सैकड़ों वर्ष पहले के इंजीनियर ही बेहतर थे

श्री अनुपम मिश्र गांधी पीस फाउंडेशन (Gandhi Peace Foundation) की नींव डालने वाले सदस्यों में हैं। वे राजस्थान में पानी संचय के बारे में बात करते हैं। उन्होंने ‘राजस्थान की रजत बूंदे’ नामक पुस्तक लिखी है। इसे गांधी शांति प्रतिष्ठान, नयी दिल्ली ने छापा है।

कुछ समय पहले ‘टेड आइडियआस् वर्थ स्परैडिंग’ (TED Ideas Worth Spreading) में,  अनुपम जी का भाषण सुनने को मिला। इसमें वे बताते हैं कि किस तरह  से सैकड़ों वर्ष पहले, भारतवासियों ने रेगिस्तान में, पानी संचय करने के तरीके निकाले। यह तरीके आजकल के कड़ोरों रुपये खर्च कर बनाये गये पानी संचय करने के तरीकों से कहीं बेहतर हैं।

हम अक्सर विज्ञान की बड़ी बड़ी बातें  करते हैं। हमारे पूर्वजों ने वर्षों पूर्व कितने आसान तरीकों से पानी का संचय किया। हम अब, क्यों नहीं इन तरीकों को अपनाते। आप स्वयं देखिये और सुनिये।

यह अंग्रेजी में है क्योंकि वे विदेश में बोल रहे थे। लेकिन आप इन्हें देखेंगे, सुनेगें तो अपने जैसे लगेंगे। अनुपम जी, शुरू में कहते हैं।

‘Please switch off proper English check programme installed in your brain.’
कृपया, अपने मस्तिष्क में अंग्रेजी चेक करने वाले प्रोग्राम को बन्द कर दें।

यह एक बेहतरीन विडियो है। ऐसे विडियो कम देखने को मिलते हैं।

मालुम नहीं क्यों, इसे देखने के बाद बचपन में पढ़ी एक पुस्तक, ‘द अगली अमेरिकन’ (The Ugly American) में इंजीनियर होमर एटकिनस् (Homer Atkins) की याद आयी।


हिन्दी में नवीनतम पॉडकास्ट Latest podcast in Hindi

सुनने के लिये चिन्ह शीर्षक के बाद लगे चिन्ह ► पर चटका लगायें यह आपको इस फाइल के पेज पर ले जायगा। उसके बाद जहां Download और उसके बाद फाइल का नाम अंग्रेजी में लिखा है वहां चटका लगायें।:

Click on the symbol ► after the heading. This will take you to the page where file is. his will take you to the page where file is. Click where ‘Download’ and there after name of the file is written.)

  • स्कॉटस्बॉरो बॉयज़ मुकदमे में क्या फैसला हुआ:
  • हार्पर ली ने उपन्यास, स्कॉटस्बॉरो बॉयज़ मुकदमे से प्रेरित होकर लिखा:

यह पॉडकास्ट ogg फॉरमैट में है। यदि सुनने में मुश्किल हो तो दाहिने तरफ का विज़िट,

‘बकबक पर पॉडकास्ट कैसे सुने‘
देखें।


सांकेतिक शब्द
पर्यावरण,
bicycle, Ecology, Environment (biophysical), Natural environment,  Environmental movement, Environmentalism, Environmental science,

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के बारे में उन्मुक्त
मैं हूं उन्मुक्त - हिन्दुस्तान के एक कोने से एक आम भारतीय। मैं हिन्दी मे तीन चिट्ठे लिखता हूं - उन्मुक्त, ' छुट-पुट', और ' लेख'। मैं एक पॉडकास्ट भी ' बकबक' नाम से करता हूं। मेरी पत्नी शुभा अध्यापिका है। वह भी एक चिट्ठा ' मुन्ने के बापू' के नाम से ब्लॉगर पर लिखती है। कुछ समय पहले,  १९ नवम्बर २००६ में, 'द टेलीग्राफ' समाचारपत्र में 'Hitchhiking through a non-English language blog galaxy' नाम से लेख छपा था। इसमें भारतीय भाषा के चिट्ठों का इतिहास, इसकी विविधता, और परिपक्वत्ता की चर्चा थी। इसमें कुछ सूचना हमारे में बारे में भी है, जिसमें कुछ त्रुटियां हैं। इसको ठीक करते हुऐ मेरी पत्नी शुभा ने एक चिट्ठी 'भारतीय भाषाओं के चिट्ठे जगत की सैर' नाम से प्रकाशित की है। इस चिट्ठी हमारे बारे में सारी सूचना है। इसमें यह भी स्पष्ट है कि हम क्यों अज्ञात रूप में चिट्टाकारी करते हैं और इन चिट्ठों का क्या उद्देश्य है। मेरा बेटा मुन्ना वा उसकी पत्नी परी, विदेश में विज्ञान पर शोद्ध करते हैं। मेरे तीनों चिट्ठों एवं पॉडकास्ट की सामग्री तथा मेरे द्वारा खींचे गये चित्र (दूसरी जगह से लिये गये चित्रों में लिंक दी है) क्रिएटिव कॉमनस् शून्य (Creative Commons-0 1.0) लाईसेन्स के अन्तर्गत है। इसमें लेखक कोई भी अधिकार अपने पास नहीं रखता है। अथार्त, मेरे तीनो चिट्ठों, पॉडकास्ट फीड एग्रेगेटर की सारी चिट्ठियां, कौपी-लेफ्टेड हैं या इसे कहने का बेहतर तरीका होगा कि वे कॉपीराइट के झंझट मुक्त हैं। आपको इनका किसी प्रकार से प्रयोग वा संशोधन करने की स्वतंत्रता है। मुझे प्रसन्नता होगी यदि आप ऐसा करते समय इसका श्रेय मुझे (यानि कि उन्मुक्त को), या फिर मेरी उस चिट्ठी/ पॉडकास्ट से लिंक दे दें। मुझसे समपर्क का पता यह है।

4 Responses to सैकड़ों वर्ष पहले के इंजीनियर ही बेहतर थे

  1. राजस्थान के हमारे गाँव में आज भी हर घर में पानी संग्रह के लिए ‘कूंड’ बने हुए है जिनमें साल भर पानी मिनरल-वाटर बना रहता है.

  2. बिलकुल सही बात है पहले हर गांम्व मे तालाब हुया करते थे वो केवल पाणी का संचय ही नही करते थी और भी बहुत सी अच्छी बातें उन तालाबों से जुदी थी मगर आज सब सूख गये हैं उन पर मैरिज पैलेस बन रहे हैं। सरकार भी कुछ मन से करना नही चाहती। और भी बहुत कुछ है इस खेल मे। बहुत अच्छा लगा आलेख । पाडकास्ट सुनती हूँ धन्यवाद

  3. राजीव says:

    उन्मुक्त जी, अनुपम जी का यह भाषण मैंने TED पर देखा है और उनकी पुस्तक की विवेचना भी किसी हिन्दी चिट्ठे पर ही देखी थी. उन्हीँ दिनों उनकी पुस्तक व जल संचयन प्रयासों से सम्बन्धित दूरदर्शन पर लघु-चलचित्र भी देखा था। उनके द्वारा प्रस्तुत तर्क और जागरूकता के प्रयास सराहनीय हैं।

    TED के अनेक भाषण, प्रंशसनीय हैं। मैंने तो इसे अंतरजाल की चुनिंदा श्रेष्ठ / उत्कृष्ट sites में वर्गीकृत किया है।

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