अनुगूँज 22: हिन्दुस्तान अमरीका बन जाए तो कैसा होगा – पाँच बातें
अगस्त 6, 2007 15 टिप्पणियां
५ अगस्त की रात को बैठ कर अनुगूंज का लेख पूरा किया। सोचा था ६ की सुबह पोस्ट कर दूंगा क्योंकि दुनिया में अभी भी बहुत जगह ५ अगस्त ही है। अनुगूंज का समय बढ़ गया है पर लेख तो लिख गया है, पोस्ट कर देता हूं।
- अपनी सभ्यता और बोली का महत्व नहीं समझ आयेगाः अपनी बोली, भाषा और सभ्यता का महत्व बाहर जा कर ही समझ में आता है। हिंदुस्तान में तो घर की मुर्गी, साग बराबर। सारे बाहर के लोग हिंदुस्तान वापस आ जायेंगे, बाहर कोई जायगा नहीं, तब लोगों को – अपनी सम्यता, बोली, भाषा, और योग का महत्व – कैसे पता चलेगा। सब लोग कलाकारों और गायकों की तरह गिटपिट अंग्रेजी में ही बात करेंगे। हिन्दी की लुटिया डूब जायगी।
- समारोह का मजा न ले पायेंगेः हिंदुस्तान में यदि कोई समारोह ८ बजे से हो तो साड़े नौ के पहले पहुंचना बेवकूफी है। यदि ठीक समय से पहुंच जाओ तो वहां उल्लू ही मिलते हैं। जब हम किसी समारोह में अपने हिंदुस्तानी समय से पहुंचेगे तब तक तो वह समाप्त हो चुका होगा और वहां उल्लू बोल रहें होंगे।
- इमारतें बदसूरत लगेंगीः हिंदुस्तान में सड़कों, सरकारी और सार्वजनिक इमारतें पर लाल रंग के तरह, तरह पान की पीक के निशान हमेशा देखे जा सकते हैं। यह उनकी सुन्दरता पर चार चांद लगाते हैं। यह सब बन्द हो जायेंगे। वे बदसूरत दिखने लगेंगी।
- हम न रहेंगेः अमेरीका का क्षेत्रफल हमारे क्षेत्रफल से चार गुना ज्यादा है और अबादी चार गुनी कम। हमारा क्षेत्रफल तो बढ़ नहीं सकता – हिन्दुस्तान अमेरिका बना तो जनसंख्या को ही सोलह गुना कम होना पड़ेगा। इसमें तो ज्यादा उम्र वाले ही लोग गायब होंगे। हिन्दी चिट्टाकारों में तो मेरी ही उम्र सबसे ज्यादा लगती है – जीवन के तीन चौथाई बसन्त तो देख ही चुका हूं। मैं ही सबसे पहले भगवान के पास पहुंचूगा।
- हम नकली बन जायेंगेः हिंदुस्तान की जो भी कमी हो, हम जैसे भी रद्दी सद्दी हों बनावटी तो नहीं – हमारे दिल में गर्माहट है, बड़ों को कम से कम दूसरी जगह नहीं छोड़ते अपने साथ रखते हैं। मां को साल में एक बार कहेंगे Happy mother’s day Mom. सब केवल बाहरी दिखावटी मुस्कराहट में बदल जायगा।
सही कहा जी,हम पिछडे ही भले इस लाईन मे तो,और काश हमेशा बने रहे हम भी हमारे भी..:)
यह भी सही है.
हिन्दुस्तान अमेरिका बना तो जनसंख्या को ही सोलह गुना कम होना पड़ेगा।
हाँ, यह तो सोचा ही नहीं था। यानी सोलह में एक ही बचेगा।
गतांक से आगे –
यानी आठ सौ हिन्दी के चिट्ठों की सङ्ख्या धड़ से पचास ही रह जाएगी!
बहुत बढिया विचार प्रेषित किए हैं ।बधाई।
अच्छी रहे ये पांच बातें भी. शोर्ट एंड स्वीट
“ना बाबा ना, हम ऐसे ही भले हैं :)”
बिल्कुल सही, हम एसे ही भले हैं
“जीवन के तीन चौथाई बसन्त तो देख ही चुका हूं।….”
ये समझ नही आया….१०० को मानक मान कर कह रहे हैं क्या?
अन्यथा आपको कैसे मालूम कि तीन चौथाई ही हुए हैं..ना कम न ज्यादा?
वैसे सच बताऊँ…मैं आपको ५०-५५ का समझता था…७५ -८० का कदापि नही….अपना नजरिया बदलना पडेगा अब मुझे 🙂
@ नितन जी, मैं तो अपनी उम्र अपने माता पिता की उम्र से ही देखता हूं। मैं नहीं समझता यह किसी भी तरह से ८० से ज्यादा होगी – उन्मुक्त
अच्छी लगी आपकी पांच बातें।
हा हा हा, सही लिखे हैं, खूब। 🙂
सही है। 🙂
🙂 यह भी सही और अनोखे उन्मुक्तिया विचार हैं. अब सही राह पकड़ी अनुगूँज ने, जब आप भी आ गये. 🙂
…जीवन के तीन चौथाई बसन्त तो देख ही चुका हूं। मैं ही सबसे पहले भगवान के पास पहुंचूगा।…
कैसी बातें कर रहे हैं, हम तो आपको अपना हम उम्र समझ रहे थे 🙂
तुम जियो हजारों साल, साल के दिन हों पचास हजार,
लेकिन एक शर्त है, ब्स ऐसे ही लिखते रहो …
याने ५५-६० के ही हैं…हमारा अनुमान ठीक निकला 🙂
वैसे हमारी दुआ है कि ८० ही क्यों …आप शतायु हों…
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