महिलाओं की स्कर्ट छोटी नहीं हो सकती

‘पुरुषों की ब्रीफ तो लम्बी हो सकती है पर महिलाओं की स्कर्ट ब्रीफ नहीं हो सकती। नेकटाई मर्यादित होनी चाहिये मूर्खतापूर्ण नहीं।’

यह विचार थे – १९ मई इंडियानापोलीस में  हुई वकीलों और न्यायधीशों की  वार्षिक मिली जुली बैठक के।

इस बैठक में वकीलों के वस्त्र पहनने के तरीके की बात, ९ जनवरी १९४४ मैं जन्मी, राष्ट्रपती बिल क्लिंटन के द्वारा Federal Judge Joan Lefkow३० जून २००० में नियक्ति की गयी, इलीनॉए की फैडरल न्यायधीश जोन लेफकॉओ (federal judge, Joan H. Lefkow of the Northern District of Illinois) ने उठायी।

फैडरल न्यायधीश जोन लेफकॉओ ने अपने न्यायलय का एक किस्सा बताया जब उनके न्यायालय में एक महिला एस तरह के वस्त्र पहन कर आयी जैसे कि वह किसी व्यामशाला से कसरत कर के आयी हो। बैठक में अन्य न्यायधीशों और वकीलों ने भी इस विषय पर अपने विचार दिये कि कई महिलायें की स्कर्ट और ब्लॉउस इतने छोटे होते हैं कि नज़र उस पर चली जाती है। उनके इस तरह के वस्त्र पहनना आपत्तिजनक है

यहां गौर करने की बात है कि अपने देश में वकीलों (पुरुष एवं महिला दोनो को) की वस्त्र निर्धारित है जिसमें बैन्ड और गाउन पहनना पड़ता है। बैन्ड बन्द गले के कोट, या बन्द गले की शर्ट, ब्लाउस, कुर्ते पर लगाया जा सकता है पर अमेरिका में वकीलों के लिये कोई भी वस्त्र निर्धारित नहीं है। हांलाकि जहां तक मुझे याद पड़ता है कि अपने देश में भी न्यायधीश चन्द्रचूड़ ने एक बार सर्वोच्च न्यायालय में एक महिला को जीन्स वा इतनी लिपिस्टिक लगा कर न्यायालय में आने से मना किया था।

बेथ ब्रिकिंमैन (Beth Brinkmann) अमेरिका में सॉलिसिटर जेनरल के ऑफिस में काम करती थीं। अमेरिक के सर्वोच्च न्यायालय में वे एक बार भूरी स्कर्ट पहन कर बहस करने चली गयीं। इस पर वहां के न्यायधीशों ने आपत्ति की। हांलाकि सॉलिसिटर जेनरल ने उनका बचाव किया पर उसके बाद वहां काम करने वाली सारी महिलाओं ने काले रंग की स्कर्ट पहनना शुरू कर दिया। यह भी प्रसांगिक है कि इस समय बेथ ब्रिकिंमैन का नाम भी सर्वोच्च न्यायालय में न्यायधीश बनाने जाने पर विचार किया जा रहा है।


 

यह गौरतलब है  कि फैडरल न्यायधीश जोन लेफकॉओ जिनहोंने यह विषय १९ मई में हो रही बैठक में उठाया था वे स्वयं मर्यादित एवं सुरुचिपूर्ण (elegant) वस्त्र पहनने के लिये जानी जाती हैं। उन्होंने महिलाओं को कॉर्परीएटी  (Corporette) चिट्ठे को भी पढ़ने की सलाह दी कि वे इसे देखें कि किस तरह के वस्त्र पहनने चाहिये। मैंने इस चिट्ठे को देखा। इसकी सलाह मुझे अच्छी लगी पर यह पश्चमी वस्त्रों के बारे में बात करती है न कि भारतीय परिधानों के बारे में। आजकल भारत में भी बहुत सी महिलायें पश्चमी वस्त्र पहनना पसन्द करतीं है। उनके लिये यह चिट्टा अच्छा है। मैं तो यह जानना चाहूंगा कि क्या इस तरह का कोई चिट्ठा पुरुषों के लिये या महिलाओं के भारतीय परिधानों के लिये है?

बहस कोई अन्त नहीं है। अमेरिका में न्यायधीश जोन लेफकॉओ की इस टिप्पणी ने वहां पर लैंगिक समानता पर बहस छेड़ दी है। इसके बारे में आप विस्तार से यहां और यहां पढ़ सकते हैं।

मेरे विचार में ऑफिस, न्यायालय पर काम की सारी जगहों पर वस्त्र मर्यादित, और सुरिचिपूर्ण होने चाहिये। हां वे काम के अनुसार भी होने चाहिये। समुद्र तट पर लाइफ गार्ड नहाने योग्य कपड़े ही पहनेगें 🙂

उन्मुक्त की पुस्तकों के बारे में यहां पढ़ें।

 

न्यायधीश जोन लेफकॉओ का चित्र इस विडियो से है जिसमें वे अपनी मां की कविता के बारे में बता रहीं हैं।

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के बारे में उन्मुक्त
मैं हूं उन्मुक्त - हिन्दुस्तान के एक कोने से एक आम भारतीय। मैं हिन्दी मे तीन चिट्ठे लिखता हूं - उन्मुक्त, ' छुट-पुट', और ' लेख'। मैं एक पॉडकास्ट भी ' बकबक' नाम से करता हूं। मेरी पत्नी शुभा अध्यापिका है। वह भी एक चिट्ठा ' मुन्ने के बापू' के नाम से ब्लॉगर पर लिखती है। कुछ समय पहले,  १९ नवम्बर २००६ में, 'द टेलीग्राफ' समाचारपत्र में 'Hitchhiking through a non-English language blog galaxy' नाम से लेख छपा था। इसमें भारतीय भाषा के चिट्ठों का इतिहास, इसकी विविधता, और परिपक्वत्ता की चर्चा थी। इसमें कुछ सूचना हमारे में बारे में भी है, जिसमें कुछ त्रुटियां हैं। इसको ठीक करते हुऐ मेरी पत्नी शुभा ने एक चिट्ठी 'भारतीय भाषाओं के चिट्ठे जगत की सैर' नाम से प्रकाशित की है। इस चिट्ठी हमारे बारे में सारी सूचना है। इसमें यह भी स्पष्ट है कि हम क्यों अज्ञात रूप में चिट्टाकारी करते हैं और इन चिट्ठों का क्या उद्देश्य है। मेरा बेटा मुन्ना वा उसकी पत्नी परी, विदेश में विज्ञान पर शोद्ध करते हैं। मेरे तीनों चिट्ठों एवं पॉडकास्ट की सामग्री तथा मेरे द्वारा खींचे गये चित्र (दूसरी जगह से लिये गये चित्रों में लिंक दी है) क्रिएटिव कॉमनस् शून्य (Creative Commons-0 1.0) लाईसेन्स के अन्तर्गत है। इसमें लेखक कोई भी अधिकार अपने पास नहीं रखता है। अथार्त, मेरे तीनो चिट्ठों, पॉडकास्ट फीड एग्रेगेटर की सारी चिट्ठियां, कौपी-लेफ्टेड हैं या इसे कहने का बेहतर तरीका होगा कि वे कॉपीराइट के झंझट मुक्त हैं। आपको इनका किसी प्रकार से प्रयोग वा संशोधन करने की स्वतंत्रता है। मुझे प्रसन्नता होगी यदि आप ऐसा करते समय इसका श्रेय मुझे (यानि कि उन्मुक्त को), या फिर मेरी उस चिट्ठी/ पॉडकास्ट से लिंक दे दें। मुझसे समपर्क का पता यह है।

9 Responses to महिलाओं की स्कर्ट छोटी नहीं हो सकती

  1. मेरे विचार में ऑफिस, न्यायालय पर काम की सारी जगहों पर वस्त्र मर्यादित, और सुरिचिपूर्ण होने चाहिये।
    मेरी भी सहमति !

  2. इससे मेरी भी सहमति है कि ऑफिस, न्यायालय पर काम की सारी जगहों पर वस्त्र मर्यादित, और सुरिचिपूर्ण होने चाहिये. मेरे आफिस में इसीलिये वस्त्रों के लिये “Business Casual” पहनने के लिये कहा गया है।

  3. मेरे विचार में ऑफिस, न्यायालय में और काम की सारी जगहों पर वस्त्र मर्यादित, और सुरिचिपूर्ण होने चाहिये।
    इस से पूरी सहमति है। लेकिन देश के वातावरण और मौसम का भी ध्यान रखा जाना चाहिए।
    गर्मी में न्यायालय में न्यायाधीश तो पंखे के नीचे, कूलर के सामने या एसी में होते हैं। पर हम वकील काले कोट में जिन्हें लगातार इस से उस अदालत तक दौड़ना पड़ता है। बराबर धूप और गर्म हवा भी सहनी पड़ती है। हालांकि राजस्थान उच्चन्यायालय गर्मी में गाउन से मुक्ति प्रदान करता है। बार काउंसिलों को वकीलों की यूनिफॉर्म पर पुनर्विचार तो करना ही चाहिए।

  4. गिरिजेश राव says:

    भारत में स्कर्ट ज्यादातर लड़कियाँ पहनती हैं न कि महिलाएँ।
    जींस का प्रचलन बढ़ने के साथ ही, पुरुषॉं का ध्यान बँटाने वाले एक कारण में महत्त्वपूर्ण कमी आई है। 🙂

  5. शीर्षक देख कर भागे आये कि कहीं उन्मुक्त भाई का ब्लॉग हैक हो गया क्या… 🙂 अब जाकर बैचेन दिल को करार आया!!

  6. कार्य और स्थान के अनुरूप परिधान होने चाहिए. न प्रतिबन्द न ही छूट. बस अनुशासन.

  7. hempandey says:

    शुक्र है यह टिप्पणी एक अमरीकी न्यायाधीश ने की है.किसी भारतीय द्वारा ऐसी टिप्पणी करने पर उसे रूढिवादी, संघ परिवार से सम्बद्ध आदि की उपमा मिल जाती.
    वैसे यह एक सामान्य शिष्टाचार है कि समय, परिस्थिति और स्थान को देखते हुए ही परिधान होने चाहिए.मय्यत में शरीक होते वक्त और शादी- पार्टी आदि में जाते वक्त परिस्थिति अनुसार ही अलग अलग तरह के वस्त्र पहने जाते हैं. इसी प्रकार कार्य स्थल में भी उसी अनुसार पहनावा होना चाहिए.

  8. Kabhi Kabhi Vastro Ke Chakar Me Hume Sarmindagi Ka Samna Karna Padta Hai
    Samy Paristhi Ke Anusar Kapde Pahnne Chaiye

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