डालना चाहता था। कैफे हिन्दी में लेखों के साथ बेहतरीन चित्र होते हैं जिससे उस लेख का आकर्षण बढ़ जाता है। मैं इस तरह के चित्र नहीं बना पाता हूं इसलिये मैंने उनसे प्रार्थना की क्या वे मेरी और मेरी पत्नी का कार्टून चित्र बना सकते हैं।
मैथली जी ने कहा कि जरूर – उन्होंने हमारे कुछ चित्र चाहे। मैं उन्हें भी अपने चित्र नहीं देना चाहता था। मैंने उनसे कहा,
‘आपके मन में हमारे बारे में जिस प्रकार के व्यक्ति का चित्र आता हो वैसा ही बना दें।’
उन्होंने हमारे यह चित्र हमारे बारे में अपनी कल्पना से बनाये।
मेरे इस चिट्ठे, ‘उन्मुक्त‘ एवं ‘लेख‘ चिट्ठे; मेरी पॉडकास्ट ‘बकबक‘; और मेरी पत्नी के चिट्ठे ‘मुन्ने के बापू‘ पर यही चित्र हैं जो उनके द्वारा बनाये गये हैं। मैंने अपना आभार प्रगट के लिये ‘हिन्दी चिट्ठाकारिता, मोक्ष, और कैफे हिन्दी‘ नाम से चिट्ठी भी लिखी।
मैं यौन शिक्षा और सांख्यिकी के बारे में कुछ लिखना चाहता था। संख्यिकी के कुछ सिद्धांतों को समझाने के लिये चित्र की आवश्यकता थी। मैथली जी ने इस चिट्ठी के लिये भी एक खास चित्र बनाया।
मैं अक्सर लोगों से ई-मेल से बात करता हूं मुझे लगा कि मैं इन ई-मेलों को भी प्रकाशित करूं। मैंने इसके लिये ई-पाती नाम की अलग श्रेणी बनायी है। मैंने सबसे पहले अपनी बिटिया रानी ‘परी’ (जो कि वास्तव में मेरी बहूरानी है) के साथ होने वाली ई-मेलों को प्रकाशित करना शुरू किया। मैं अपने बेटे ‘मुन्ना’ के साथ हुई बातचीत को जल्द ही प्रकाशित करूंगा।
मुझे लगा कि यदि इन चिट्ठियों के साथ मेरी बहूरानी एवं बेटे के कार्टून चित्र हों तो उन चिट्ठियों का आकर्षण बढ़ जायगा। इसलिये मैंने मैथली जी से उनके चित्र बनाने के लिये प्रार्थना की।
मैंने अपने बेटे और बहूरानी के चित्र तो मैथली जी के पास नहीं भेजे पर उन्हें उनके बारे में कुछ तथ्यों को बताया,
मैथली जी ने इसी वर्णन से उनके यह चित्र बनाये हैं।
अब आप इन्हीं चित्रों को उनसे संबन्धित चिट्ठियों में पायेंगे।
लीसा से मेरी मुलाकात वियाना में हुई थी। मैंने उससे भी ई-मेल पर की गयी बातचीत प्रकाशित करता रहता हूं। मुझे लगा कि मैं लीसा का भी इसी तरह का चित्र प्रकाशित करूं। मैंने मैथली जी के पास लीसा का वास्तविक चित्र भेजा। उन्होंने लीसा का यह चित्र बना कर भेजा है।
आगे से लीसा से संबन्धित ई-मेल पर यही चित्र रहेगा।
मैथली जी को मेरा धन्यवाद, मेरा आभार। वे हिन्दी की सेवा करते चलें और हम सब के लिये सुन्दर चित्र बनाते चलें – ऐसी प्रार्थना, ऐसी कामना।
‘उन्मुक्त जी क्या हिन्दी चिट्ठकार बंधुवों और अन्य लोगों से भी ई-मेल पर उस तरह से बात करते रहते हैं जैसे आप अपनी बहूरानी, लीसा, और बेटे के साथ।’
हां करता तो हूं।
‘तो क्या आप उनके साथ हुआ वर्तालाप प्रकाशित करेंगे।’
सारी ई-मेल में तो नहीं पर कुछ ई-मेल में जरूर ऐसी बात रहती है जो कि प्रकाशित करने लायक होती है। लेकिन कई लोग उसको प्रकाशित करने के लिये मना करते हैं पर शायद बिना नाम बताये प्रकाशित करने की अनुमति दे दें। इंतज़ार कीजिये।
फ़रवरी 4, 2009 9 टिप्पणियां
‘मुझे मिलना उस मोड़ पर,
जहां केवल हम दोनो हों
वो मोड़ ऐसा हो,
जहां से मैं, न पीछे हट सकूं,
और न ही आगे जा सकूं,
बिन संग तुम्हारे।
मुझे मिलना उस मोड़ पर,
जहा बसंती हवा के झोके,
मुझे मीठी सी कशिश में बांध ले
और तुम्हे भी रंग ले,
अपने रंग में।
मुझे मिलना उस मोड़ पर
जब मै बिखर जाऊं ,
अमलताश की भांति
और तुम समेट लो,
अपनी बाहों में मुझे।
मुझे मिलना उस मोड़ पर
जब तुम सुनना चाहो
कुछ दिल से,
और मै कुछ कहना चाहूं
दिल से।
मुझे मिलना उस मोड़ पर,
जहां जोर से बारिश आ रही हो,
जहां पर सिर्फ़ और सिर्फ़ हम दोनो हों,
हंसते हंसते, प्यार से मीठी, मीठी बातें करते।
सुनते उस लम्बे से रास्ते में,
सिर्फ़ वह आवाज,
जो हमारे दिल को,
खुश कर देती है।
मुझे मिलना उस मोड़ पर,
जहां हम दोनो के लिये,
पूरी जगह है।
है जगह, यादों के लिए
बातों के लिए,
हो जगह, प्यार के लिए।
सिर्फ़ उस मोड़ पर मिलना मुझे!’
‘उन्मुक्त जी, क्या बात है लगता है कि ‘जॉगरस् पार्क’ या फिर ‘चीनी कम’ फिल्म देख कर आ रहें हैं?’
नहीं भाई, नहीं बहना नहीं। मैं और कविता – कवितायें तो गागर में सागर भरती हैं। कविता लिखना मेरे बस की बात नहीं है। यह कविता मैंने नहीं लिखी है। यह तो मैंने चुरायी है। इस चिट्ठी के चित्र भी चुरायें हैं।
‘चुरा ली है! आप, यह क्या कह रहे हैं?’
इसे अपने चिट्ठे पर डालने से पहले सहाना जी (इस कविता की रचयिता) से अनुमति नहीं ली है। इसे तो चुराया जाना ही कहा जायगा।
‘उन्मुक्त, यह सहाना जी कौन हैं? कभी इनकी कोई हिन्दी में चिट्ठी नहीं पढ़ी? क्या यह चित्र उनका है? ‘
मैं नहीं जानता कि यह चित्र उनका है अथवा नहीं। यह चित्र तो उनके परिचय से है। वैसे मुझे तो यह चित्र मुझे कलाकारा कैटरीना कैफ की तरह लग रहा है 🙂
सहाना जी, बैंगलोर की रहने वाली हैं पर आजकल मुम्बई में पढ़ती हैं। वे अंग्रेजी में चिट्ठाकारी करती हैं पर कभी कदा हिन्दी में चिट्ठियां लिख देती हैं। बस, उनकी हिन्दी की एक चिट्ठी मेरे उन्मुक्त हिन्दी चिट्ठे फीड एग्रेगेटर के पकड़ में आ गयी। वहां पहुंच कर जब उनके चिट्ठे ‘Exhibiting Hidden Talents!!‘ को देखने लगा तो उनके द्वारा प्रकाशित, यह कविता पसन्द आयी। इसमें रुमानी भावनाओं का अपना ही अन्दाज़ है। वहीं से यह कविता और पहला चित्र चुराया है। मैंने कविता के शब्दों में कुछ बदलाव किये हैं। उनकी मूल कविता वहीं, उसी चिट्ठी पर पढ़ें। कुहू जी भी, मुझें इसी तरह से अन्तरजाल पर मिली थीं। मुझे हिन्दी में नियमित रूप से चिट्टाकारी करने वाले कई चिट्ठाकार भी इस तरह से मिले।
मैंने सहाना जी एक चिट्ठी पर टिप्पणी की कि आप बहुत जल्द हिन्दी में चिट्ठाकारी करने लगेंगी। उनका जवाब था,
‘Oh God! It’s unimaginable to blog in Hindi. Of course, I’ve completed Hindi BA (taking Private Exams) and Sanskrit BA (Private Exams).’
हे भगवान। हिन्दी में चिट्ठाकारी करना तो कल्पना से भी बाहर है। हांलाकि, मैंने हिन्दी और संस्कृत में स्नातक (प्राइवेट) डिग्री ली हुई है।
मेरा कहना कि सहाना जी हिन्दी में चिट्ठाकारी करेंगी, इसलिये था कि वे लिखती अच्छा हैं पर उसके अनुरूप उनके चिट्ठे में टिप्पणी नहीं है। हिन्दी चिट्ठाकार एक दूसरे को प्रोत्साहित करने के लिये ज्यादा टिप्पणी करते हैं, जो कि अच्छी बात है। अब टिप्पणियां किसे पसन्द नहीं हैं। मुझे भी – चाहें मैं जितना कहूं कि टिप्पणियां न मिलने से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता 🙂
मैंने उन्हें बताया कि मैंने एक शर्त लगायी है कि आप हिन्दी में चिट्टाकारी करेंगी। यदि मैं शर्त हार गया तो एक नवयुवती से हारने के कारण आपके बारे में एक खास चिट्ठी लिखूंगा। इस पर, मेरे परिवार के सदस्य (मेरी पत्नी, मेरे बेटा, और मेरी बहूरानी) बहुत हसेंगे।
‘उन्मुक्त जी, तब तो लगता है आप हार गये क्योंकि यह चिट्ठी तो खास सहाना जी के बारे में है।’
बिलकुल नहीं। मैं हारा नहीं हूं। मैं तो जीत गया हूं। सहाना जी के लिये यह खास चिट्ठी जीतने की खुशी में लिख रहा हूं।
‘अरे उन्मुक्त जी यह आप कैसे कह सकते हैं। कहां है सहाना जी का हिन्दी का चिट्ठा। जरा हम भी तो देखें :-)’
भाई जी, बहना जी – मैं तो इतना जानता हूं कि सहाना जी ने मुझे बताया है कि,
‘I have composed many poems in Hindi. … My first romantic poem was ‘Love at First Sight’. I got the title but was struggling for the content. I took, 5 hours to interpret my imagination. … I take some time to step into any new one. … I may take some time for Hindi Blog! Don’t worry, you will win your bet. I won’t allow an elderly person to loose the bet. No one will laugh at you rather they will appreciate you!’
मैंने हिन्दी में, बहुत सारी कवितायें लिखी हैं। मेरी पहली रुमानी कविता ‘पहली मुलाकात में प्यार’ (लव ऍट फर्स्ट साइट) थी। मुझे शीर्षक तो मिल गया पर अपनी कल्पना को शब्द देने में ५ घंटे लगे। मुझे नयी कविता लिखने में समय लगता है। हो सकता है कि मुझे हिन्दी में चिट्ठा लिखने में समय लगे। घबराईये नहीं, मैं आपको हारने नहीं दूंगी। आप पर कोई नहीं हसेगा, लोग आपका आदर करेंगे।
अन्तरजाल पर कहीं पढ़ा था कि हिन्दी के ६५४० चिट्ठे हैं। चलिये, बहुत जल्द ही ६५४१ होने वाले हैं।
हमारी बातचीत ई-मेल के द्वारा नहीं हुई है पर एक दूसरे के चिट्ठे पर टिप्पणी के द्वारा हुई है जो कि, अन्तरजाल पर कोई भी पढ़ सकता है। इसलिये यह मत सोचियेगा कि मैं किसी की व्यक्तिगत ई-मेल सार्वजनिक कर रहा हूं। हां, मैंने कुछ भाषा सम्पादित की है। नयी उम्र के लोगों की एसएमएस (SMS), मुझे कम समझ में आती है 🙂
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