इस कड़ी को आप यहां सुन सकते हैं।
ऑर्डर ऑफ मेरिट, इंगलैंड का सबसे महत्वपूर्ण सम्मान है। यह वहां की महारानी द्वारा कला, विज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिये दिया जाता है।
१३ जून २००७: टिम बरनर्स् ली, ऑर्डर ऑफ मेरिट से सम्मानित किये गये। इसके पहले २००१ में, उन्हें रॉयल सोसायटी का सदस्य बनाया गया। २००४ में नाईटहुड की उपाधि दी गयी थी। टाइम पत्रिका ने उन्हें, २०वीं शताब्दी के १०० महान वैज्ञानिकों और विचारकों में चुना है। क्या किया है उन्होने? क्यों दिये गये हैं,उन्हें यह सारे सम्मान?
उन्हें यह सम्मान, उस कार्य के लिये दिया गया है जिसका हम सब से संबन्ध है – अंतरजाल से। उन्होने वेब तकनीक का अविष्कारक किया है। टिम को ऑर्डर ऑफ मेरिट का सम्मान दिये जाने के उपलक्ष में, मैं एक नयी श्रंखला ‘अंतरजाल की मायानगरी में’ के नाम से शुरू कर रहा हूं। इसे आप मेरे उन्मुक्त चिट्ठे पर पढ़ पायेंगे।
इस श्रंखला में कई विषयों पर चर्चा रहेगी। हम बात करेंगे,
- इंटरनेट और वेब इतिहास के बारे में;
- इन दोनो में क्या अन्तर है;
- इसके भविष्य के बारे में – इसी में यह भी चर्चा करेंगे कि क्या चिट्ठाकार पत्रकारों की जगह ले लेंगे या फिर रेडियो की या टीवी की। इस तरह की कुछ बात, मैंने अपनी चिट्ठी पत्रकार बनाम चिट्ठाकार में उठायी थी;
- इंटरनेट पर उठ रहे मुद्दों के बारे में; और
- मुद्दों के संभावित समाधानों के बारे में – आपके विचारों का हमेशा स्वागत है। खास तौर से, इन समाधानों की चर्चा के समय।
इसके अतिरिक्त बहुत कुछ और भी होगा इस श्रंखला में, पर यह सब तब शुरू होगा इस समय चल रही तीन श्रंखलाओं (आज की दुर्गा, कशमीर यात्रा, और हमने जानी है जमाने में रमती खुशबू) में से किसी के भी अन्त हो जाने के बाद। जहां तक मैं समझाता हूं कि इनमें सबसे पहले हमने जानी है जमाने में रमती खुशबू ही समाप्त होगी। तब तक इंतजार कीजिये, पर आज कुछ टिम के बारे में।
टिम का जन्म ८ जून १९५५, इंगलैंड में हुआ था। माता पिता दोनो गणितज्ञ थे। कहा जाता है कि उन्होने टिम को गणित हर जगह, यहां तक कि खाने की मेज पर भी बतायी।
टिम ने अपनी उच्च शिक्षा क्वीनस् कॉलेज, औक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से पूरी की। विश्वविद्यालय में उन्हें अपने मित्र के साथ हैकिंग करते हुऐ पकड़ लिया गया था। इसलिये उन्हें विश्वविद्यालय कंप्यूटर का प्रयोग करने से मना कर दिया गया 😦 १९७६ में, उन्होने विश्विद्यालय से भौतिक शास्त्र में डिग्री प्राप्त की।
CERN, (सर्न) यूरोपियन देशों की नाभकीय प्रयोगशाला है। १९८४ से, टिम वहीं फेलो के रूप में काम करने लगे। वहां हर तरह के कंप्यूटर थे जिन पर अलग अलग के फॉरमैट पर सूचना रखी जाती थी। टिम का मुख्य काम था कि वे सूचनाये एक कंप्यूटर से दूसरे पर आसानी से जा सकें। उन्हे लगा कि क्या कोई ऐसा तरीका हो सकता है कि सारी सूचनायें,
- किसी तरह से पिरोयी जा सके, और
- एक जगह ही प्रकाशित सी लगेंं।
बस इसी का हल सोचते, सोचते – उन्होंने वेब तकनीक का अविष्कार किया और दुनिया का पहला वेब पेज ६ अगस्त १९९१ को सर्न में बना।

लगता है टिम को नाई के पास जाना चाहिये 🙂
टिम ने इस तकनीक का जब आविष्कार किया तब वे सर्न में काम कर रहे थे। यह तकनीक सर्न की बौद्घिक संपदा थी। ३० अप्रैल १९९३ को, टिम के कहने पर सर्न ने इस तकनीक को मुक्त कर दिया। अब इसे दुनिया के लिए न केवल मुफ्त, पर मुक्त रूप से उपलब्ध है। इसके लिए किसी को, कोई भी फीस नहीं देनी पड़ती है। यह निर्णय न केवल महत्वपूर्ण था पर इंटरनेट के शुरुवाती दौर के निर्णयों के अनुरूप था जो हर तकनीक को मुफ्त व मुक्त रूप से उपलब्ध कराने के लिये कटिबद्ध थे। अब तो आप, ओपेन सोर्स दर्शन का महत्व समझ ही गये होंगे 🙂
टिम, बाद में अमेरिका चले गये। १९९४ में उन्होने, मैसाचुसेटस् इंस्टिट्युट ऑफ टेकनॉलोजी में World Wide Web Cosortium (W3C) की स्थापना की। यह वेब के मानकीकरण में कार्यरत है।
ईंतजार कीजिये, उंमुक्त चिट्ठे पर चल रही श्रंखला के समाप्त होने काः हम तब इस श्रंखला की अगली कड़ी के अन्दर चर्चा करेंगे – इंटरनेट के बारे में, यह क्या होता है, क्या है इसका इतिहास?
Like this:
पसंद करें लोड हो रहा है...
नयी टिप्पणियां